posts

धर्म पर अडिग रहने वाले का हर क्षण रक्षा करता है धर्म: उपाध्याय प्रवर श्री प्रवीणऋषिजी

श्री ए.एम.के.एम. जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषवाकम में विराजित चेन्नई.  श्री ए.एम.के.एम. जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषवाकम के प्रागंण में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषिजी और तीर्थेशऋषिजी का प्रवचन आयोजित किया गया। प्रवचन के दौरान उन्होंने आचारांग सूत्र और राजा श्रेणिक का चारित्र श्रवण कराते हुए कहा कि जैनोलॉजी का पहला मंत्र है जो कर सकते हैं उसे करने से बचें नहीं बल्कि करने का प्रयास करें । समस्या छोटी हो या बड़ी उसका वर्तमान में ही करना चाहिए। छोटी समझ कर कल पर टाली गई समस्या समय बीतने के साथ एक दिन विकराल रूप धारण कर लेती है। ऐसे में समस्या से निजात पाना आसान नहीं रह जाता। प्रभु महावीर ने कहा है कि जो संभव है उसे कल पर नहीं टालना चाहिए और जो संभव नहीं है उसे भी पूरा करने की भावना रखते हुए सदा प्रयत्नशील रहना चाहिए। राजा श्रेणिक की तरह परमात्मा की शरण में जाने वाला कोई भी व्यक्ति ...

‘बोधि दिवस’के रूप में आयोजित हुआ तेरापंथ के प्रवर्तक आचार्य भिक्षु का जन्म दिवस

-चतुर्विध धर्मसंघ ने दी स्मरण व अर्पित की भावांजलि चेन्नई. माधवरम में चातुर्मास प्रवास स्थल परिसर स्थित ‘महाश्रमण समवसरण’ प्रवचन पंडाल में विराजित आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में तेरापंथ धर्मसंघ के प्रणेता आचार्य भिक्षु का जन्मदिवस ‘बोधि दिवस’ के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर आचार्य ने  आचार्य भिक्षु के जीवन वृत्तांत सुनाते हुए उनके जीवन से सीख लेने की प्रेरणा दी। आचार्य ने कहा आचार्य भिक्षु का जन्म आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी को हुआ था। उस क्षेत्र का गौरव बढ़ जाता है, जहां जन्म लेने वाला बच्चा विशिष्ट पुरुष बन जाता है। राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र के कंटालिया गांव में जन्मे आचार्य भिक्षु संत बनने से पूर्व गृहस्थ भी रहे। आदमी के वर्तमान जीवन पर पूर्वजन्म का भी प्रभाव होता है जिसके कारण कोई आदमी शांत, कोई क्रोधी, कोई बुद्धिमान तो कोई मूर्ख हो जाता है। आचार्य ने उनके जीवनकाल की घटनाओं पर प्रकाश डाल...

ध्यान से ज्ञान की प्राप्ति होती है: संयमरत्न विजय

चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित संयमरत्न विजय ने कहा ध्यान से ज्ञान की प्राप्ति होती है। ध्यान का फूल खिलता है तो ज्ञान की महक फैलने लगती है। ध्यान का दीपक जलता है तो ज्ञान की उर्जा प्रसारित होती है। परमात्मा की ओर जाने वाले दो मार्ग है-एक ज्ञान का व दूसरा भक्ति का। जिस व्यक्ति को ज्ञान के आधार पर चलना है उसे ध्यान साधना पड़ता है। भक्ति का अर्थ है पूरी तरह डूबना, मदमस्त होना और ध्यान का अर्थ है-सतत जागरण, स्मरण का बना रहना। सभी ध्यान नहीं साध सकते, कुछ प्रेम से तो कुछ भक्ति से परमात्म तत्व को प्राप्त करते हैं। ज्ञान का रास्ता कठोर है, प्रेम का रास्ता हरा-भरा, रसनिमग्न है तो ध्यान के मार्ग पर संकल्प-बल ही हमारा संबल है लेकिन भक्ति के मार्ग पर समर्पण है, संकल्प नहीं। भक्ति के रास्ते पर परमात्मा के चरण व उनके हाथ उपलब्ध है। भक्ति के रास्ते पर संग है, साथ है। भक्ति के रास्ते...

