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भक्ति की पहली शर्त है पूर्ण आत्मसमर्पण:

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा अनन्तानुबंध भोगी कार्मों से मुक्त होना है तो तपस्या का सहारा लेना होगा। सम्यक विधि से की गई सम्यक आराधना अनेक भवों के पाप नष्ट करती है। सम्यक तप और सम्यक भावना से तपस्या में आए हुए दुख भी दूर हो जाते हैं। उन्होंने बताया जैन दर्शन में कहा जाता है कि परमात्मा कुछ कर नहीं सकता फिर भी उनकी भक्ति क्यों की जाती है। जैन धर्म में दीक्षित संत कभी गलत कर्म नहीं कर सकते। प्रभु महावीर ने तीन शरीर और छह पर्याप्ति बताई हैं। भगवान का औदारिक शरीर बहत्तर वर्ष आयु का था लेकिन उनका तेजो शरीर तीर्थंकर नामकर्म का बंध के इक्कीस हजार साल का है। उनका पुण्य धरा पर है, उनकी चेतना ही सर्वोच्च है और हमें इसका उपयोग कर हम उनके अनन्त पुण्य और चेतना के भागीदार बन सामथ्र्यवान बन सकते हैं। संसार का नियम है सुख के बाद दु:ख और दु:ख के बाद सुख आता ...

विकार से विकास की यात्रा के लिए धर्म जरूरी:

चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा यह मानव जीवन धर्म, तप कर जीवन को सफल बनाने के लिए मिला है। तप की आराधना कर इस मौके का लाभ उठाने वाले मनुष्य का जीवन सार्थक बन जाएगा। सत्संग से मनुष्य का जीवन धर्म ज्ञान से जुड़ता है। सौभाग्यशाली मनुष्य ही अपना काम छोड़ कर प्रवचन सुनने के लिए आते हंै और जीवन में ज्ञान का आलोक उत्पन्न करते हैं। उन्होंने कहा गुरु भगवंतों की वाणी से जीवन में नई प्रेरणा मिलती है। गुरु के चरणों में जाने से मनुष्य के मन का अंधकार दूर हो जाता है। जीवन को सार्थक बनाना है तो धर्म के कार्य में ध्यान केंद्रित करें। अपने जीवन को ऐसा बनाएं कि लोग आपसे प्रेरणा लें। उन्होंने कहा संतों का सान्निध्य मिला है तो हमें उनके चरणों में खुद को समर्पित कर देना चाहिए। विकार से विकास की ओर यात्रा करने के लिए धर्म बहुत ही जरूरी होता है। सागरमुनि ने कहा बिना समझ के किया ...

किया गया दान, कर्म व अभ्यास निष्फल नहीं जाता: मुनि संयमरत्न

चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न ने ‘कस्तूरी प्रकरण’ के बारे में बताया कि पुत्र का जन्म होने, महादेवी द्वारा सिद्धि प्राप्त होने, राज्य पद मिलने, अखूट लक्ष्मी प्राप्त होने, स्वर्ण सिद्धि होने व अत्यंत निकटतम संबंधियों के मिलने पर जितनी खुशी मानव को होती है, उतनी ही खुशी दानवीर पुरुष को याचक द्वारा कहे गए ‘देही'(मुझे दो) शब्द के सुनने मात्र से हो जाती है। काव्यकुशल व्यक्ति कविता बनाने में खुश रहता है, गीतकार गीत गाने में, कथारसिक को कथा करने में, विचारवान प्राणी चिंतन करने में खुश रहता है लेकिन इन सबमें सर्वश्रेष्ठ दान है जो एक ही समय में तीनों जगत को खुश कर देता है। देने वाला नदी की तरह मीठा, लेने वाला सागर की तरह खारा व मात्र इक_ा करने वाला नाले की तरह गंदा हो जाता है, अत: नदी की तरह देते रहेंगे तो हमेशा मीठे बने रहेंगे। कर्ण ने स्वर्ण और ...

