प्रवीणऋषि

हिंसा के दुष्परिणामों और उसके वाइब्रेशन से हम बच नहीं सकते: प्रवीणऋषि

पुरुषवाक्कम स्थित एमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा गुणवत्ता और उसके पोषक तत्त्वों के आधार पर चार प्रकार बताए जिससे फसलों का उत्पादन और जीवन प्रभावित होता है। हम किसी की चुराई हुई वस्तु तो लौटा सकते हैं लेकिन किसी के प्राण लेने के बाद लौटा नहीं सकते। हमें किसी का जीवन हरण करने बचना चाहिए। परमात्मा कहते हैं हिंसा के दुष्परिणामों और उसके वाइब्रेशन से हम बच नहीं सकते। व्यक्तिगत जीवन में घटनाओं के बीज पुरुषार्थ के हाथों में होते हैं। मनुष्य जीवन, उच्च कुल में जन्म और अच्छे संस्कार पूर्व पुण्य के कारण मिले लेकिन उन्हें ग्रहण करना और धर्म के मार्ग पर प्रशस्त होना, संतों के सानिध्य में जाना पुरुषार्थ कहलाता है। परिवारिक जीवन की घटनाओं में कर्म, भाग्य, पुरुषार्थ के साथ-साथ रिश्तों की अहम भूमिका होती है। आपके साथ जुड़ा हुआ कोई आदमी खराब नहीं होता, बल्कि उसके साथ आपका रिश्ता कैसा है...

दूसरे में भलाई देखने के लिए स्वयं भला बनना पड़ता है: प्रवीणऋषि

पुरुषावाक्कम स्थित एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा  हम दूसरों के साथ जो व्यवहार करते हैं वह पहले स्वयं के साथ करें। किसी की नकारात्मकता को जुबान पर मत लाओ। यदि आप उसे उजागर करते रहेंगे तो आप भी उन नकारात्मकताओं को ग्रहण कर लेंगे। दूसरे में भलाई देखने के लिए स्वयं भला बनना पड़ता है। उन्होंने कहा परमात्मा कहते हैं कि सचित आहार से हिंसा के साथ चोरी भी लगती है। दुनिया में जैन दर्शन ही है जो सचित आहार लेने से मना करता है। पानी में त्रसकाय जीवों के अलावा पानी स्वयं भी जीव है। वह सूक्ष्म नामकर्म नहीं लेकिन सूक्ष्म जीव है। उसे अचित करने के कुछ समय बाद जल पुन: सचित हो जाता है। पानी को छानकर उबालें, नहीं तो अपकाय के साथ त्रसकाय की हिंसा लगेगी। छानकर गरम करेंगे तो केवल अपकाय की हिंसा होगी, त्रसकाय की नहीं। जब सचित वस्तु आपके शरीर में जाती है तो एकेन्द्रिय जीव अपन...

धर्म मार्ग पर चलने से पहले मन में से शंकाएं निकाल दे: प्रवीणऋषि

पुरुषवाक्कम स्थित एमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा धर्म के राजमार्ग पर वही पुरुष चलते हैं, जिन्होंने जिस उल्लास और उमंग से कदम उठाया है उसे मंजिल मिलने तक रुकने नहीं देते। धर्म मार्ग पर चलने से पहले मन में जो शंकाएं आती है, उन्हें मन से निकाल देना। इस जीव का चिर-परिचित है-आस्रव का द्वार, कषाय का रास्ता। आचारांग कहता है कि इस धर्म मार्ग में आज्ञा को दिल से स्वीकार करो, तर्क और बुद्धि से नहीं। आज्ञा पर चिंतन और तर्क नहीं किया जाता है, जिसने आज्ञा पर तर्क कर लिया उसने आज्ञा की शक्ति खो दी। जब अन्तर में शक्ति का जागरण होता है तो ही शुभ काम करने का मन में आता है, इसे उसी समय तत्काल कर लें। यदि आगे के लिए टाल देंगे तो बाद में नहीं कर पाएंगे। यदि अपने से बड़े-जन जो आज्ञा देते हैं तो वे आज्ञापालन की ताकत और शक्ति भी देते हैं, उस पर यदि प्रश्नचिन्ह लगाओगे तो आने वाली शक्ति का मार्...