जीवन को सफल बनाने के लिए मन को एकाग्र रखना जरूरी

चेन्नई. साहुकारपेट स्थित श्री राजेन्द्र भवन में मुनि संयमरत्न विजय व भुवनरत्न विजय ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि अपने जीवन को सुंदर बनाना हो तो अपने अंदर आना होगा। जीवन को सफल बनाकर सुफल प्राप्त करना हो तो अपनी शक्तियों को केन्द्रित एवं मन को एकाग्र करना होगा। यदि हम एकाग्रतापूर्वक परमात्मा या किसी मंत्र का ध्यान करते हैं तो शीघ्रता के साथ हमें सिद्धि प्राप्त हो सकती है। नर का मन वानर की तरह चंचल होता जो इधर से उधर भटकता रहता है। मन की एकाग्रता से नर भी नारायण बन जाता है। मुनिवृन्द ने कहा, रुपए गिनना हो तो मन एकाग्र हो जाता है, कांटों से बचना हो तो संभल-संभल कर चलने लग जाता है, गिरी हुई कीमती वस्तु को खोजने में मन स्वत: ही एकाग्रचित्त हो जाता है, लेकिन साधना के समय मन विराधना की ओर जाने लगता है, इसका कारण है हमारी रुचि। जिसमें हमारी रुचि होती है, उसमें हमारा मन स्वत: ही लग जाता है...

अपने अधूरेपन को स्वीकार कर पूर्णत्व प्राप्त किया जा सकता है: प्रवीणऋषि

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित श्री ए.एम.के.एम. जैन मेमोरियल सेंटर में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा कि यदि व्यक्ति अपने अधूरेपन को स्वीकार कर ले तो वह एक दिन पूर्णत्व को प्राप्त जरूर करता है। यदि घर-परिवार में व्यक्ति में यह समझ और भाव आ जाएं कि कोई भी पूर्ण नहीं होता है और मैं भी सर्वगुण संपन्न नहीं हंू, मुझ में भी कई कमियां है तो संसार के सभी लड़ाई-झगड़े स्वत: ही सुलझ जाएंगे। उन्होंने कहा है कि जो आपके वश में है उस कार्य को वर्तमान में ही करें, उसे कभी भविष्य पर न छोड़ें। उपाध्याय प्रवर ने कहा जो सद्कार्य करने में हम सक्षम होते हैं वह अवश्य करने चाहिए लेकिन जिस सद्कार्य को करने में हम असमर्थ हैं उसे करने के की भावना भी हमारे अन्तर में होनी चाहिए। उपाध्याय प्रवर ने आचारांग सूत्र के बारे में बताया कि कभी भी व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी से नहीं भागना चाहिए बल्कि उसे स्वत: ...

एकाग्रतापूर्वक परमात्मा का ध्यान करने से सिद्धि प्राप्त होती है: संयमरत्न विजयजी

मन की एकाग्रता से नर भी नारायण बन जाता है चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित संयमरत्न विजयजी ने कहा यदि हम एकाग्रतापूर्वक परमात्मा या किसी मंत्र का ध्यान करे तो शीघ्रता के साथ हमें सिद्धि प्राप्त हो सकती है। नर का मन तो वानर की तरह चंचल है जो इधर से उधर भटकता रहता है। मन की एकाग्रता से नर भी नारायण बन जाता है। साधना के समय मन विराधना की ओर जाने लगता है, इसका एकमात्र कारण है-हमारी रुचि। अपने जीवन को अच्छा बनाना हो तो अपने अंदर आना होगा। जीवन को सफल बनाकर सुफल प्राप्त करना हो तो अपनी शक्तियों को केन्द्रित एवं मन को एकाग्र करना होगा। यदि धरती से जल प्राप्त करना हो तो उसे एक ही स्थान पर सौ फीट खोदना होता है, सौ स्थानों पर एक-एक फीट का गड्ढा खोदने से पानी भी नहीं मिलता और पुरुषार्थ भी निष्फल हो जाता है।   जिसमें हमारी रुचि होती है उसमें हमारा मन स्वत: ही संलग्न हो जाता है अ...

