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युवा सं मेलन का आयोजन श्री एस.एस जैन संस्कार मंच के तत्वावधान में हुआ

युवा शक्ति कुछ भी कर सकती है चेन्नई. साहुकारपेट स्थित जैन भवन में विराजित उपाध्याय प्रवर रवीन्द्र मुनि के सानिध्य एवं श्री एस.एस जैन संस्कार मंच के तत्वावधान में रविवार को सोमवार को युवा सम्मेलन का आयोजन हुआ। इस अवसर पर रवीन्द्र मुनि ने कहा युवा शक्ति ऐसी शक्ति होती है जो चाहे तो कुछ भी कर सकती है। इसके लिए सबसे जरूरी बात यह है कि आगे आकर एकजुट होकर काम में लगना होगा। अगर हम एक साथ मिलकर किसी भी काम में कदम बढ़ाएंगे तो उसमें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। <br \/>\r\nयुवा शक्ति को हमेशा आगे निकलना चाहिए। उसकी शक्ति अगर चाहे तो किसी भी मुकाम को हासिल कर सकती है। युवाओं को जोस और होस में रहकर ही अपने काम को अंजाम देना चाहिए। युवाओं को अधिकाधिक संख्या में संघ से जुड़ कर अपने से बड़ों के परामर्श के साथ काम को आगे ले जाना चाहिए। मुनि ने कहा मैं बस यही कहना चाहता हूं कि ज्यादा से ज्यादा युव...

अकाम मरण व सकाम मरण

चेन्नई. पेरम्बूर जैन स्थानक में विराजित समकित मुनि ने कहा शास्त्रकारों ने दो प्रकार का मरण बताया है-अकाम मरण व सकाम मरण। जो रोते-रोते मरता है वह अकाम मरण और हंसते हुए जीवन छोड़ता है वह सकाम मरण होता है। यह दुनिया किसी का साथ नहीं देती, इस दुनिया ने राम, कृष्ण एवं महावीर का ही साथ नहीं दिया तो तुम इस दुनिया पर भरोसा क्यों करते हो। जो दुनिया के साथ जीता है उसे भविष्य में मार खाने से कोई बचा नहीं सकता और जो भगवान के साथ जीता है उसे भविष्य में मार खानी नहीं पड़ती। वे रिश्ते महासौभाग्यशाली होते हैं जहां वासना से साधना और मोह से धर्म का जन्म होता है। कब मरना है यह पता नहीं लेकिन कैसे यानी रोते-रोते या हंसते-हंसते मरना है यह हमारे हाथ में है। जीवन जीने के दो तरीके हैं-चैतन्य बनकर जीना और जड़ बनकर जीना। चैतन्य बनकर जीने वाले चकोर होते हैं उनको जीवन नजर आता है जबकि जो जड़ बनकर जीते हैं वे गिद्ध होत...

मृत्यु पर संसारी रोते हैं पर साधक की मृत्यु लक्ष्य प्राप्ती है

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित आचार्य सुदर्शनलाल ने कहा संसारी की मृत्यु पर संसारी रोते हैं जबकि साधक की मृत्यु पर संसारी खुशियां मनाता है क्योंकि एक साधक ने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया होता है। संसारियों में जन्मदिवस मनाने का तथा साधना क्षेत्र में पुण्यतिथि का महत्व अधिक होता है जबकि साधक के लिए मृत्यु महोत्सव है। केवल महावीर ही ऐसे थे जिन्होंने बताया कि मरना कैसे है। यदि आप आसक्ति के साथ मृत्यु को स्वीकार करते हैं तो अशुभ गति की ओर गमन कर रहे हैं। मरण दो प्रकार का होता है-बाल मरण और पंडित मरण। जीवन में आसक्ति छोड़ते हुए पंडित मरण करें। इससे पूर्व सौ यदर्शन मुनि ने कहा ज्ञान का अंश एकेन्द्रिय से लेकर सभी जीवों में विद्यमान है लेकिन केवल ज्ञान की प्राप्ति मानव भव में ही संभव है। नवकार मंत्र के नवपद में छठे पर ज्ञान की आराधना बताई गई है। ज्ञान की महिमा अनंत है। संघ अध्यक्ष कम...

