शोभायात्रा में उमड़ा जनसैलाब चेन्नई. गोपालपुरम में लॉयड्स रोड स्थित छाजेड़ भवन में शनिवार सवेरे श्री जैन संघ के तत्वावधान में कपिल मुनि ने शनिवार को चातुर्मासार्थ प्रवेश किया। इससे पूर्व मुनि रायपेट्टा स्थित हेमराज सिंघवी जैन स्थानक से नवकार महामंत्र जाप व भक्तामर स्तोत्र के पाठ के बाद शोभायात्रा के साथ प्रस्थान किया। शोभायात्रा मु य मार्गों से गुजरती हुई लॉयड्स रोड स्थित छाजेड़ भवन पहुंची जहां संघ के संरक्षक सुभाषचंद रांका, सुनील भड़कतिया, अशोक-सूरज छाजेड़, ने मुनि की अगवानी की। बाद में धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि ने कहा चातुर्मास एक अवसर है अपनी प्रवृत्ति को संयमित और सीमित करने का। धर्म प्रभ ावना करना ही चातुर्मास का प्रमुख ध्येय है। सही मायने में धर्म प्रभावना तभी होगी जब हम अपनी आत्मा को जप तप की साधना से प्रभावी बनाने का प्रयास करेंगे। और रत्नत्रय (ज्ञान,दर्शन, चारित्र ) के तेज...
आचार्य महाश्रमण का चातुर्मासिक प्रवेश हमे जीवन में सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति को स्थान दें। इन तीन चीजों से जीवन अच्छा बन सकता है। हम मैत्रीभाव व ईमानदारी को स्थान दें। शनिवार को आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के तत्वावधान में आचार्य महाश्रमण ने माधवरम में चातुर्मासिक प्रवेश किया। नशीले पदार्थों का सेवन न करें। जिस आदमी का मन धर्म में रमता है उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। हिंसा जहर है। अहिंसा अमृत है। सभी प्राणियों को समान समझें। दूसरों को दुखी करने का प्रयास नहीं करें। जो तुम अपने लिए चाहो वह तुम दूसरों के लिए भी चाहो। उन्होंने बताया कि नव बर 2014 से दिल्ली से अहिंसा यात्रा की शुरुआत हुई जो नेपाल, भूटान एवं देश के विभिन्न प्रदेशों से गुजरती हुई चेन्नई पहुंची है। आचार्य ने कहा जैन संत चाह महीने एक जगह रहकर चातुर्मास करते हैं। आठ महीने भ्रमण पर रहते हैं। प्रदेश म...
वेलूर. आरकाट के एसएस श्वेता बर जैन संघ के जैन भवन में विराजित ज्ञान मुनि ने शुक्रवार को एक धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मनुष्य को जितना मिला है उसी में संतोष करना चाहिए। इस असार संसार को जब तक वास्तविकता का ज्ञान नहीं होगा यह असार नहीं लगेगा और वास्तविकता का ज्ञान तभी होगा जब संसार की आसाक्ति छूटेगी। असाक्ति छूटे बिना यह संसार दुखमय एवं असार नहीं लगेगा। सुख प्राप्ति के लिए दौड़ रहे मानव को यह पता नहीं कि सुख बाहर नहीं उसके भीतर ही है। बाहरी भागदौड़ से सुख की प्राप्ति संभव नहीं है। भौतिक साधनों में सुख कभी नहीं मिल सकता। स्वयं आत्मचिंतन करें तो अहसास होगा कि सुख तो स्वयं के भीतर ही है। उसी में सुख का सागर बह रहा है। तृष्णा का दुख वर्तमान में ज्यादा है। मन की इच्छाओं पर नियंत्रण करें। अगर जीवन की भागदौड़ को कम करना है तो तृष्णा पर नियंत्रण करें और संसार की आसक्ति का त्याग करें। जैन समा...
कलशयात्रा के साथ पहुंची एमकेबी नगर जैन स्थानक चेन्नई. साध्वी धर्मप्रभा एवं साध्वी स्नेहप्रभा ने शुक्रवार को एमकेबी नगर जैन स्थानक में चातुर्मासिक प्रवेश किया। इससे पूर्व साध्वीवृंद लिंक रोड स्थित रेनबो पैराडाइज से कलशयात्रा के साथ जैन स्थानक पहुंची। इस मौके पर उपप्रवर्तक विनयमुनि व गौतममुनि भी पहुंचे। यहां आयोजित धर्मसभा में विशिष्ट अतिथि आनंदमल छल्लाणी, किशनलाल खाबिया, सज्जनराज मेहता, ुपूरणचंद कोठारी, धर्मीचंद कांठेड़, शंकरलाल पटवा, सिद्धेचंद लोढा, जबरचंद खिंवसरा थे। इस मौके पर साध्वी धर्मप्रभा ने कहा चातुर्मास करने की परंपरा जैन धर्म में अनादि काल से चली आ रही है। इसका मु य कारण है चातुर्मासकाल वर्षाकाल होना। इस काल में असं य जीवों की उत्पत्ति होती है, जब साधु-संत से विचरण करते समय उनकी हिंसा न हो। यही कारण है कि संत-साध्वी श्रावण, भादो, आसोज व कार्तिक इन चार माह में विशेष विचरण नहीं कर...