मूल्यवता, नैतिकता से परिपूर्ण हो राजनीति: आचार्य महाश्रमण

 जीवन में दया, अनुकंपा अपनाने की दी प्रेरणा चेन्नई. आदमी किसी भी क्षेत्र में कार्य करे, उसमें ईमानदारी व नैतिकता होनी चाहिए। राजनीति भी एक सेवा का क्षेत्र, माध्यम व साधन है। राजनीति में रहना भी एक प्रकार की कठोर तपस्या का जीवन हो सकता है। राजनीति में नैतिकता के प्रति निष्ठा रहे, मानव के प्रति मानवता की भावना रहे, किसी के प्रति घृणा नहीं, सब के प्रति मंगल भावना, अहिंसा, अनुकंपा की भावना रहे, तो राजनीति के माध्यम से भी आदमी सेवा कर सकता है और साथ में मूल्यों का भी प्रचार प्रसार करें। लोग नशामुक्त रहें, ईमानदारी के पथ पर चलें तो राजनीति में रहने वाले व्यक्ति एक प्रकार से आध्यात्मिक उन्नयन का कार्य करते हुए सेवा दे सकते हैं। उक्त उद्गार माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में विराजित आचार्य महाश्रमण ने व्यक्त किए। आचार्य ने कहा आदर्शों पर पूरा चलना तो मुश्किल हो सकता है, पर थोड़ा ...

गुस्सा शरीर का नास करता है आचार्य महाश्रमण*

गुस्सा एक ऐसी चिज जो हमारा शत्रु है – शत्रु वो होता है जो हमारा नुकसान करता है। आदमी को गुस्सा नहीं करना चाहिए जब गुस्सा आये तो दिर्ध श्वांस का प्रयोग करे। जो कार्यकर्ता स्वयं को सेवा के लिए समर्पित कर दिया है वो ध्यान रखे हमे हर परिस्थिति में गुस्सा नहीं करना चाहिए। मनुष्य को शान्ति का जिवन जिना चाहिए, अपमान हो गया तो भी शान्ति रखे और सम्मान मिल भी गया तो भी शांति रखे। दुनिया अच्छे कार्य करने वालों की निन्दा करती है पर हमेशा उस समय स्वयं रखना चाहिए। आवेश करने से खुद का ही नुकसान होता है हम गुस्से को नियंत्रित रखेंगे तो ही आगे बढ़ पायेंगे। हमे दिमाग संतुलित और शांत रखना चाहिए क्योंकि कार्य का भार इतना ज्यादा रहता है यदि दिमाग अस्त – व्यस्त रहेगा तो हमारे कार्य की गति रूक जायेगी। हमे कोई भी निर्णय आवेश में नहीं लेना चाहिए, सोच समझ कर लेना चाहिए। गुस्सा प्रेम का नाशक है। आज मोहन ...

ज्ञानमुनि और लोकेश मुनि ने किया चातुर्मासिक प्रवेश

वेलूर. यहां सतुआचारी से विहार कर सोमवार को श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन संघ के तत्वावधान में ज्ञान मुनि एवं लोकेश मुनि का भव्य चातुर्मासिक मंगल प्रवेश हुआ। इस अवसर पर सीएमसी रोड में संतों के पहुंचने के बाद सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं ने उनका भव्य स्वागत किया। यहां से जुलूस के रूप में संत आरकाट रोड, पुराने बस अड्डा, लांग बाजार, मेन बाजार, गांधी रोड होते हुए जैन भवन में पहुंचे जहां शोभायात्रा धर्मसभा में परिवर्तित हो गई। धर्मसभा का संबोधित करते हुए ज्ञानमुनि ने कहा, जिनवाणी श्रवण से पुण्य-पाप और हित-अहित का ज्ञान होता है एवं सुनने से ही हित-अहित में भेद का बोध होता है अत: धर्म सुनकर हितकारी और श्रेयकारी आचरण करना चाहिए। जिनवाणी सदा कल्याणी व भ्रम तथा अज्ञान का निवारण करने वाली है। इस कल्याणी वाणी को जीवन में ढालें और प्रमाद में समय नही खोएं। आदमी की रातें नींद में चली जाती है और दिन का अधिका...

