श्रद्धा

श्रद्धा स्वयं की आत्मा से प्रारंभ होती है: साध्वी धर्मप्रभा

एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा श्रद्धा स्वयं की आत्मा से प्रारंभ होती है। आपकी श्रद्धा स्वयं पर है तो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी निर्भय बने रहकर अपनी मंजिल पा लेंगे। जिसे खुद पर श्रद्धा नहीं उसकी परमात्मा पर श्रद्धा भी मिथ्या है। आत्मा स्वयं ही अपनी रक्षक है। आपकी श्रद्धा ही आपको पार उतारेगी। श्रद्धा और विश्वास जीवन विकास के दो मुख्य आयाम  है। असीम श्रद्धा व्यक्ति को ज्योतिर्मय बना सकती है। श्रद्धा का अर्थ है अपनी आत्मा की पहचान। अपने आप पर विश्वास। श्रद्धा का अर्थ केवल यह नहीं है कि हम परमात्मा या उनकी शक्तियों पर विश्वास करें। साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा संयम वह शक्ति है जो अपवित्र आत्मा को पवित्र, दास को पूजनीय, मूर्ख को ज्ञानवान बना देती है। संयमपूर्ण आत्मा मोक्ष के पथ पर चलकर जल्दी ही शाश्वत और अनंत सुख प्राप्त कर लेती है। संयम मार्ग का कोई सरल मार्ग नहीं...

ईंट को मजबूत अग्नि बनाती है: आचार्य पुष्पदंतसागर

श्रद्धा से ही मिल सकता है मुक्ति का पुरस्कार चेन्नई. कोलत्तूर जैन मंदिर में विराजित आचार्य पुष्पदंतसागर ने कहा ईंट को मजबूत अग्नि बनाती है। भाप से ईंट मजबूत हो जाती है। जीव को जीवनदान ऑक्सीजन एवं शरीर को रोशनी आंख देती है। शरीर को जितना सात्विक खाद-पानी देंगे उतना ही वह नीरोग रहेगा। आत्मभूमि पर जब श्रद्धा के बीज बोते हैं तो संसार से मुक्ति का पुरस्कार मिलता है। पैरों के आधार पर शरीर और नींव के आधार पर भवन खड़ा है। गाड़ी पहियों के आधार पर और जड़ों के आधार पर वृक्ष खड़ा है। मकान को सशक्त बनाने का काम लोहा, ईंट, पत्थर व सीमेंट करते हैं जबकि नींव की मजबूती पत्थरों से मिलती है। जड़ को मजबूत करने का काम खाद व पानी करते हैं। यदि आप चाहते हैं कि साधना के माध्यम से स्वयं के पास पहुंचें तो श्रद्धा भक्ति पर ध्यान देना होगा। आपने देखा होगा इस्लाम सूर्य की उपासना नहीं करता क्योंकि सूर्य का कोई वंशज नही...

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