जैन

आत्मा का निकल जाना ही मृत्यु है: साध्वी कुमुदलता

चेन्नई. अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में विराजित साध्वी कुमुदलता ने कहा शरीर से आत्मा का निकल जाना ही मृत्यु है। जीवन तो पशु पक्षी को भी मिलता है पर मानव जीवन महामानव बनने के लिए मिला है। मानव अगर किसी की अर्थी देखता है तो चिंतन मनन नहीं करता। मौत को स्वीकार नहीं करता। मौत कई तरीके से आती है यह सच समझ जाएंगे तो उद्धार हो जाएगा। अपने आज के जीवन को स्वर्ग बनाऐगे तो आगे भी स्वर्ग मिलेगा। हम परमात्मा से जुड़ जाएं तो यह जीवन सार्थक हो जाएगा। मृत्यु का साक्षात्कार समझ में आ जाए तो जीवन जीने का तरीका आ जाए। उन्होंने कहा कि लेश्या 6 प्रकार की होती है। जीवन के सारे अधिकारों को जीओ पर लेश्या को समझो। कृष्णा लेश्या का रंग है काला। कृष्णा लेश्या वाला हमेशा दूसरों को दुख देने का प्रयास करेगा। वह हमेशा आर्त और रौद्र ध्यान ध्याता है। हम कृष्णा लेश्या में जीते हैं तो नारकी का बंधन बांधते हैं। जीएं तो तेजो ...

परिग्रह का परिमाण करना चाहिये: वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने पांचवें व्रत की व्याख्या करते हुवे कहा कि परिग्रह का परिमाण करना चाहिये। आपको 12 व्रतों का पालन करने में कोई भी अड़चन नहीं आती है। क्योंकि आप जितना चाहो उतना व्रतों में छूट ( आगार ) रख सकते हो अगर हम व्रत ग्रहण करते हैं तो जितना आगार रखेंगे उतना ही आश्रव रहेगा। बाकी का आश्रव रुक जायेगा बांध ( डेम ) में से जितना चैनल से पानी छोड़ेंगे उतना ही बाहर होगा। वैसे ही हम पच्चखान करते हैं तो जितना छूट रखी है उतना ही कर्म बंधन होगा बाकी के कर्मों के बंधन से छुटकारा मिल जायेगा। अतः खेत मकान दुकान गोडाउन व सोना चांदी रुपया हीरे मोती जवाहरात आदि तथा सचित परिग्रह में पशु दास दासी हाथी घोड़ा गाय बैल भैंस आदि आप जितने चाहो उतने...

कथनी – करनी में रखे समानता : आचार्य श्री महाश्रमण

माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में बसवा समिति के अध्यक्ष भारत के पूर्व कार्यवाहक राष्ट्रपति श्री बासप्पा दनप्पा जत्ती (बी डी जत्ती) के सुपुत्र श्री अरविंद जत्ती ने *”वचन“* ग्रन्थ को आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में लोकार्पण करते हुए कहा कि 12वीं शताब्दी के संत बसवेश्वरजी के सर्व समानता के समाज का निर्माण करने की कोशिश में उनके विचारों को 173 शरणों में, दोहों में, कविता में लिखा यह ग्रन्थ हैं| दया के बिना धर्म नहीं है, मुझसे छोटा कोई नहीं, आदि अनेक सारगर्भित वचनों का संकलन है| श्री जत्ती ने कहा कि अभी भारत वर्ष में स्वच्छ अभियान चल रहा हैं, हम सब उसमें साथ दे रहे हैं| मगर मैने मोदीजी के आगे ही बताया था कि बसवेश्वर जी के दृष्टिकोण से यह अपूर्ण स्वच्छ भारत होगा| वो आश्चर्य में पड़ गए, तब वचनों के द्वारा मैने उनकों उत्तर दिया कि अंतरंग शुद्धि और बहिरंग शुद्ध...