युगों को जीने का तरीका सिखाने वाले कहलाते हैं युग पुरुष

गुरु दिवाकर कमला वर्षावास समिति, चेन्नई के तत्वावधान में अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि, उपप्रवर्तक विनयमुनि ‘वागीश’ और यहां चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी कुमुदलता व अन्य साध्वीवृन्द के सान्निध्य में सैकड़ों गुरुभक्तों की उपस्थिति में मरुधर केसरी मिश्रीमल एवं राष्ट्र संत रूपमुनि की जन्म जयंती मनाई गई। दोनों महापुरुषों को साधुवृन्द व साध्वीवृन्द के अलावा कई गुरु भक्तों ने अपनी भावांजलि अर्पित की। उपाध्याय प्रवीणऋषि ने दोनों संतों का जीवन परिचय देते हुए कहा कि जो युगों को जीने का तरीका सिखाते हैं वे युग पुरुष कहलाते हैं और मरुधर केसरी मिश्रीमल व शेरे राजस्थान रूपमुनि भी युग पुरुष थे। उन्होंने कहा जिस प्रकार सूर्य खुद को तपकर संसार को रोशनी देकर प्रकाशित करता है उसी प्रकार मरुधर केसरी ने भी अपने तप और साधना के बल पर मानव कल्याण का प्रकाश फैलाया। इसीलिए वे श्रमणसूर्य क...

भाई-बहन का रिश्ता जिन्दा हो गया तो संसार के सारे दुष्कर्मी सदाचारी हो जाएंगे: प्रवीणऋषि

पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने रक्षाबंधन पर कहा यदि जीवन में भाई-बहन का रिश्ता जिन्दा हो गया तो संसार के सारे दुष्कर्मी सदाचारी हो जाएंगे। यही हमारी परंपराएं हैं, हमारी भारतीय संस्कृति और धर्म कहता है। आज समाज को चाहिए कि बेटे और बेटियों दोनों को बोलचाल में किसी को नाम से बुलाने के बजाय रिश्तों का संबोधन करने की सीख दें, उन्हें रिश्तों की अहमियत और सदाचार का पाठ पढ़ाएं और मनुष्य को बिगाडऩे वाली संस्कृति को तिलांजलि दें। हमारी संस्कृति में रिश्तों से समाज का हर व्यक्ति बंधा हुआ है। रिश्ते हमें बांधते भी हैं और मुक्त भी कराते हैं। रक्षा और निस्वार्थता का रिश्ता मुक्त कराता है और स्वार्थ का रिश्ता बंधनों में बांधता है। सच्चे अर्थों में रक्षाबंधन सुरक्षा और रक्षा का रिश्ता है। किससे रक्षा होनी चाहिए। पाप-दु:ख से, फल-विष, कारण और परिणाम से बचना चाहिए। हम दुनिय...

समाज का नजरिया बदले में समर्थ थे मरुधर केसरी: प्रवीणऋषि

एएमकेएम परिसर में शनिवार को मरुधर केसरी मिश्रीमलजी की 128वीं जन्म-जयंती उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि व तीर्थेशऋषि के सानिध्य में जप-तप, आराधना और सामायिक साधना के साथ मनाई गई। उपाध्याय प्रवर ने मरुधर केसरी का जीवन परिचय देते हुए कहा कि जब दुनिया में अशांति, पाप, क्रोध और बुराइयां पनपती है, तब-तब दुनिया में मरुधर केसरी जैसे महापुरुषों का आगमन होता है। जिनके पास मर्यादा को जीने का बल और साधना से सिद्ध मंगलपाठ हो तो वे स्वयं के साथ-साथ दूसरों की बाधाएं भी दूर करते हैं। उनके पास परंपराओं से हटकर दृष्टिकोण और समाज का नजरिया बदलने की सामथ्र्य थी। वे मंगलपाठ के साथ मंगल व्यवस्था भी करते थे और जरूरतमंद की सहायता भी। आस्था को ही व्यवस्था का बल मिलता है, वे देखते नहीं थे कि आनेवाला व्यक्ति किस परंपरा का है। प्रवीणऋषि ने कहा, इस संसार के दलदल में गुरुदेव ने जिनशासन के संघ का कमल खिलाया। उनके जीवन में पार...

