चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा जैसी संगत वैसी रंगत हो जाती है। महर्षि बाल्मीकि कुसंग से डाकू बन गए थे, संतों का क्षणिक संपर्क जीवन की दिशा बदल देता है। साध्वी ने कहा गंगा पाप का, चंद्रमा ताप का, कल्पवृक्ष दीनता के अभिशाप का अपहरण करता है लेकिन सत्संग पाप, ताप व दैन्य तीनों का तत्काल नाश कर देता है। संतों के संग से वैर और अभिशाप का सुलगता दावानल बुझ जाता है। जैसे पारस के संपर्क से लोहा सोना बन जाता है वैसे ही संतों के संग से पापी धर्मात्मा बन जाता है। आज के युग में संत और साहित्य ही उत्थान के मार्ग हैं। आध्यात्मिक भाव रत्नों से भरी मंजूषा के समान है। यदि मन स्थिर न होने पर होने वाली आराधना व्यर्थ होती है। जबान पर शब्द और हृदय में भाव हो तब तक तो ठीक वरना वैसे ही होता है जैसे तेली का बैल कहीं पहुंचता नहीं और केवल एक ही सर्किल में घूमता रहता है वैसे ही इन्...
चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि प्रमाद आत्मा का शत्रु है,जीव को अधोगति में ले जाता है प्रमादी को हर जगह भय होता है पर अप्रमादी को नहीं। भगवान महावीर के सिद्धांत सम्यक दर्शन की ओर ले जाते हैं। विकृतियों के प्रति चिंतन और स्व के प्रति जागरूकता की आवश्यकता है। स्वयं से हमें साक्षात्कार करना होगा। जीवन में रहकर हमें कहीं न कहीं ऐसी शैली को विकसित करना होगा जो हमें कर्तव्यपूर्ण और बुद्धियुक्त जीवन जीने की प्रेरणा दे सके। आसक्ति के अवसरों के बीच रहकर अनासक्ति का दुर्लभ कार्य मनुष्य को करना होगा। जीवन में यदि दुख वेदना और पीड़ा है तो इसका सृजन हमने ही किया है। अधिक ममता और इच्छा ही वेदना के कारण है। ममता भाव को छोडक़र समता भाव को बढ़ाना होगा। तभी जीवन को शांतिमय बनाया जा सकता है। हम साधना के लिए समय नहीं निकाल पाए इसलिए साधना के क्षेत्र में स्वविवेचना जरूरी है। अपूर...
एसएस जैन संघ ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि विकारों की पहचान सम्यकत्व के लक्षण से होती है। यही श्रद्धा के लक्षण मोक्ष का लर्निंग लाइसेंस है। हमारी श्रद्धा गुरु, देव और धर्म पर मजबूत होनी चाहिए। व्यवहार में विचार करें तो विश्वास से तैरते हैं तो किनारे भी मिलते हैं। इसके सामने स्वर्ग की गद्दी भी हिल जाती है। शरीर में जो स्थान रीढ़ की हड्डी का है वही स्थान जीवन में श्रद्धा का है। जैसे दांतों के बीच जिव्हा सुरक्षित रहती है वैसे ही संसार में समदृष्टि आत्मा भी सावधान रहती है। जब तक आदमी समझ नहीं पकड़ता वहां तक ही जीवन में अंधेरा है। जैसे बालक न जानकर बेर को पकड़ क र कीमती रत्न छोड़ देता है वैसे ही मिथ्यावी भी समेकित रत्न को छोडक़र भोगों में लिप्त हो जाता है। शरीर की हड्डी टूटने पर एक्सरे से, सिर में गांठ होने पर सीटी स्कैन कर और शरीर की गांठ का सोनोग्राफी से निदान किया जाता है। आ...