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जैन धर्मावलंबी अपनी सांस्कृतिक गौरव को समझे: श्री जिनाज्ञाश्री जी महाराज

जैन धर्मावलंबी अपनी सांस्कृतिक गौरव को समझे: श्री जिनाज्ञाश्री जी महाराज

श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी बावीस संप्रदाय जैन संघ ट्रस्ट, गणेश बाग श्री संघ के तत्वावधान में एवं शासन गौरव महासाध्वी पूज्या डॉ. श्री रुचिकाश्री जी महाराज, पूज्या श्री पुनितज्योति जी महाराज, पूज्या श्री जिनाज्ञाश्री जी महाराज के पावन सानिध्य में शुक्रवार प्रातः दिनांक 10 सितम्बर 2021 को श्री गुरु गणेश जैन स्थानक, गणेश बाग में पर्वाधिराज महापर्व पर्युषण के सप्तम दिवस सूत्र वाचन, प्रवचन एवं धर्माराधना प्रतियोगिताएं, प्रतिक्रमण आयोजित किया गया।

पर्वाधिराज महापर्व पर्युषण के सातवें दिन दिन के अवसर पर महासाध्वी पूज्या डॉ. श्री रुचिकाश्री जी महाराज ने अपने विशेष प्रवचन – संस्कारो का शंखनाद विषय पर फ़रमाया कि मानव जीवन में संस्कारों का होना अति आवश्यक है। व्यक्ति के जीवन की संपूर्ण शुभ और अशुभ वृत्ति उसके संस्कारों के अधीन है, जिनमें से कुछ वह पूर्व भव से अपने साथ लाता है, और कुछ इसी भव में संगति व शिक्षा आदि के प्रभाव से उत्पन्न करता है। आर्थिक सम्पन्नता तथा पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से सामाजिक रीति रिवाज में आज इतना आडम्बर बढ़ रहा है जो आर्थिक दृष्टि से भारी भरकम होने के साथ साथ सामाजिक दृष्टि से भी सही नहीं है । यह वातावरण सामाजिक आदमी के लिए एक समस्या बन गया है। आज आवश्यक है जैन धर्मावलंबी अपनी सांस्कृतिक गौरव को समझे।

जैन व्यक्ति की पहचान उसके जीवन व्यवहार से हो। माता-पिता का परम कर्तव्य बनता है कि वे अपने बच्चों को नैतिक बनाएं और कुसंस्कारों से बचाकर बचपन से ही उनमें अच्छे आदर्श तथा संस्कारों का ही बीजारोपण करें। घर संस्कारों की जन्मस्थली है। अतः संस्कारित करने का कार्य हमें अपने घर से प्रारम्भ करना होगा। अगर बाल्यावस्था में सद्गुण रूपी संस्कारों से बच्चों को युक्त कर दिया जाए तो यह सब श्रेष्ठ मानवीय समाज का निर्माण करने हेतु अवश्य ही सामथ्र्यवान बनेंगे। बड़ों द्वारा आदर्श निर्माण करना चाहिए कि हमारी रीत, अनुशासन देखकर हमारे बच्चे भी उसका अनुकरण करें। ऐसा हुआ, तो आदर्श परिवार बनने में समय नही लगेगा।

बाल संस्कार शिविरों के माध्यम से अच्छे संस्कारों का शंखनाद होता है। एक अच्छे सभ्य समाज के लिए संस्कार अत्यंत आवश्यक, पुराने समय में जो व्यक्ति के संस्कार न हुए हो उसे अच्छा नहीं माना जाता था, संस्कार हमारे धार्मिक और सामाजिक जीवन की पहचान होते हैं। यह न केवल हमें समाज और राष्ट्र के अनुरूप चलना सिखाते हैं बल्कि हमारे जीवन की दिशा भी तय करते हैं। जीवन संस्कारों से संतुलित होता है। सुखी और व्यवस्थित होता है। संस्कारों से सम्पन्न होने वाला मानव सुसंस्कृत, चरित्रवान, सदाचारी और प्रभुपरायण हो सकता है। संस्कारवान आदर पाता है, सम्मानित होता है।

साध्वी श्री जिनाज्ञाश्री जी महाराज ने श्री अंतकृतदशांग सूत्र का वाचन किया। साध्वी श्री जिनाज्ञाश्री जी महाराज अपने मंगलवाणी में फ़रमाया कि संस्कार जीवन की नींव है, जीने की संस्कृति है, यही व्यक्ति की मर्यादा और उसकी गरिमा है। जीवन का प्रारम्भ संस्कार और संगती से होता है दोनों ही अच्छे मिल जाये तो मानव आदर्श हो जाता है। सत्संगति होती है तो दुर्गम मार्ग भी सरलता से कट जाता है। चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थितियाँ आ जाये व्यक्ति सरलता से सामना कर लेता है। साध्वी श्री पुनितज्योति जी महाराज द्वारा कल्पसूत्र वाचन किया।

धर्म सभा का संचालन करते हुए गणेश बाग श्री संघ के सदस्य सुनील सांखला जैन ने बताया कि तपस्वियों के अभिनन्दन श्री संघ की और से किया जाएगा।

प्रवचन के पश्चात अनुपूर्वी पहचान आयोजित किया गया और बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएं ने भाग लिया एवं विजेताओं को श्री संघ की और से पुरुस्कृत किया गया। महापर्व पर्युषण सातवां दिन के अवसर पर गणेश बाग में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही। धर्म सभा का संचालन एवं स्वागत गणेश बाग श्री संघ सदस्य सुनील सांखला जैन ने किया। डॉ. श्री रुचिकाश्री जी महाराज ने मंगलपाठ फ़रमाया ।

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