साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने पर्यूषण पर्व के पांचवें दिन सोमवार को कहा धर्म के मार्ग पर किसी को रुकावट नहीं बनना चाहिए। भगवान कृष्ण ने धर्म के क्षेत्र में लोगों को संबल दिया था। वेे अपने माता पिता के चरणों को ही चारों तीर्थ मानते थे। माता पिता जिनके घर में है समझो चारों धाम उनके पास है। ऐसे में लोगों को तीर्थ धाम जाने की जरूरत ही नहीं है। श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता पिता की जिस भावना से सेवा की उसी भाव से सभी को अपने माता पिता की सेवा कर अध्यात्म की ओर बढऩा चाहिए। मां बाप की सुंदर सेवा करने वाले ही मोक्ष की मंजिल पाते हैं। अपने कर्तव्य को कभी नहीं भूलना चाहिए। परमात्मा का दिव्य जिनशासन संसार के प्रत्येक आत्मा को शांति और आनंद प्रदान करता है। पर्यूषण पर्व के दिवस का एक एक दिन निकल रहा है। इस दिन में अगर मनुष्य तप, ध्यान और धर्म कर ले तो दिन सार्थक बन सकता है। जीवन...
साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने पर्यूषण पर्व के दूसरे दिन कहा पर्यूषण आने से घर घर में आनंद छाता है। पर्व और त्योहार हमारे समाज के अंदर हमेशा से चलते आए हैं। त्योहार मनुष्य की इन्द्रियों, मन और शरीर को पुष्ट करते हैं जबकि पर्व मनुष्य के आत्मगुणों को। इससे आत्मा को बहुत बड़ा लाभ होता है। त्योहार पर लोग अच्छे कपड़ा पहनते हैं, लेकिन पर्व के दिनों में त्याग और तप करने की इच्छा होती है। दिल को सद्गुणों से जोडऩे की इच्छा होती है। पर्यूषण पर्व पर लोगों को तप तपस्या कर अपना जीवन सफल बनाने की ओर आगे बढऩा चाहिए। इस आठ दिन में अपनी आत्मा की निर्जरा कर लेनी चाहिए। इसका वास्तविक लाभ तब मिलेगा जब अपने द्वारा कोई भी भूल हुई हो तो उससे क्षमा याचना करलें। छोटा हो या बढ़ा, गलती के लिए क्षमा मांग लेनी चाहिए। पर्यूषण में मनुष्य अपने आत्महित के लिए जो भी करना चाहे कर सकता है। सागरमुनि...
एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने पर्यूषण पर्व के दूसरे दिन कहा कि पर्यूषण शाश्वत भी है और अशाश्वत भी। भाव की दृष्टि से शाश्वत है और काल की दृष्टि से अशाश्वत है। सत्य दिवस रूप में मनाए गए इस दिवस पर कृष्ण चरित्र का वाचन करते हुए उन्होंने कहा वे महान कर्मयोगी भी थे और ध्यानयोगी भी। उन्होंने लोकनीति और अध्यात्म का समन्वय किया। वे एक सफल राजनीतिज्ञ भी थे। नम्रता और विनय की पराकाष्ठा के दर्शन उन महान योगीश्वर के जीवन में होते हंै। समाज सुधारक, शांति दूत, ज्ञानेश्वर, अध्यात्म योगी,प्रेम की मूर्ति, उदारता जैसे कई गुणों के स्वामी थे। सााध्वी स्नेह प्रभा ने सत्य दिवस पर चर्चा करते हुए कहा कि भगवान सत्य है यह कहने के बदले ये कहना उचित होगा कि सत्य ही भगवान है। मनुष्य के धर्म की जितनी भी क्रियाएं हैं उन सबका लक्ष्य सत्य ही है। हमारी आत्मा अनादि काल से असत्य के अंधकार में फंसकर द...
एसएस जैन संघ मदुरान्तकम में पर्यूषण पर्व पर पधारे स्वाध्याय संघ की स्वाध्यायी प्रेमलता बंब ने कहा शास्त्रों ने देने के भाव को श्रेष्ठ कहा है। प्रकृति के नियम भी यही कहते हैं कि जो देता है वो पाता है। जो रोकता है वो सड़ता है। देने वाले निस्वार्थ होते है, अपना सब कुछ लुटाने के बाद भी उनको आंतरिक संतुष्टि और सुख की अनुभूति होती है। देने से जो दुआएं मिलती हैं उसके सामने बड़े से बड़ा भौतिक सुख भी फीका पड़ जाता है इसलिए हमें देने का संस्कार अपने भीतर उजागर करना चाहिए और आने वाली पीढ़ी में भी इसके लिए जागरूकता बढ़ानी चाहिए। आज के समय में यह दुर्भाग्यपूर्ण सत्य है कि हम अपना उचित हिस्सा दिए बिना सामने वाले से सिर्फ लेने का कार्य करते हैं। जब आप किसी को देते हैं तो आप उसकी ही नहीं खुद की नजर में भी बड़े बन जाते हैं। विश्वास रखने वाले की झोली कभी खाली नहीं होती, प्रकृति हमेशा उसकी भरपाई करती है। संच...
साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में मुनि संयमरत्न विजय ने व्रत रूपी आभूषण से विभूषित होने का अवसर ही पर्यूषण है। यह पर्व हमें अपने कर्तव्य पथ पर चलने का संदेश देता है। मानव भव ही एक ऐसा भव है, जिसमें मानव कुछ कर सकता है, बाकी नरक, तिर्यंच व देव गति में तो टाइम पास के अलावा कुछ नहीं। पर्यूषण पर्व के पहले दिन कहा जो हमारे आत्म प्रदूषण, कषाय दूषण व कर्मों की उष्णता दूर कर दे, वास्तव में वही पर्यूषण है। अध्यात्म के महल में चढऩे की प्रथम सीढ़ी है-‘अमारि प्रवर्तन’ अर्थात् अहिंसा का पालन करना और करवाना। नीचे देखकर चलने से जीव जंतुओं की रक्षा होती है, ठोकर नहीं लगती और पढ़ी वस्तु भी मिल जाती है। दया धर्म का पालन करने से हमारा हृदय कोमल होता है, परिणाम स्वरूप हृदय रूपी धरती पर हम साधार्मिक भक्ति, क्षमापना, त्याग, तपश्चर्या आदि के बीज बो सकते हैं। धर्म का मूल ही दया है और बिना मूल के तो ...
साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने पर्यूषण पर्व के पहले दिन कहा पर्यूषण पर्व जन जन को जाग्रत करने के लिए आता है। इसका लाभ लेकर जीवन को सफल बनाएं। इसका लाभ लेने से चूकना नहीं चाहिए। पर्यूषण के आठ दिनों में मनुष्य अपने आत्मा के हित के लिए जो भी करना चाहे वे कर सकता है। जीवन की खाली झोली को त्याग नियम से भर लेना चाहिए। सुज्ञान की ज्योति से मनुष्य को अपने अज्ञान के अंधेरे को दूर करना चाहिए। अपनी दिव्य धर्म भावनाओं के साथ पर्यूषण का लोगों को लाभ लेना चाहिए। जब भी ऐसा दिव्य प्रसंग भाग्यशाली आत्मा को प्राप्त होता है तो वह इसका लाभ लेकर जीवन को धन्य बना लेती है। परमात्मा के प्रति लोगों को भक्ति दिखानी चाहिए। जब तक संतों का प्रवचन चलता हो उठने के बजाय ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। प्रवचन में दिया हुआ समय जीवन को बदल सकता हैं। लेकिन उससे पहले उसे भाव पूर्वक जीवन में उतारने की जरूरत है...