एएमकेएम

अपनी गलतियों का पश्चाताप करने वाला सम्यक: प्रवीणऋषि

पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा श्रद्धा में बुद्धिमत्ता का प्रयोग करना चाहिए लेकिन श्रद्धा करते हुए बुद्धि का प्रयोग नहीं करना चाहिए। परमात्मा की आज्ञा को बिना अपनी तुच्छ बुद्धि का उपयोग कर श्रद्धा के साथ स्वीकार करें और उन्होंने जो सत्य मार्ग दिखाया है उसका अनुसरण करना चाहिए। सुरक्षा की चाह रखने वाले को नियम और आज्ञा का पालन करना जरूरी है। जो स्वयं परमात्मा की आज्ञा में नहीं रहता वह स्वयं परेशान होता है और दूसरों को भी दु:खी और परेशान करता है। गोशालक, रावण और दुर्योधन जैसे अनेकों उदाहरण ऐसे हैं जिन्होंने अपने अहंकार को नहीं छोड़ा और दूसरों को परेशान किया, जो व्यक्ति आत्मा का मूल्य भूलकर विषयों को प्राथमिकता देता है उन्हीं में रस लेता है, स्वत्व को भूलकर पर तत्त्व चिंतन करता है उसका स्वभाव कपट और छद्मस्थ बन जाता है। कोई उसे इससे बाहर निकालना चाहे तो भी...

जैसी आपकी मानसिकता होगी वैसा ही आपका जीवन होगा: प्रवीणऋषि

पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा परमात्मा कहते हैं कि अपने ज्ञान, चारित्र रिश्तों की डिजाइन में बदलाव करें। जैसी आपकी मानसिकता होगी वैसा ही आपका जीवन हो जाएगा। यदि एक बार स्वयं की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव हो गया तो आप किसी हत्यारे की मानसिकता को भी बदलकर उसे सकारात्मक और अहिंसक बनाने में सक्षम हो जाएंगे। उन्होंने कहा, इस संसार का संचालन किसी एक सत्ता के हाथ में न होकर छह द्रव्यों- जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल के हाथों में है। इन्हीं की परस्पर क्रिया, प्रतिक्रिया से ही संपूर्ण विश्व का संचालन होता है। उन्होंने कहा कि जीवन में सफलता पाने के लिए परफेक्ट कार्य के साथ, ऑप्शन भी तैयार रखें। अपनी गलतियों से सीखें लें, उनकी पुनरावृत्ति कभी नहीं हो पाए और अपना चरित्र बदलें, यह प्रयत्न जीवन भर करें। यदि जीवन में इतना सुधार कर लिया तो आत्मा से परमात्मा ...

भाई-बहन का रिश्ता जिन्दा हो गया तो संसार के सारे दुष्कर्मी सदाचारी हो जाएंगे: प्रवीणऋषि

पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने रक्षाबंधन पर कहा यदि जीवन में भाई-बहन का रिश्ता जिन्दा हो गया तो संसार के सारे दुष्कर्मी सदाचारी हो जाएंगे। यही हमारी परंपराएं हैं, हमारी भारतीय संस्कृति और धर्म कहता है। आज समाज को चाहिए कि बेटे और बेटियों दोनों को बोलचाल में किसी को नाम से बुलाने के बजाय रिश्तों का संबोधन करने की सीख दें, उन्हें रिश्तों की अहमियत और सदाचार का पाठ पढ़ाएं और मनुष्य को बिगाडऩे वाली संस्कृति को तिलांजलि दें। हमारी संस्कृति में रिश्तों से समाज का हर व्यक्ति बंधा हुआ है। रिश्ते हमें बांधते भी हैं और मुक्त भी कराते हैं। रक्षा और निस्वार्थता का रिश्ता मुक्त कराता है और स्वार्थ का रिश्ता बंधनों में बांधता है। सच्चे अर्थों में रक्षाबंधन सुरक्षा और रक्षा का रिश्ता है। किससे रक्षा होनी चाहिए। पाप-दु:ख से, फल-विष, कारण और परिणाम से बचना चाहिए। हम दुनिय...

