चैन्नई के साहुकारपेट स्थित श्री राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने कहा सज्जन पुरुषों का संग कीर्ति का मूल बोता है, पाप को नष्ट कर देता है, हर्ष उत्पन्न करता है, श्रम (थकान) को रोकता है, बुद्धि का वैभव उत्पन्न करता है, शत्रुओं का नाश करता है, कल्याण एकत्रित करता है, मनोहर बुद्धि देता है तथा भय को ढंकता है, इसी प्रकार सज्जनों की संगत कल्पवृक्ष की तरह हमेशा उत्तम फल देने वाली होती है। पर्यूषण पर्व यानी आत्मशुद्धि का पर्व। पर्व हमें कुसंग से दूर रहकर हमेशा सत्संग करने की प्रेरणा देता है। जिस प्रकार राजा के ललाट पर लगा हुआ कीचड़ भी कस्तूरी के तरह प्रतिभाषित होता है, रानियों के आभूषणों में लगा हुआ कांच भी हीरे की उपमा को प्राप्त होता है और आम के वृक्ष पर बैठा हुआ कौआ भी कोयल की तरह दिखता है, तो इसके पीछे एक ही कारण है उत्तम स्थान संग। इसी तरह गुणहीन मानव भी उत्तम जीवों के संग से ग...