भयभीत वही जिसका कोई सहारा नहीं

चेन्नई. मईलापुर स्थित जैन स्थानक में विराजित कपिल मुनि के सान्निध्य में रविवार को 21 दिवसीय श्रुतज्ञान गंगा महोत्सव के तहत भगवान महावीर की अंतिम देशना श्री उत्तराध्ययन सूत्र पर उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा भयभीत वही होता है जिसका कोई सहारा नहीं होता। इस संसार में धर्म से बढ़कर कोई सहारा नहीं होता। जो आकर्षित करे मगर स्थिर नहीं रहे उसी का नाम राग है। जिनवाणी श्रवण का संयोग पुण्य की प्रबलता से ही मिलता है। इस योग से हमें जीवन में पात्रता विकसित करनी चाहिए। सफल जीवन की कसौटी है पात्रता और योग्यता का विकास। किसी भी चीज की प्राप्ति से पूर्व व्यक्ति को अपनी योग्यता का निरीक्षण करना चाहिए। व्यक्ति के जीवन में कर्मो के आक्रमण का कारण है उसके भीतर आस्था का दीप बुझ जाना। जिसने देव गुरु धर्म का सहारा लिया है उसके जीवन से सारे भय विदा हो जाते हैं। प्रभु महावीर प्राणिमात्र के दु:ख, पीड़ा और आकुलता को जान...

मर्यादा एवं नियम पालन नहीं करने वाले को मानव जन्म दुबारा नहीं मिलता

चेन्नई. पेरम्बूर जैन स्थानक में विराजित समकित मुनि का कहना है व्यक्ति कहता है जन्म लेना हमारे हाथ में नहीं पर भगवान कहते हैं सब कुछ तु हारे ही हाथ में है। तुम चाहो जहां जन्म ले सकते हो। जिसके जीवन में मर्यादा है वह भविष्य में दस अंग प्राप्त करता है जिनमें अच्छा खानदान, उत्तम कुल, उच्च गोत्र, महाबुद्धिमान, सबको प्रिय लगने वाला आदि शामिल हैं। उसके जीवन में भी दुर्भाग्य नहीं आता। मर्यादा एवं नियम पालन नहीं करता उसे भविष्य में मानव जन्म नहीं मिलता। भगवान ने कहा है मानव जन्म तो दुर्लभ है ही, उसे महाजन बनाना और भी कठिन है। जिसमें मार्गानुसारी के ३५ गुण हो उसे महाजन कहते हैं। धर्म करने से पहले योग्यता आनी चाहिए। जीवन में पहले कुछ गुण आते हैं तब धर्म आता है। इसमें पहला गुण मानवता का है। बिना इन्सानियत के महाजन नहीं बना जा सकता। परमात्मा के धर्म की आराधना महाजन की कर सकता है। धर्म केवल महाजन के हृद...

सत्ता का नशा सारी मार्यादाएं भूला देता है

चेन्नई. पेरम्बूर जैन स्थानक में विराजित समकित मुनि ने कहा प्यार का रिश्ता होता है देवर और भाभी का। बहुत से ऐेसे प्रसंग आते हैं जिनमें भाभी ने देवर को अपने बच्चों से बढ़कर संभाला जबकि अनेक प्रसंग ऐसे भी आते हैं जिनमें देवर ने भाभी में मां की छवि देखी। लक्ष्मण और सीता का देवर भाभी का रिश्ता एक आदर्श रिश्ता रहा। पांच साल की उम्र में श्रीपाल के पिता राजा सिंहस्थ की मृत्यु हो गई। महारानी कमलप्रभा ने राज्य का भार देवर वीरदमन को न देकर मंत्री मतिसागर को दिया। इसके कारण देवर को मतिसागर का दुश्मन बना दिया और सारी जनता कमलप्रभा की दुश्मन हो गई जिसका फायदा वीरदमन ने उठाया और धीरे-धीरे सारी सेना को अपनी ओर कर लिया एवं भतीजे को मारने की साजिश रच दी। सत्ता न खून का रिश्ता जानती है न भावना का। सत्ता का नशा चढ़ता है तो व्यक्ति सारी मार्यादाएं भूल जाता है। सत्ता संसार देती है लेकिन अपनों को छीन लेती है। वी...