समाज का नजरिया बदले में समर्थ थे मरुधर केसरी: प्रवीणऋषि

एएमकेएम परिसर में शनिवार को मरुधर केसरी मिश्रीमलजी की 128वीं जन्म-जयंती उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि व तीर्थेशऋषि के सानिध्य में जप-तप, आराधना और सामायिक साधना के साथ मनाई गई। उपाध्याय प्रवर ने मरुधर केसरी का जीवन परिचय देते हुए कहा कि जब दुनिया में अशांति, पाप, क्रोध और बुराइयां पनपती है, तब-तब दुनिया में मरुधर केसरी जैसे महापुरुषों का आगमन होता है। जिनके पास मर्यादा को जीने का बल और साधना से सिद्ध मंगलपाठ हो तो वे स्वयं के साथ-साथ दूसरों की बाधाएं भी दूर करते हैं। उनके पास परंपराओं से हटकर दृष्टिकोण और समाज का नजरिया बदलने की सामथ्र्य थी। वे मंगलपाठ के साथ मंगल व्यवस्था भी करते थे और जरूरतमंद की सहायता भी। आस्था को ही व्यवस्था का बल मिलता है, वे देखते नहीं थे कि आनेवाला व्यक्ति किस परंपरा का है। प्रवीणऋषि ने कहा, इस संसार के दलदल में गुरुदेव ने जिनशासन के संघ का कमल खिलाया। उनके जीवन में पार...

जन्म, मरण और जीवन तीनों एक दूसरे के पूरक है: प्रवीणऋषि

पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा जन्म, मरण और जीवन तीनों एक दूसरे के पूरक हैं। परमात्मा के गणधर पहले दीक्षा लेते हैं व धर्म ग्रहण करते हैं फिर परमात्मा से अपने सवाल पूछकर जिज्ञासाएं प्रकट करते हैं। अत: पहले धर्म को जाने बिना ग्रहण करें। परमात्मा का ज्ञान प्राप्त हो जाए तो आर्त और रौद्र ध्यान कभी नहीं होगा, जीवन में शांति और दु:खों का नाश होता है। जब बीज मरता है तो ही पौधा जन्मेगा। यही जीवन-मरण का सत्य है। गौरवमय जीवन जीने का एकमात्र सूत्र सरलता है। जो मन, वचन, कर्म से समान होता है वही जीवन में सकारात्मक व सरल होता है। जीवन से जैसे-जैसे सरलता गायब होती है अशुभ का बंध होता जाता है। पारिवारिक रिश्तों में पारदर्शिता होनी चाहिए। किसी से भी छल-कपट और द्वेष न करें। सरल बनने का उद्देश्य भी केवल संसार में दिखावा नहीं बल्कि सफलता, शांति और स्वयं सिद्ध बनना होना च...

36 लाख महामंत्र जाप से आचार्य आनन्दऋषि जन्मोत्सव शुरू: प्रवीणऋषि

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में रविवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि के सानिध्य में आचार्य आनन्दऋषि का 119वां जन्मोत्सव शुरू हुआ। आगामी 12 अगस्त तक चलने वाले इस महोत्सव के पहले दिन 36 लाख नवकार महामंत्र का जाप और साथ ही ध्यान साधना कार्यक्रम हुआ। इस मौके पर उपाध्याय प्रवर ने कहा नवकार महामंत्र के प्रभाव से भवी जीवों के रोग व दुखों का शमन और प्रगति व कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। नवकार के श्रवण और जप से संसार में विपदाओं से त्रस्त प्राणियों में नव ऊर्जा का संचार कर उनका जीवन मंगलमय बनता है, उन्हें मोक्ष मार्ग पर ले जाता है। इसी के साथ श्री एस.एस. जैन संघ, नॉर्थ टाउन, पेरम्बूर द्वारा णमोत्थुणं जाप हुआ जबकि सोमवार को एकासन दिवस एवं मंगलवार को चातुर्मास समिति द्वारा विïद्या साहित्य दान कार्यक्रम होगा। महोत्सव के अंतर्गत 5 से 12 अगस्त तक अनेक कार्यक्रमा आयोजित होंगे। इसके ...