पाप मिटाने के लिए धर्म करना जरूरी: साध्वी धर्मलता

चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा पाप मिटाने के लिए धर्म करना जरूरी है। जब तक विषयों में मस्ती, कषायों से दोस्ती होगी तब तक धर्म में सुस्ती रहेगी। विषय-कषाय पतन के गर्भ में धकेलने वाले हैं। विषयों के बजाय धर्म की मस्ती में लगने से ही कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा। जब भी अशुभ कर्मों का उदय हो तो समझ लें पुराना कर्जा उतरने वाला है। सहना है तो कहना क्यों? भोगना है तो भागना क्योंï? क्योंकि आप ट्रेन और प्लेन से चलते हैं। अत: धर्मक्रिया करने से पहले हमारे मन में अहोभाव और धर्म करते समय आनंद और उत्साह तथा धर्म कररे के बाद अनुमोदना के भाव हों। धर्म की सुस्ती दूर करनी हो तो समझ, शक्ति और समय का सदुपयोग करें। भगवान ने हमें रात-दिन के २४ घंटे दिए हैं इसमें हमें २४ मिनट तो धर्म के लिए निकालनी ही चाहिए। साध्वी ने कहा जीवन में धर्म का पैमाना जानना जरूरी है। क्रोधादि कषाय अंगार,...

कर्मों की निर्जरा होती है भक्ति से : साध्वी धर्मप्रभा

चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा भक्ति मोक्ष प्राप्ति का सबसे बड़ा साधन है। जैसे गंदे बर्तन में दूध फट जाता है वैसे ही यदि भक्ति के बिना चित्त में ज्ञान होगा तो विकृत हो जाएगा। भक्ति के लिए सबसे पहले अपनी आत्मा पर विश्वास एवं स्वयं में आस्था होना जरूरी होता है। प्रेम के दो रूप होते हैं-भक्ति और विश्वास। भक्ति से जीव के कर्मों की निर्जरा होती है। संसार घटता है व शाश्वत स्थान मिलता है जबकि आसक्ति रूपी प्रेम कर्मबंध करवाने वाला है। साध्वी ने कहा सौ काम छोडक़र भोजन करना चाहिए, लाख काम छोडक़र दान एवं करोड़ काम छोडक़र प्रभु भक्ति करनी चाहिए। मोक्ष के चार मार्ग हैं- ज्ञान, दर्शन, चारित्र व तप। इसमें सबसे पहले दर्शन की प्राप्ति होती है। श्रद्धा की प्राप्ति होना बहुत दुर्लभ होती है। साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा जो श्रद्धा से रहित है उसे ज्ञान प्राप्त नहीं होता और ज्ञान के ...

पाप-पुण्य का हिसाब रखना जरूरी : आचार्य पुष्पदंत सागर

चेन्नई. कोण्डितोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा, पाप-पुण्य का हिसाब रखना जरूरी है। किसी का अपमान किया हैं तो उससे क्षमा मांगें। यही पुण्य-पाप का हिसाब है। यदि आदमी परमात्मा की भक्ति में डूब जाए, एकाग्र हो जाए, शुद्ध एवं शुभ भावों से भर जाए, तो उसके मन एवं आत्मा से कई प्रकार का अज्ञान, अंधकार, पाप एवं विचार समाप्त हो जाते हैं। पाप की विशेषता है कि वह जाने से पहले अपनी संतति छोडक़र जाता है यानी दूसरे पाप को छोड़ जाता है। हमारे जन्म-मरण की परम्परा सदियों पुरानी है। हमने सदियों से बाहर की गंदगी को अंतर में भरने का प्रयास किया है और अंतस के प्रकाश को बाह्य वस्तु देखने में बर्बाद किया है। हिंसा, झूठ, चोरी, क्रोध, मोह, माया ये सब पाप कर्म हैं। शरीर रूपी घड़ा सोने के समान है मगर हमने उसमें जहर का कचरा भर रखा है। आदमी अहंकार के जोश में धर्म का अपमान करता है। जवानी के...

