श्री भुवनरत्न विजयजी

अभिमान में आकर न दर्शाए अपना ज्ञान

चैन्नई के साहुकार पेठ स्थित श्री राजेन्द्र भवन में आचार्य श्री जयन्तसेनसूरिजी के सुशिष्य मुनि संयमरत्न विजयजी,श्री भुवनरत्न विजयजी ने कहा कि जिस प्रकार कमल की सुगंध को फैलाने का कार्य हवा करती है, उसी तरह आनंदित संत पुरुषों की संगत से मूर्ख भी गुणवान हो जाता है और उसके गुण भी चारों दिशाओं में फैलने लगते हैं। जब भी किसी मंगल कार्य को प्रारंभ करना हो तो ‘सद्गुरु शरणं मम’ कहे और कार्य की पूर्णाहुति होते ही ‘गुरु कृपा केवलं’ कहे।यदि हमारे जीवन रूपी पतंग की डोर सद्गुरु के हाथ होगी तो उसे कोई नहीं काट सकता और न ही कोई लूट सकता है।जिसके समर्पण की डोर कच्ची होती है वह छूट जाता है और लुट जाता है। सद्गुरु जिसके साथ होते हैं,वह न कहीं भटकता हैं,न अटकता है और न ही कहीं लटकता है। जिससे हमें ज्ञान प्राप्त हुआ है,उसी के सामने अभिमान में आकर अपने ज्ञान का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।प...

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