चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि कहा प्रायश्चित प्रार्थना से मिलता है और सजा या अपराध सिद्ध हो जाने पर मिलती है। प्रायश्चित करने और देने वालों में आपसी प्रेम बना रहता है और दण्ड या सजा देने पर आपस में वैर-दुश्मनी पनपती है। इसलिए अपने किए गए पापों के लिए कभी स्वयं को अपराधी बनाकर दंड न दें बल्कि उसका प्रायश्चित करें जो आपका जन्म-जन्मांतर सुधारकर कर्मों की निर्जरा करता है। अपने सामथ्र्य को स्वीकार करने पर ही वह आपका आचरण और स्वभाव बनेगा। अपनी आत्मा के शाश्वत स्वरूप को पहचानकर उसे स्वीकार करें। क्षमापना की प्रक्रिया का पहला सूत्र है- अपनी गलतियों को स्वीकार करना, न कि स्वयं को अपराधी मानना। जो व्यक्ति स्वयं को क्षमा कर सकता है उसी में दूसरों की गलतियों को भी क्षमा करने का सामथ्र्य होता है। जिसकी अन्तरात्मा में उजाला है उसमें कभी अंधकार हो ही नहीं सकता। सजा...
पुरुषवाक्कम स्थित एमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा बिना मंजिल के रास्तों पर चलेंगे तो भटकते ही रह जाएंगे। जिसे अपनी मंजिल नजर आए उसे परमात्मा श्रद्धाशील कहते हैं। अपनी मंजिल चुनें और फिर उसे प्राप्त करने की तैयारी शुरू करें। अपने रास्ते नहीं मंजिल तय करें। गति ही संसार का नियम है लेकिन जीव की प्रगति तभी हो सकती है जब वह चाहेगा। कोई जीव कैसे प्रगति कर सकता है? कई जीवों को बहुत परिश्रम के बाद भी प्रगति नहीं कर पाते। गति अधो भी हो सकती है और ऊध्र्व भी, यह जीव की इच्छा पर निर्भर करता है। प्रगति का पहला रहस्य है- तुम्हारा लक्ष्य, ध्येय और कामना क्या है। तपस्या करने के बाद भी समाधि का जागरण नहीं हो पाता, पूर्णता व लक्ष्यपूर्ति नहीं हो पाती इसका एकमात्र कारण है कि हमने साधनों को साध्य बना दिया है। युद्ध को भी कला बनाया जा सकता है। इसके लिए स्वयं को कलाकार बनना पड़ता है। अपने इस ...
पुरुषवाक्कम स्थित एमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने पर्यूषण पर्व के प्रथम दिन इस पर्व की महिमा बताते हुए कहा पर्यूषण पर्वों का सिरमोर है। सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो चुके परमात्मा तीर्थंकर भगवन्त जो स्वयं तीर्थ हैं वे भी स्वयं को पर्यूषण की आराधना करने से रोक नहीं सकते। उनका मन, रोम-रोम इस पर्व की आराधना करता है। संवत्सरी पर्व का कोई विकल्प नहीं है। जो विश्व को निर्मल बनाकर जगत का दु:ख दूर करने में हिमालय के समान अटल, अविचल है, जो जीवन, तन, मन और आत्मा को तीर्थ बनाता है ऐसा है जैन धर्म। तीर्थंकर परमात्मा जैसे देव कोई नहीं जो सबका कल्याण करते हैं। संसार के प्रत्येक जीव चाहे नारकी हो, देव हो या तिर्यंच हो, सभी को अपनी संतानें मानकर वात्सल्य भाव रखते हैं। वे चाहते हैं कि उनकी संतान भी उनके जैसे शुद्ध, बुद्ध और मुक्त बने, परमात्मा बन जाए।भगवान महावीर ने विश्व के दुर्भाग्य को सौभाग्य...
पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा श्रद्धा में बुद्धिमत्ता का प्रयोग करना चाहिए लेकिन श्रद्धा करते हुए बुद्धि का प्रयोग नहीं करना चाहिए। परमात्मा की आज्ञा को बिना अपनी तुच्छ बुद्धि का उपयोग कर श्रद्धा के साथ स्वीकार करें और उन्होंने जो सत्य मार्ग दिखाया है उसका अनुसरण करना चाहिए। सुरक्षा की चाह रखने वाले को नियम और आज्ञा का पालन करना जरूरी है। जो स्वयं परमात्मा की आज्ञा में नहीं रहता वह स्वयं परेशान होता है और दूसरों को भी दु:खी और परेशान करता है। गोशालक, रावण और दुर्योधन जैसे अनेकों उदाहरण ऐसे हैं जिन्होंने अपने अहंकार को नहीं छोड़ा और दूसरों को परेशान किया, जो व्यक्ति आत्मा का मूल्य भूलकर विषयों को प्राथमिकता देता है उन्हीं में रस लेता है, स्वत्व को भूलकर पर तत्त्व चिंतन करता है उसका स्वभाव कपट और छद्मस्थ बन जाता है। कोई उसे इससे बाहर निकालना चाहे तो भी...
पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा परमात्मा कहते हैं कि अपने ज्ञान, चारित्र रिश्तों की डिजाइन में बदलाव करें। जैसी आपकी मानसिकता होगी वैसा ही आपका जीवन हो जाएगा। यदि एक बार स्वयं की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव हो गया तो आप किसी हत्यारे की मानसिकता को भी बदलकर उसे सकारात्मक और अहिंसक बनाने में सक्षम हो जाएंगे। उन्होंने कहा, इस संसार का संचालन किसी एक सत्ता के हाथ में न होकर छह द्रव्यों- जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल के हाथों में है। इन्हीं की परस्पर क्रिया, प्रतिक्रिया से ही संपूर्ण विश्व का संचालन होता है। उन्होंने कहा कि जीवन में सफलता पाने के लिए परफेक्ट कार्य के साथ, ऑप्शन भी तैयार रखें। अपनी गलतियों से सीखें लें, उनकी पुनरावृत्ति कभी नहीं हो पाए और अपना चरित्र बदलें, यह प्रयत्न जीवन भर करें। यदि जीवन में इतना सुधार कर लिया तो आत्मा से परमात्मा ...
पुरुषवाक्कम स्थित एमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा गुणवत्ता और उसके पोषक तत्त्वों के आधार पर चार प्रकार बताए जिससे फसलों का उत्पादन और जीवन प्रभावित होता है। हम किसी की चुराई हुई वस्तु तो लौटा सकते हैं लेकिन किसी के प्राण लेने के बाद लौटा नहीं सकते। हमें किसी का जीवन हरण करने बचना चाहिए। परमात्मा कहते हैं हिंसा के दुष्परिणामों और उसके वाइब्रेशन से हम बच नहीं सकते। व्यक्तिगत जीवन में घटनाओं के बीज पुरुषार्थ के हाथों में होते हैं। मनुष्य जीवन, उच्च कुल में जन्म और अच्छे संस्कार पूर्व पुण्य के कारण मिले लेकिन उन्हें ग्रहण करना और धर्म के मार्ग पर प्रशस्त होना, संतों के सानिध्य में जाना पुरुषार्थ कहलाता है। परिवारिक जीवन की घटनाओं में कर्म, भाग्य, पुरुषार्थ के साथ-साथ रिश्तों की अहम भूमिका होती है। आपके साथ जुड़ा हुआ कोई आदमी खराब नहीं होता, बल्कि उसके साथ आपका रिश्ता कैसा है...
पुरुषवाक्कम स्थित एमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा धर्म के राजमार्ग पर वही पुरुष चलते हैं, जिन्होंने जिस उल्लास और उमंग से कदम उठाया है उसे मंजिल मिलने तक रुकने नहीं देते। धर्म मार्ग पर चलने से पहले मन में जो शंकाएं आती है, उन्हें मन से निकाल देना। इस जीव का चिर-परिचित है-आस्रव का द्वार, कषाय का रास्ता। आचारांग कहता है कि इस धर्म मार्ग में आज्ञा को दिल से स्वीकार करो, तर्क और बुद्धि से नहीं। आज्ञा पर चिंतन और तर्क नहीं किया जाता है, जिसने आज्ञा पर तर्क कर लिया उसने आज्ञा की शक्ति खो दी। जब अन्तर में शक्ति का जागरण होता है तो ही शुभ काम करने का मन में आता है, इसे उसी समय तत्काल कर लें। यदि आगे के लिए टाल देंगे तो बाद में नहीं कर पाएंगे। यदि अपने से बड़े-जन जो आज्ञा देते हैं तो वे आज्ञापालन की ताकत और शक्ति भी देते हैं, उस पर यदि प्रश्नचिन्ह लगाओगे तो आने वाली शक्ति का मार्...
पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने रक्षाबंधन पर कहा यदि जीवन में भाई-बहन का रिश्ता जिन्दा हो गया तो संसार के सारे दुष्कर्मी सदाचारी हो जाएंगे। यही हमारी परंपराएं हैं, हमारी भारतीय संस्कृति और धर्म कहता है। आज समाज को चाहिए कि बेटे और बेटियों दोनों को बोलचाल में किसी को नाम से बुलाने के बजाय रिश्तों का संबोधन करने की सीख दें, उन्हें रिश्तों की अहमियत और सदाचार का पाठ पढ़ाएं और मनुष्य को बिगाडऩे वाली संस्कृति को तिलांजलि दें। हमारी संस्कृति में रिश्तों से समाज का हर व्यक्ति बंधा हुआ है। रिश्ते हमें बांधते भी हैं और मुक्त भी कराते हैं। रक्षा और निस्वार्थता का रिश्ता मुक्त कराता है और स्वार्थ का रिश्ता बंधनों में बांधता है। सच्चे अर्थों में रक्षाबंधन सुरक्षा और रक्षा का रिश्ता है। किससे रक्षा होनी चाहिए। पाप-दु:ख से, फल-विष, कारण और परिणाम से बचना चाहिए। हम दुनिय...
पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा जन्म, मरण और जीवन तीनों एक दूसरे के पूरक हैं। परमात्मा के गणधर पहले दीक्षा लेते हैं व धर्म ग्रहण करते हैं फिर परमात्मा से अपने सवाल पूछकर जिज्ञासाएं प्रकट करते हैं। अत: पहले धर्म को जाने बिना ग्रहण करें। परमात्मा का ज्ञान प्राप्त हो जाए तो आर्त और रौद्र ध्यान कभी नहीं होगा, जीवन में शांति और दु:खों का नाश होता है। जब बीज मरता है तो ही पौधा जन्मेगा। यही जीवन-मरण का सत्य है। गौरवमय जीवन जीने का एकमात्र सूत्र सरलता है। जो मन, वचन, कर्म से समान होता है वही जीवन में सकारात्मक व सरल होता है। जीवन से जैसे-जैसे सरलता गायब होती है अशुभ का बंध होता जाता है। पारिवारिक रिश्तों में पारदर्शिता होनी चाहिए। किसी से भी छल-कपट और द्वेष न करें। सरल बनने का उद्देश्य भी केवल संसार में दिखावा नहीं बल्कि सफलता, शांति और स्वयं सिद्ध बनना होना च...
चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में रविवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि के सानिध्य में आचार्य आनन्दऋषि का 119वां जन्मोत्सव शुरू हुआ। आगामी 12 अगस्त तक चलने वाले इस महोत्सव के पहले दिन 36 लाख नवकार महामंत्र का जाप और साथ ही ध्यान साधना कार्यक्रम हुआ। इस मौके पर उपाध्याय प्रवर ने कहा नवकार महामंत्र के प्रभाव से भवी जीवों के रोग व दुखों का शमन और प्रगति व कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। नवकार के श्रवण और जप से संसार में विपदाओं से त्रस्त प्राणियों में नव ऊर्जा का संचार कर उनका जीवन मंगलमय बनता है, उन्हें मोक्ष मार्ग पर ले जाता है। इसी के साथ श्री एस.एस. जैन संघ, नॉर्थ टाउन, पेरम्बूर द्वारा णमोत्थुणं जाप हुआ जबकि सोमवार को एकासन दिवस एवं मंगलवार को चातुर्मास समिति द्वारा विïद्या साहित्य दान कार्यक्रम होगा। महोत्सव के अंतर्गत 5 से 12 अगस्त तक अनेक कार्यक्रमा आयोजित होंगे। इसके ...
चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा आहार में संयम रखें। इससे स्वस्थ जीवन जी सकेंगे। परमात्मा ने जीवन को चलाने के लिए छह पर्याप्ति बताए हैं जो मैं आहार के लिए पुद्गल ग्रहण करता हंू उसी से मेरा शरीर, भाषा,मन सभी चलते हैं। पहला सूत्र है आहार, जिसके कारण शरीर का पोषण हो न कि शरीर परेशान हो जाए। यह आपको ही तय करना है कि आपके शरीर के लिए क्या जरूरी है। आपका शरीर ही आपका गुरु बन सकता है। दूसरा सूत्र है शरीर। इससे हम जितना अधिक काम लेंगे व परिश्रम करेंगे, इसकी क्षमता बढ़ेगी। इसे स्वस्थ, सशक्त और समर्थ बनाना है तो इसका पूर्ण उपयोग करना होगा। तीसरा सूत्र है उपाधीश यानी बोझ। अपने मस्तिष्क पर हम व्यर्थ के विचारों का दबाव बनाए रखते हैं और व्यर्थ ही इस भार को ढोते रहते हैं। कोई काम हो जाने के बाद भी उसे नहीं छोडऩा ही उपाधि कहलाता है। हमें जम्बूस्वामी के चरित्र स...
चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा तैयारी के साथ किया जाने वाला कार्य निसंदेह पूर्ण होता है इसलिए मरने से पहले उसकी तैयारी करें। जो मृत्यु को जीता है उसे मृत्यु का भी कष्ट नहीं होता। जिसने मरने से पहले मृत्यु का आभास नहीं किया वे अपने अंत समय में भी संथारे की साधना नहीं कर पाते। आचारांग सूत्र में बताया कि जीव जिस योनि में जाता है, उसी के शरीर से प्रेम करता है, दु:ख और कष्टों से बचकर जीना चाहता है। खटमल से लेकर शेर तक सभी जीव अपने शरीर को बचाने के कष्टों से भागते रहते हैं, उन्हें भय आयुष्य कर्म के बंध के कारण मृत्यु से भय लगता ही है, जिस तन में आत्मा रहती है उसे बनाए रखने और सम्मान पाने की लालसा में हिंसा, परिग्रह और दुष्कर्म करती रहती है। दु:खों से मुक्ति और सुखों की चाहत में साधना ही नहीं विराधना भी की जा सकती है इसलिए संयम और विवेक अपनाना चाहिए।...