अभिमान आंखों पर पट्टी लगा देता है:मुनि संयमरत्न विजय

विनयवान गुरु के हृदय में पाता है स्थान चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में मुनि संयमरत्न विजय ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि अभिमान आंखों पर ऐसी पट्टी लगा देता है कि अभिमानी को अपने अतिरिक्त और कोई व्यक्ति दिखाई नहीं देता। वह एक प्रकार से अंधा हो जाता है। अभिमानी कहता है- जगत मेरा सेवक है जबकि विनयवान कहता है-मैं जगत का सेवक हूं। जिस प्रकार फटी जेब में धन सुरक्षित नहीं रहता, उसी प्रकार अभिमानी के हृदय में ज्ञान सुरक्षित नहीं रहता। नित्य करने योग्य कार्य को जो शिष्य बिना किसी प्रेरणा के स्वयं कर लेता है, वह गुरु के हृदय में स्थान प्राप्त कर लेता है और जो शिष्य अविवेकी-अविनीत-अभिमानी होता है, उसे दैनिक कार्य करने का निर्देश करना पड़ता है। अपनी अज्ञानता-अभिमान के कारण ही ऐसे शिष्य अपने ही गुरु को अप्रसन्न कर देते हैं। हमें किसी भी कार्य को कल पर नहीं छोडऩा चाहिए। जो कल-कल करता ...

नेल्लोर में चातुर्मास प्रवेश के मौके पर निकाली गई शोभायात्रा में उबरा जनसैलाब

नेल्लोर में मुनि गुणहंस विजय का चातुर्मास मंगल प्रवेश संपन्न हुआ नेल्लोर. मुनि गुणहंस विजय का अन्य दस मुनिवृंद के साथ सोमवार को श्री जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ के तत्वावधान में जैन आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवेश हुआ। इस मौके पर राजेंद्र टावर से गाजे-बाजे के साथ गुरुदेवों की शोभायात्रा निकली जो शहर के विभिन्न मार्गों से होते हुए कापू स्ट्रीट पहुंची जहां उनका सोमैया किया गया। राजेंद्र जैन नवयुवक परिषद, अर्हम ग्रुप और श्री नाकोड़ा भैरू जैन सेवा मंडल, श्री सुमति श्रेयांश जैन बालिका मंडल, श्री श्रेयांश जैन बालिका मंडल एवं महिला मंडल समेत अन्य मंडलों ने द्वारा शोभायात्रा एवं कार्यक्रम की व्यवस्था संभाली गई।। शोभायात्रा श्री जैन आराधना भवन पहुंचकर धर्मसभा में तब्दील हो गई। इस मौके पर मुनि गुणहंस विजय ने चातुर्मास के दौरान अधिक से अधिक धर्म आराधना, तपस्याएं करने को कहा। चातुर्मास में बहती ज...

ईंट को मजबूत अग्नि बनाती है: आचार्य पुष्पदंतसागर

श्रद्धा से ही मिल सकता है मुक्ति का पुरस्कार चेन्नई. कोलत्तूर जैन मंदिर में विराजित आचार्य पुष्पदंतसागर ने कहा ईंट को मजबूत अग्नि बनाती है। भाप से ईंट मजबूत हो जाती है। जीव को जीवनदान ऑक्सीजन एवं शरीर को रोशनी आंख देती है। शरीर को जितना सात्विक खाद-पानी देंगे उतना ही वह नीरोग रहेगा। आत्मभूमि पर जब श्रद्धा के बीज बोते हैं तो संसार से मुक्ति का पुरस्कार मिलता है। पैरों के आधार पर शरीर और नींव के आधार पर भवन खड़ा है। गाड़ी पहियों के आधार पर और जड़ों के आधार पर वृक्ष खड़ा है। मकान को सशक्त बनाने का काम लोहा, ईंट, पत्थर व सीमेंट करते हैं जबकि नींव की मजबूती पत्थरों से मिलती है। जड़ को मजबूत करने का काम खाद व पानी करते हैं। यदि आप चाहते हैं कि साधना के माध्यम से स्वयं के पास पहुंचें तो श्रद्धा भक्ति पर ध्यान देना होगा। आपने देखा होगा इस्लाम सूर्य की उपासना नहीं करता क्योंकि सूर्य का कोई वंशज नही...

Skip to toolbar