दया, प्रेम, श्रद्धा-भक्ति होगा तो भगवान आएंगे

चेन्नई. सईदापेट जैन स्थानक में विराजित ज्ञानमुनि ने कहा आश्विन (आसोज) के महीने में आत्मसाधना के लिए नवपद ओली की आराधना करते हैं। मुनि ही क्या सामान्य व्यक्ति भी इस तप की आराधना में अनंत कर्मों का क्षय कर पर सुख प्राप्त कर लेता है। नवपद ओली मन, वचन, काया को तो ठीक करती ही है आत्मा को भी पूर्ण शुद्ध कर देती है। अरिहंत सिद्ध की आराधना करते हुए एवं भक्ति-श्रद्धा में जीवन डुबोते हुए चलें, निश्चित ही एक दिन अरिहंत सिद्ध बन जाएंगे। सब कर्मों का नाश हो जाएगा। भगवान आते हैं बुलाने वाला चाहिए। मन में दया, सरलता, प्रेम, श्रद्धा-भक्ति का समर्पण होगा तो निश्चित ही भगवान आएंगे। मुनि ने कहा भाई-भाई एवं सास-बहू लड़ रही हैं, ऐसे घर में भिखारी भी नहीं आएगा, वह भी भाग जाए तो उस घर में भगवान कैसे आएंगे। जब आत्मा सरलता, सहजता, कोमलता, पवित्रता आएगी तभी परमात्मा आएंगे। मुनि ने बताया कि स्नान, प्रश्न पूछना, गायन...

जिन्होंने अपने जीवन को साध लिया वही सिद्ध

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित आचार्य सौ यदर्शन ने कहा नमस्कार मंत्र के दूसरे पद में सिद्ध भगवान का नमन किया जाता है। जिन्होंने अपने जीवन को साध लिया एवं सभी कार्य पूर्ण हो गए वही सिद्ध कहलाते हैं। आठ कर्मों कर क्षय कर अनंत ज्ञान, दर्शन, चरित्र, सुख, क्षायिक समकित, अटल अवगाहना, अलघु गुरु, अमूर्ति और अनंत अकरण वीर्य को भीतर से प्रकट कर मोक्ष में विराजित है। सिद्ध का रंग लाल होता है जो क्रांति का प्रतीक है। भीतर की क्रांति से कर्म शत्रुओं का नाश कर सिद्ध अवस्था प्राप्त करना ही इस रंग का संदेश है। सिद्धात्मा लोक के अग्रभाग में विराजित है। मुनि दिव्यदर्शन ने कहा संसार में स्वयं के नाम से पहचान बनाने वाले उत्तम पुरुष, मामा के नाम से लोग जिनको जानते हों वे अधम पुरुष और जिसकी ससुर के नाम से पहचान बनती है वह अधमाधम पुरुष है। पिता की कमाई पर बेटा अभिमान करे तो कोई बड़ी बात नहीं बल्कि...

नवपद मंत्र अंतरात्माओं के मार्ग में मील के पत्थर

चेन्नई. ट्टाभिराम जैन स्थानक में विराजित साध्वी प्रतिभाश्री ने कहा नवपद मंत्र अंतरात्माओं के मार्ग में मील के पत्थर का काम करता है। जिस प्रकार पथिक को मील का पत्थर मार्ग का परिज्ञान कराता है उसे मार्ग तय करने का विश्वास दिलाता है। उसी प्रकार नमस्कार महामंत्र अंतरात्मा को साधु, उपाध्याय, आचार्य, अरिहंत और सिद्ध रूप गंतव्य पर पहुंचने का मार्ग दिखाता है अर्थात चारित्र तप प्राप्त करता है। शुद्ध और स्थिर चित्त से इसका ध्यान करने पर विपत्ति, भय और उपसर्ग से रक्षा होती है। यह कवच की भांति रक्षा करता है। आरोग्य, सुख और समृद्धि में वृद्धि करता है। इसकी आराधना करने वाला स्वर्ग और मुक्ति का अधिकारी बनता है। नवपद के जाप एवं आराधना से पाप नष्ट होते हैं व कर्मनिर्जरा होती है और बुद्धि का आध्यात्मिक विकास होता है। संचालन आनंदकुमार चुतर ने किया।