चारित्र की सम्यक् आराधना के लिए ज्ञानाराधना जरूरी: आचार्य महाश्रमण

*भिक्षु भक्ति संध्या से भिक्षुमय बना जैन तेरापंथ नगर माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सुत्र के दूसरे अध्याय का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि धर्माराधना के दो प्रकार श्रुत धर्माराधना और चारित्र धर्माराधना हैं| श्रुत यानी ज्ञान की आराधना, ज्ञानाराधना के लिए स्वाध्याय करना जरूरी होता है| दशवैकालिक आगम के दसवें अध्ययन में कहा भी गया है “पढमम णाणं तऒ दया” पहले ज्ञानार्जन करो फिर आचरण करो| आचार्य श्री ने आगे कहा कि स्वाध्याय के पांच प्रकार बताए गए हैं – वाचना, प्रछना, पुनरावृति, अनुप्रेक्षा, और धर्मकथा| अच्छी पुस्तकों, आगमों का स्वाध्याय वाचना के अन्तर्गत आता है, जो पढ़ा है, उसमें जिज्ञासा, प्रति प्रश्न करना प्रछना के अंतर्गत आता है| जो पढ़ा है, उसका स्थिरिकरण के लिए पुनरावृत्तन करना, बार-बार पढ़ना| जो पढ़ा है उसमें अनुचिंतन करना -अनुप...

गुरु पूर्णिमा को ही हुई थी तेरापंथ धर्म की स्थापना : आचार्य महाश्रमण

आत्मबली और मनोबली थे आचार्य भिक्षु चेन्नई. माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में विराजित आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में शुक्रवार को उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ ने तेरापंथ धर्मसंघ के प्रवर्तक आचार्य भिक्षु का स्मरण कर उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके पर आचार्य के साथ उनके एक ओर पूरा साधु समुदाय तो दूसरी ओर साध्वी व समणी समुदाय विराजित था तथा सामने मुमुक्षुओं सहित श्रावक-श्राविकाओं का जनसमूह उपस्थित था। कार्यक्रम की शुरुआत आचार्य के नमस्कार महामंत्रोच्चार के साथ हुई। इसके बाद उन्होंने प्रवचन में कहा आदमी के भीतर अनंत खजाना भरा हुआ है। कोई-कोई अतीन्द्रिय ज्ञानी उसका साक्षात्कार कर लेता है। गहराई में पैठने वाला तो कोई-कोई ही होता है। संभवत: आचार्य भिक्षु उस ज्ञान की गहराई तक जाने वाले आचार्य थे। आचार्य ने राजनगर की घटना का प्रसंग को सुनाते हुए कहा उनको लगा कि वर्तमान में...

*व्यक्ति के अच्छे या बुरे व्यवहार में पिछले जन्म का सम्बन्ध : आचार्य श्री महाश्रमण

पूर्वजन्म का सिद्धांत बड़ा महत्वपूर्ण है, ऐसा लगता है हमारे जीवन पर पूर्व जन्म की छाया रहती हैं| पूर्वजन्म का प्रभाव वर्तमान जीवन पर रहता है| कोई व्यक्ति ऋद्धिवान होता है, बुद्धिमान होता है, शांत होता है, भौतिक सुखों से विरागी-संयम प्रिय होता है, तो कोई व्यक्ति इससे उलट मूर्ख होता है, दरिद्री होता है, क्रोधी होता है और भौतिक सुखों में आसक्त होता है|  इन स्थितियों के संदर्भ में वर्तमान जीवन की घटनाओं को तो खोजा जा सकता है| वह हमारे सामने प्रत्यक्ष होती हैं| परंतु इन स्थितियों का गहराई में, मूल में है, वह भीतर के पिछले जन्म तक चला जाता है| पिछले जन्म के वर्तमान जीवन की परिस्थितियों का बीच संबंध खोजा जा सकता है| एक आदमी साधु बनता है, वैराग्यमय उसका विचार हैं, भाव हैं, परिणाम है, तो संभव है उसने पिछले जन्म मैं भी कहीं न कहीं साधना की है| उसका प्रभाव, उसकी छाया यहां पड़ती हैं और वह यहां भी वैरा...

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