चेन्नई. उपाध्याय श्री प्रवीणऋषिजी चातुर्मास समिति, चेन्नई के तत्वावधान में उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि व तीर्थेशऋषि का पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में चातुर्मासिक प्रवेश 22 जुलाई को होगा। इस मौके पर उपाध्याय प्रवर सवेरे 8.15 बजे वेपेरी स्थित गुरु श्री शांतिविजय जैन स्कूल से रवाना होंगे और पुरुषवाक्कम में गंगाधीश्वर कोईल, दूसरी गली (होटल राजभवन के पास) स्थित एएमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर पहुंचकर चातुर्मासिक प्रवेश करेंगे जहां धर्मसभा होगी। इस दौरान समिति चेयरमैन नवरतनमल चोरडिया, अध्यक्ष अभयकुमार श्रीश्रीमाल, महामंत्री अजीत चोरडिया, कार्याध्यक्ष पदमचंद तालेड़ा व कोषाध्यक्ष जेठमल चोरडिया भी उपस्थित रहेंगे।
चेन्नई. पेरम्बूर जैन स्थानक में विराजित समकित मुनि ने कहा जो हमेशा धर्म में रत रहता है उसे देवता भी नमन करते हैं। जो अधर्म में लगे रहते हैं देवता उनकी पिटाई करते हैं यानी वह आत्मा नरकगामी हो जाती है। जो बिना सोचे-समझे दान देता है वह शालिभद्र बनता है एवं ऋद्धियां उसके चरण चूमती हैं तथा जो सोचकर मांगता है वह केवली बनता है। आदमी के लाभ में जैसे-जैसे वृद्धि होती है उसका लोभ भी बढ़ता जाता है। मुनि ने कहा आदत छोडऩा कठिन काम है लेकिन बुरी से बुरी आदत से बाहर निकालने की ताकत धर्म में है।
चेन्नई. सईदापेट जैन स्थानक में विराजित ज्ञानमुनि ने कहा कहना तो सरल है लेकिन पालना बहुत कठिन है। जो पालते हैं वे पूजनीय व वंदनीय होते हैं। उनके गुण की पूजा करें। नवपद की आराधना के तहत आठवें चारित्र दिवस की आराधना का दिवस है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप, ज्ञान अर्थात जानना, दर्शन यानी मानना, चारित्र अर्थात पालना। आज चारित्र के पद की आराधना करनी है। मुनि ने कहा काया का नहीं माया का डर है। जो इस माया एवं काया की आसक्ति एवं मोह को छोड़ दे वही सच्चा साधु एवं चारित्रिक है। जो तन और मन को अपने वश में रखते हैं, इंद्रियों को सदा धर्म में लगाते हैं, मन को ज्ञान रस में रमाते हैं एवं स्वाद को जीते हैं वही साधु हैं। केवल कहना ही नहीं पालना भी जरूरी है। कहना तो सरल है लेकिन बहुत मुश्किल है करना। मुनि ने कहा मोक्ष में जाने के लिए ज्ञान-दर्शन के साथ ही चारित्रिक व तप भी जरूरी है। ये चारों की मोक्ष के साधन...
चेन्नई. साहुकारपेट स्थित जैन भवन में विराजित उपाध्याय प्रवर रवीन्द्र मुनि ने कहा सालों से मंदिर जाने के बाद भी अगर व्यक्ति के जीवन में बदलाव नहीं आता तो उसका मंदिर जाना सफल नहीं हो सकता। सामायिक को सफल करना है तो हमे खुद की जांच करनी होगी, तभी जीवन सफल हो पाएगा। समस्त प्राणियों के प्रति मानव को मैत्रीभाव रखना चाहिए। स्वयं से ज्यादा दूसरों की चिंता करने को ही मैत्री भाव कहते है। प्रत्येक व्यक्ति कोई न कोई धार्मिक रास्ता अपना कर धर्म में आगे निकलने की कोशिश करता है। लोग सामायिक करते तो है लेकिन सिर्फ ऊपरी मन से। माला फेरने और भगवान का नाम लेने से सामायिक पूरी नहीं होती, इसके लिए बहुत सारे विधि विधान होते हंै जिनसे करने पर ही सामायिक सफल होती है। सामायिक, जाप और तपस्या करने के बाद भी अगर व्यक्ति के जीवन में बदलाव नहीं आता तो समझें सामायिक सफल नहीं हुई। सामायिक करने के बरसों बाद भी अगर व्यक्ति...
चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित आचार्य सुदर्शन ने कहा श्रावक का प्रमुख लक्षण है लज्जा। सदाचार का पालन करना श्रावक का धर्म है। यदि धन चला जाए तो कुछ नहीं बिगड़ता, स्वास्थ्य खराब हो जाए तो थोड़ा नुकसान होगा, चारित्र चला गया तो सर्वस्व चला जाता है। ऋतुएं बदलने व आंधी-तूफान आने पर भी पेड़ स्थिर रहते हंै उसी प्रकार चारित्र में दृढ़ रहना चाहिए। भद्रबाहु स्वामी ने सारे उपनिषद-आगम और धर्मग्रंथों का सार उत्तम चारित्र को बताया है। जीवन में मर्यादा रहनी चाहिए ताकि सद्गुणों का विकास हो सके। मुनि दिव्यदर्शन ने कहा बेटी स्वयं के कर्मों से जीवन-यापन करती है। वह पिता की इच्छानुसार सुख-सुविधाएं भोग नहीं सकती। सब कुछ कर्माधीन है। नवपद की आराधना से आनंदमय जीवन का आनंद प्राप्त कर सकते हंै। अध्यक्ष कमलचंद खटोड़ ने बताया कि श्रीपाल मैनासुंदरी वाचन गुरुवार तक होगा। संचालन सुरेश आबड़ ने किया।
चेन्नई. पेरम्बूर जैन स्थानक में विराजित समकित मुनि ने कहा नादान वह होता है जो दूसरों में सुख खोजता है। सारी जिंदगी उनमें आसक्त होकर गुजारता है। यह दुनिया मुफ्त में किसी को कुछ नहीं देती, स्वार्थ के साथ देती है और स्वार्थ से ही जीती है। निस्वार्थ से तो केवल परमात्मा ही देता है। नवकार की शरण व तप का आलंबन लेते हैं और हृदय में श्रद्धा होती है तो कोई भी दुख-बीमारी नहीं आती। इस दुनिया में जितने भी नासमझ व नादान लोग हैं वे सब इस संसार में परिभ्रमण करते रहते हैं। परमात्मा ने कहा तुम स्वयं अपने अंदर सत्य की खोज करो, तुम्हारे अंदर ही अनंत सुख है। नादान व्यक्ति अनंत नहीं क्षणिक सुख के लिए मेहनत व दौड़-धूप करता है।
चेन्नई. सईदापेट जैन स्थानक में विराजित ज्ञानमुनि ने कहा संसारी लोग ढ़ोंगी बाबाओं के चक्कर में पड़ जाते हैं लेकिन मिलता कुछ भी नहीं है बल्कि दुख और बढ़ जाता है। ऐसे बाबाओं के चक्कर में धन, मन, तन का नाश न करें। जो बाबा धन और औरतों के रागी हैं वे आपके दुख दूर कैसे करेंगे। धर्म और तप से ही कर्मों की निर्जरा होगी एवं दुख का नाश होगा। स्वयं परमात्मा भी केवल कर्म निर्जरा का मार्ग बताते हैं इसलिए अंध श्रद्धा, मिथ्यात्व का, कुदेवा, कुगुर व कुधर्म का त्याग करें। यह आपकी गति बिगाड़ देगा। दर्शन अर्थात देखना, यहां पर दर्शन अर्थात धर्म मार्ग, विचार पर श्रद्धा करना ही स यकत्व एवं धर्म पर श्रद्धा करना ही दर्शन है। हजारों धर्म को छोड़कर आत्मधर्म यानी जिन धर्म पर श्रद्धा करना है। ज्ञान, चारित्र व तप है लेकिन स यत्व श्रद्धा नहीं है तो उसकी मुक्ति नहीं होगी। स यकत्व के आठ लक्षण हैं-दृढ़ धर्मी, गुणग्राहक, समत...
चेन्नई. साहुकारपेट स्थित जैन भवन में विराजित उपाध्याय प्रवर रवीन्द्र मुनि ने कहा दूसरों को खुशी देने के लिए सबसे पहले खुद को खुश रखना सीखना होगा। इसके लिए जीवन उद्देश्य पूर्ण होना चाहिए। जीवन में कुछ भी करने से पहले अपना लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। लक्ष्य निर्धारित करके चलने वाले व्यक्ति को जीवन में परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता। जीवन में सुधार लाने के लिए कर्म तो सभी करते हैं लेकिन प्रसन्नता के लिए कर्म करना चाहिए। इसके लिए हमेशा सत्य की राह पर ही चलना चाहिए। जीवन हमेशा खुली किताब की तरह बनाकर रखना चाहिए। ऐसे व्यक्ति को परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता, क्योंकि यदि व्यक्ति स्वयं ही परेशान रहेगा तो दूसरों को वह खुश कैसे रखेगा। जीवन में बदलाव पाने की ओर ध्यान आकर्षित करना बहुत ही जरूरी होता है क्योंकि जितनी तेजी से ध्यान हमारे जीवन को प्रभावित करता है उतना अन्य किसी के द्वारा जीवन...