सिद्धचक्र एक अमोघ चक्र है

साहुकारपेट स्थित जैन आराधना भवन में विराजित गणिवर्य पदमचन्द्रसागर ने नवपद ओली पर प्रकाश डालते हुए बताया कि सिद्धचक्र एक अमोघ चक्र है जो कर्मनाशक है। इसके केंद्र में अरिहंत भगवान है, जो देशना देते हंै, मार्गदर्शक है और मोक्ष का मार्ग बताते हैं। अरिहंत भगवंतों के आठ प्रातिहार्य होते हैं- अशोक वृक्ष, पुष्पवृष्टि, देव दुन्दुभि, दोनों तरफ चामर, सिंहासन, प्रभामंडल, दिव्य ध्वनि और समवसरण। वे 35 गुणयुत वाणी से युक्त होते हैं। उनके 34 अतिशय होते हैं, उनकी अनंत ऋद्धि होती है. अरिहंत बनने के लिए मानव को कम से कम 3 भव तो लेने ही पड़ते हैं। अरिहंत भगवंत परमार्थी-परार्थी हैं। हम साधारण मानव स्वयं के लिए वीशस्थानक तप करते हैं, लेकिन अरिहंत परमात्मा सवी जीव के लिए तप आदि करते हैं। स यग दर्शन पाई हुई आत्मा या तो स्वयं का कल्याण करती है या परिवार का कल्याण करती है और उत्कृष्ट से सब जीवों का कल्याण करती है।

मांगें मगर अपने लिए नहीं सबके लिए

चेन्नई. नवपद में सब कुछ है लेकिन हम इधर-उधर दौड़ते रहते हैं। नवकार पर श्रद्धा नहीं करते। व्यक्ति स्वार्थ एवं इच्छाओं की पूर्ति के लिए भटकता रहता है लेकिन यह नवकार तो इच्छाओं का ही नाश कर देता है और आत्मा से परमात्मा बना देता है। परमात्मा से मांगें जरूर लेकिन अपने लिए नहीं सबके लिए खुशी और सुख मांगें। आप स्वत: ही सुखी हो जाएंगे। मुनि ने कहा हम मांगते ही रहते हैं मांगने की आदत हो गई है। सब कुछ मिल जाए फिर भी तो नई-नई इच्छा करके मांगते हैं और यही दुख का कारण है। धर्म करें कंकर से शंकर एवं गरीब से अमीर बन जाएंगे। धर्म हमेशा फल देने वाला है। सबको छोड़कर केवल चिंतामणि मंत्र नवकार मंत्र का ध्यान करें, इसमें अरिहंत, सिंह, आचार्य, उपाध्याय, साधु, ये पांचों सारे पापों का नाश एवं मंगल करने एवं सारे कर्मों को नष्ट करने वाले हैं। इसलिए इनकी शरण में जाएं एवं आराधना करें। ये ही भवपार उतारने वाला हैं। इस ...

बोलना जरूरी तो मौन रहना भी

चेन्नई, साहुकारपेट स्थित श्री जैन भवन में विराजित उपाध्याय प्रवर रवीन्द्र मुनि ने कहा बोलने से भी व्यक्ति की ऊर्जा खर्च होती है। जैसे व्यक्ति काम करके थक जाता है वैसे ही बोलने से भी उसकी ऊर्जा घट जाती है। मनुष्य बोलना तो तीन साल से ही सीखता है लेकिन क्या बोलना है जीवन भर नहीं सीख पाता। जैसे बोलना जरूरी होता है वैसे ही मौन रहना भी जरूरी है। यदि बोलते ही जाएगा तो ऊर्जा तो खर्च होगी ही। यदि यही रवैया रहा तो धीरे धीरे ऊर्जा का यह खजाना भी खत्म हो जाएगा। आदमी को क्या एवं कितना बोलना है की भी जानकारी रखनी चाहिए। भगवान कहते हैं मौन रखने वाला मुनि होता है और यदि वह धर्म के बारे में बोलता है तो भी वह मौन ही माना जाता है। अधर्म के बारे में बोलने वाला मुनि नहीं हो सकता। मुनि ने कहा व्यक्ति को बोलने से पहले सोचना चाहिए। जरूरी होने पर ही बोलना चाहिए अन्यथा शांत रहना चाहिए। बिना प्रमाण के कोई भी बात किस...

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