नई पीढ़ी को धर्म और परमात्मा की भक्ति में डुबोना होगा: प्रवीणऋषि

पुरुषावाक्कम स्थित श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा आज की नई पीढ़ी को यदि अनर्थ और व्यर्थ से बचाना है तो उन्हें धर्म और परमात्मा की भक्ति में डुबोना होगा। भक्तामर की यात्रा के अंतर्गत बताया कि तत्त्वज्ञानी तत्त्व की दृष्टि से, भोगी भोग की दृष्टि से और भक्त भगवान की दृष्टि की संसार को देखता है। तत्वज्ञानी के लिए तत्त्वज्ञान सर्वोपरि है और भक्त के लिए भगवान सर्वोपरि है। भक्ति की दृष्टि से ही भक्त की बात समझ में आएगी, तत्व की दृष्टि से नहीं। भक्तामर की यात्रा करने के लिए भक्ति की दृष्टि होना जरूरी है। आचार्य मानतुंग ने भक्तामर में केवल एक ही तत्त्व भक्ति की चर्चा की है। जिसने परमात्मा की भक्ति, शक्ति का आलम्बन लिया, सुदर्शन को अर्जुनमाली नहीं रोक सका। जिसने प्रभु का आश्रय लिया वह वहां पहुंच सकता है जहां तक आपकी शक्ति को कोई भी पहुंचने से...

जन्म, मरण और जीवन तीनों एक दूसरे के पूरक है: प्रवीणऋषि

पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा जन्म, मरण और जीवन तीनों एक दूसरे के पूरक हैं। परमात्मा के गणधर पहले दीक्षा लेते हैं व धर्म ग्रहण करते हैं फिर परमात्मा से अपने सवाल पूछकर जिज्ञासाएं प्रकट करते हैं। अत: पहले धर्म को जाने बिना ग्रहण करें। परमात्मा का ज्ञान प्राप्त हो जाए तो आर्त और रौद्र ध्यान कभी नहीं होगा, जीवन में शांति और दु:खों का नाश होता है। जब बीज मरता है तो ही पौधा जन्मेगा। यही जीवन-मरण का सत्य है। गौरवमय जीवन जीने का एकमात्र सूत्र सरलता है। जो मन, वचन, कर्म से समान होता है वही जीवन में सकारात्मक व सरल होता है। जीवन से जैसे-जैसे सरलता गायब होती है अशुभ का बंध होता जाता है। पारिवारिक रिश्तों में पारदर्शिता होनी चाहिए। किसी से भी छल-कपट और द्वेष न करें। सरल बनने का उद्देश्य भी केवल संसार में दिखावा नहीं बल्कि सफलता, शांति और स्वयं सिद्ध बनना होना च...

महामंत्रों के प्रभाव से शीघ्र ही कष्टों का हरण हो जाता है : प्रवीणऋषि

उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा चेन्नई. पुरुषावाक्कम स्थित श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि के सान्निध्य में आचार्य आनन्दऋषि जन्मोत्सव के अंतर्गत प्रात: 8.30 बजे से 10 बजे तक 36 णमोत्थुणं जाप और आनन्द चालीसा का पाठ कराया गया। इस अवसर पर प्रवीणऋषि ने कहा कि नमस्कार महामंत्र और णमोत्थुणं जाप का प्रयोग जैनाचार्यों द्वारा जीवन में आने वाली समस्याओं, आपदाओं को दूर करने और जीवन को मंगलमय बनाने के लिए किया गया है। इन महामंत्रों के प्रभाव से शीघ्र ही कष्टों का हरण हो जाता है और जीव की आत्मा शुद्ध हो जाती है। नवकार और णमोत्थुणं महामंत्र में अनन्त तीर्थंकरों का पुण्य ग्रहण करने की शक्ति है। जीवन समस्याओं का दूसरा नाम है और सामान्य व्यक्ति समस्याओं को हल करते हुए और समस्याओं से घिरता जाता है। उपाध्याय प्रवर ने ‘आनन्द चरित्र’ में बताया कि आचार्य आनन्दऋ...

