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अतिचार का कारण है कषाय: आचार्य तीर्थ भद्रसूरीश्वर

अतिचार का कारण है कषाय: आचार्य तीर्थ भद्रसूरीश्वर

चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरीश्वर ने प्रतिक्रमण की भाव यात्रा में पापों को दूर करने के चार उपाय बताए-पापों का स्वीकार करना, तिरस्कार करना, विधिपूर्वक आलोचना और प्रायश्चित करना।

उन्होंने कहा भूल या पाप करना नहीं, उसे सरल हृदय से स्वीकार करने की भावना पराक्रम है। शत्रु को जीतना है तो उसकी ताकत का अवलोकन करना चाहिए। सब अतिचारों का मूल कषाय है, कषायों के कारण अतिचार होते हैं, उन्हें आपको रोकना है। प्रतिक्रमण में कषायों की आलोचना करनी है।

गुरु शिष्य पर गुस्सा करने पर वे शिष्य से क्षमा याचना करते हैं। गुरु शिष्य के हित में डांटता है, यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो पाप के भागी बनते हैं। प्रतिक्रमण में तीन बार करेमि भंते सूत्र समता भाव में रहने की स्मृति दिलाता है। कार्योत्सर्ग ध्यान योग है। चौबीस तीर्थंकर के ध्यान में लीन हो जाओ तो बड़े उत्सर्ग व अन्तराय टूट जाते हैं।

उन्होंने कहा चारित्राचार श्रेष्ठ है, इसकी शुद्धि के लिए प्रतिक्रमण में दो लोगस्स का काउस्सग होता है जबकि ज्ञानाचार शुद्धि के लिए एक लोगस्स का काउस्सग होता है। देवी देवताओं का स्मरण करना उनके प्रति बहुमान है। वे हमें ज्ञान के अध्ययन में सहायक होते हैं। उन्होंने कहा कर्म शत्रु मोह को मात देकर हम प्रतिक्रमण की भाव यात्रा को संपूर्ण करते हैं।

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