जो मिला है उसका सदुपयोग करें : प्रवीणऋषि

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा आहार में संयम रखें। इससे स्वस्थ जीवन जी सकेंगे। परमात्मा ने जीवन को चलाने के लिए छह पर्याप्ति बताए हैं जो मैं आहार के लिए पुद्गल ग्रहण करता हंू उसी से मेरा शरीर, भाषा,मन सभी चलते हैं। पहला सूत्र है आहार, जिसके कारण शरीर का पोषण हो न कि शरीर परेशान हो जाए। यह आपको ही तय करना है कि आपके शरीर के लिए क्या जरूरी है। आपका शरीर ही आपका गुरु बन सकता है। दूसरा सूत्र है शरीर। इससे हम जितना अधिक काम लेंगे व परिश्रम करेंगे, इसकी क्षमता बढ़ेगी। इसे स्वस्थ, सशक्त और समर्थ बनाना है तो इसका पूर्ण उपयोग करना होगा। तीसरा सूत्र है उपाधीश यानी बोझ। अपने मस्तिष्क पर हम व्यर्थ के विचारों का दबाव बनाए रखते हैं और व्यर्थ ही इस भार को ढोते रहते हैं। कोई काम हो जाने के बाद भी उसे नहीं छोडऩा ही उपाधि कहलाता है। हमें जम्बूस्वामी के चरित्र स...

मुनि वही जिसके पास विवेक है : प्रवीणऋषि

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा तैयारी के साथ किया जाने वाला कार्य निसंदेह पूर्ण होता है इसलिए मरने से पहले उसकी तैयारी करें। जो मृत्यु को जीता है उसे मृत्यु का भी कष्ट नहीं होता। जिसने मरने से पहले मृत्यु का आभास नहीं किया वे अपने अंत समय में भी संथारे की साधना नहीं कर पाते। आचारांग सूत्र में बताया कि जीव जिस योनि में जाता है, उसी के शरीर से प्रेम करता है, दु:ख और कष्टों से बचकर जीना चाहता है। खटमल से लेकर शेर तक सभी जीव अपने शरीर को बचाने के कष्टों से भागते रहते हैं, उन्हें भय आयुष्य कर्म के बंध के कारण मृत्यु से भय लगता ही है, जिस तन में आत्मा रहती है उसे बनाए रखने और सम्मान पाने की लालसा में हिंसा, परिग्रह और दुष्कर्म करती रहती है। दु:खों से मुक्ति और सुखों की चाहत में साधना ही नहीं विराधना भी की जा सकती है इसलिए संयम और विवेक अपनाना चाहिए।...

स्वयं प्रभु बनने की है जैन दर्शन की साधना: प्रवीणऋषिजी

एएमकेएम में आयोजित धर्मसभा में प्रवचन श्रवण करने के लिए उपस्थित श्रद्धालु चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने चातुर्मास के अवसर पर 14 प्रकार के नियम ग्रहण कर उनका संयमपूर्वक पालन करने के बारे में बताया। हम छोटी-छोटी बातों का संयम रखेंगे तो हमारा शरीर अन्तर से सशक्त बनता है और १४ नियमों को ग्रहण करने से हमारी सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। यदि आपसे नियम टूटे तो उसका मंथन करें और स्वयं अपनी गलती की जिम्मेदारी स्वीकार करें, परिस्थितियों को दोष न दें और उसको पूरा करने का प्रयास करें। हमारी आत्मा शाश्वत और स्वाभाविक है। इसके होने का कोई कारण नहीं है, यह किसी के द्वारा निर्मित नहीं है। जिसे स्वर्ग, नरक, क्रोध, ज्ञान, अज्ञान, संयम सभी का अनुभव है, जो सभी दिशाओं में भ्रमण करती है- वह मैं हंू, वही मेरी आत्मा है, मैं ही निगोद से चरित्र तक पहुंचा हंू। यह आत्मा का ही स...

Skip to toolbar