व्यक्ति आरम्भ और परिग्रह से मुक्त बने : आचार्य श्री महाश्रमण

*नौ दिवसीय उपासक प्रशिक्षण शिविर का हुआ प्रारम्भ*     *देश भर से 103 सम्भागी बने सहभागी* आदमी के जीवन में आरम्भ और परिग्रह है| ये दोनों चीजें जब तक उसके जीवन में जुड़ी रहती हैं, तो अध्यात्म साधना में बाधक हो सकती हैं| आरम्भ यानि हिंसा और परिग्रह यानि संग्रह मूर्च्छा| आदमी जब तक इनको छोड़ नहीं पाता है, तो वह वीतराग धर्म को भी सुन नहीं पाता|  इनको जाने बिना वह साधु भी नहीं बन पाता और केवलज्ञानी भी नहीं बन पाता है, उपरोक्त विचार माधावरम स्थित महाश्रमण समवसरण में ठाणं सूत्र के दूसरे अध्याय का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने उपस्थित धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहे| आचार्य श्री ने आगे कहा कि आध्यात्मिक साधना में इन दोनों का त्याग आवश्यक है| गृहस्थ के ये दोनों जुड़े हुए हैं, पर साधु इन दोनों के पूर्णतया त्यागी रहते हैं|  गुरूदेव तुलसी ने प्रतिक्रमण के हिन्दी अनुवाद में लिखा हैं कि श्रावक...

नौ तत्वों में चौथा तत्व पाप: आचार्य महाश्रमण

चेन्नई. माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में विराजित आचार्य महाश्रमण ने गुरुवार को कहा कि पाप एक है। नौ तत्वों में चौथा तत्व पाप है। नरक से निकलकर भी जीव तीर्थंकर बन सकता है। आदमी अपने जीवन में धर्म करता है तो पाप भी कर लेता है। राजा श्रेणिक द्वारा पंचेंद्रिय प्राणियों की हत्या का वृत्तांत सुनाते हुए आचार्य ने कहा, अशुभ कार्यों से मिलने वाला पाप का फल भी पाप ही होता है। पाप की प्रवृत्तियां पाप का अर्जन कराने वाली होती हैं। आचार्य ने कहा कि द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा का महत्व है। राग द्वेष के बिना हिंसा नहीं होती। आत्मा ही हिंसा और अहिंसा का कारण बनती है। द्रव्य के साथ की गई हिंसा नहीं, हिंसा का भाव हो तो भी हिंसा पाप का फल देने वाली होती है। आदमी को झूठ बोलने के पाप से भी बचना चाहिए। साथ ही उसे आत्मा को चोरी के पाप से भी बचाना चाहिए।  

जो मिला है उसका सदुपयोग करें : प्रवीणऋषि

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा आहार में संयम रखें। इससे स्वस्थ जीवन जी सकेंगे। परमात्मा ने जीवन को चलाने के लिए छह पर्याप्ति बताए हैं जो मैं आहार के लिए पुद्गल ग्रहण करता हंू उसी से मेरा शरीर, भाषा,मन सभी चलते हैं। पहला सूत्र है आहार, जिसके कारण शरीर का पोषण हो न कि शरीर परेशान हो जाए। यह आपको ही तय करना है कि आपके शरीर के लिए क्या जरूरी है। आपका शरीर ही आपका गुरु बन सकता है। दूसरा सूत्र है शरीर। इससे हम जितना अधिक काम लेंगे व परिश्रम करेंगे, इसकी क्षमता बढ़ेगी। इसे स्वस्थ, सशक्त और समर्थ बनाना है तो इसका पूर्ण उपयोग करना होगा। तीसरा सूत्र है उपाधीश यानी बोझ। अपने मस्तिष्क पर हम व्यर्थ के विचारों का दबाव बनाए रखते हैं और व्यर्थ ही इस भार को ढोते रहते हैं। कोई काम हो जाने के बाद भी उसे नहीं छोडऩा ही उपाधि कहलाता है। हमें जम्बूस्वामी के चरित्र स...