36 लाख महामंत्र जाप से आचार्य आनन्दऋषि जन्मोत्सव शुरू: प्रवीणऋषि

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में रविवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि के सानिध्य में आचार्य आनन्दऋषि का 119वां जन्मोत्सव शुरू हुआ। आगामी 12 अगस्त तक चलने वाले इस महोत्सव के पहले दिन 36 लाख नवकार महामंत्र का जाप और साथ ही ध्यान साधना कार्यक्रम हुआ। इस मौके पर उपाध्याय प्रवर ने कहा नवकार महामंत्र के प्रभाव से भवी जीवों के रोग व दुखों का शमन और प्रगति व कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। नवकार के श्रवण और जप से संसार में विपदाओं से त्रस्त प्राणियों में नव ऊर्जा का संचार कर उनका जीवन मंगलमय बनता है, उन्हें मोक्ष मार्ग पर ले जाता है। इसी के साथ श्री एस.एस. जैन संघ, नॉर्थ टाउन, पेरम्बूर द्वारा णमोत्थुणं जाप हुआ जबकि सोमवार को एकासन दिवस एवं मंगलवार को चातुर्मास समिति द्वारा विïद्या साहित्य दान कार्यक्रम होगा। महोत्सव के अंतर्गत 5 से 12 अगस्त तक अनेक कार्यक्रमा आयोजित होंगे। इसके ...

मुनि वही जिसके पास विवेक है : प्रवीणऋषि

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा तैयारी के साथ किया जाने वाला कार्य निसंदेह पूर्ण होता है इसलिए मरने से पहले उसकी तैयारी करें। जो मृत्यु को जीता है उसे मृत्यु का भी कष्ट नहीं होता। जिसने मरने से पहले मृत्यु का आभास नहीं किया वे अपने अंत समय में भी संथारे की साधना नहीं कर पाते। आचारांग सूत्र में बताया कि जीव जिस योनि में जाता है, उसी के शरीर से प्रेम करता है, दु:ख और कष्टों से बचकर जीना चाहता है। खटमल से लेकर शेर तक सभी जीव अपने शरीर को बचाने के कष्टों से भागते रहते हैं, उन्हें भय आयुष्य कर्म के बंध के कारण मृत्यु से भय लगता ही है, जिस तन में आत्मा रहती है उसे बनाए रखने और सम्मान पाने की लालसा में हिंसा, परिग्रह और दुष्कर्म करती रहती है। दु:खों से मुक्ति और सुखों की चाहत में साधना ही नहीं विराधना भी की जा सकती है इसलिए संयम और विवेक अपनाना चाहिए।...

स्वयं प्रभु बनने की है जैन दर्शन की साधना: प्रवीणऋषिजी

एएमकेएम में आयोजित धर्मसभा में प्रवचन श्रवण करने के लिए उपस्थित श्रद्धालु चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने चातुर्मास के अवसर पर 14 प्रकार के नियम ग्रहण कर उनका संयमपूर्वक पालन करने के बारे में बताया। हम छोटी-छोटी बातों का संयम रखेंगे तो हमारा शरीर अन्तर से सशक्त बनता है और १४ नियमों को ग्रहण करने से हमारी सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। यदि आपसे नियम टूटे तो उसका मंथन करें और स्वयं अपनी गलती की जिम्मेदारी स्वीकार करें, परिस्थितियों को दोष न दें और उसको पूरा करने का प्रयास करें। हमारी आत्मा शाश्वत और स्वाभाविक है। इसके होने का कोई कारण नहीं है, यह किसी के द्वारा निर्मित नहीं है। जिसे स्वर्ग, नरक, क्रोध, ज्ञान, अज्ञान, संयम सभी का अनुभव है, जो सभी दिशाओं में भ्रमण करती है- वह मैं हंू, वही मेरी आत्मा है, मैं ही निगोद से चरित्र तक पहुंचा हंू। यह आत्मा का ही स...

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