संयम, तप से दूर होता है जीवन का अंधकार : गौतममुनि

चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा मनुष्य जितनी सावधानी से प्रवचन सुनेगा उसे उतना ही लाभ मिलेगा। परमात्मा की दृष्टि वाणी सभी के जीवन में आलोक भर देती है। ध्यान केंद्रीय करके प्रवचन सुनने से धर्म और पाप के मार्गों का अंतर पता चलता है। दोनों के अंतर को समझने के बाद व्यक्ति पापों से मुक्त हो सकता है। ऐसा तभी संभव होगा जब लोग समय निकाल कर प्रवचन में आकर परमात्मा की वाणी सुनें। मनुष्य को प्रवचन सुनने से वंचित नहीं होना चाहिए, क्योंकि एक शब्द भी जीवन में बदलाव कर सकता है। गटर के पानी का स्वच्छ होना बहुत ही कठित होता है लेकिन वहीं पानी अगर गंगाजल में मिल जाता है तो शुद्ध हो जाता है। उसी प्रकार जीवन को सफल बनाना है तो सज्जनों की संगति रखें। जैसी संगति होगी वैसा ही जीवन का विस्तार होता चला जाएगा। मनुष्य ने जीवन में दिखावा बहुत कर लिया अब भावित होकर धर्म, तप करना चाहिए...

जीवन की सफलता के लिए उदारता को अपनाएं: कपिल मुनि

चेन्नई. गोपालपुरम स्थित छाजेड़ भवन में विराजित कपिल मुनि ने कहा इंसान का जीवन एक तिजोरी के समान है इसमें सद्गुण रूपी आभूषण रखें व दुर्गण नहीं। कृपणता जीवन में उदारता के गुण को प्रकट नहीं होने देता। जहां उदारता है वहां मधुरता और सरसता का वास है। उदार व्यक्ति ही लोकप्रिय और भगवान की कृपा का पात्र बनता है। जहां सिर्फ संग्रह है वहां खारापन होता है। समुद्र इसका ज्वलंत उदाहरण है । नदी का पानी मीठा होता है क्योंकि वह वितरण करती है। कंजूस व्यक्ति बड़ा शोषण कर्ता भी होता है वह येन केन प्रकारेण धन संग्रह के लिए न्याय नीति, धर्म, कानून और मानवता सबकी बलि चढ़ा देता है ऐसा व्यक्ति न खुद चैन से जीता है और न किसी को चैन से जीते हुए को देख पाता है उसके सारे कृत्य जघन्य और अमानवीय बन जाते हैं । कंजूस के समान पाखंडी और क्रूर व्यक्ति ढूंढऩे पर भी नहीं मिलता। स्वयं के जीवन पथ को आलोकित करने के साथ दूसरों की ज...

शुद्ध बुद्धि ही दिलाती है सिद्धि: मुनि संयमरत्न विजय

चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में मुनि संयमरत्न विजय ने कहा शुद्ध बुद्धि ही सिद्धि दिलाती है। साधनों में मस्त रहने वाला साधना से दूर हो जाता है। मोक्ष-सुख को प्राप्त करने के लिए प्राणी को दान आदि पुण्य के कार्य, कषायों पर विजय, माता-पिता, गुरु व परमात्मा की पूजा, विनय, न्याय, चुगली का त्याग, उत्तम पुरुषों की संगत, हृदय की शुद्धता, सप्त व्यसनों का त्याग, इंद्रियों का दमन, दया आदि धर्म, गुण, वैराग्य तथा चतुराई को धारण करना चाहिए। जो बुद्धिशाली मानव सुपात्रदान करता है, उसकी कीर्ति, पवित्रता, सुख व चतुरता में निरंतर अभिवृद्धि होती रहती है। शील-सदाचार का पालन करने वाले, कठिन तप करने वाले, शुभ भाव धारण करने वाले तो बहुत मिल जाते हैं, लेकिन प्रचुर मात्रा में दान देने वाले तो विरले ही होते हैं, जो यदा-कदा ही हमें दिखाई देते हैं। विवेकी मनुष्य अपने धन को परोपकार में लगाकर परलोक सुधारते हैं...

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