चेन्नई. गोपालपुरम स्थित छाजेड़ भवन में विराजित कपिल मुनि के सानिध्य में रविवार को सर्व सिद्धि प्रदायक भक्तामर स्तोत्र जप अनुष्ठान हुआ जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। जप अनुष्ठान के बारे मुनि ने बताया कि जप जीवन की अनमोल निधि है। जप से पवित्र आभामंडल का निर्माण होता है जो कि व्यक्ति के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है। प्रतिदिन नियमित रूप से चेतना की विशुद्धतम अवस्था को प्राप्त परमात्मा को नमन और उनके सद्गुणों का स्मरण करने से नमस्कार पुण्य का लाभ अर्जित होता है जिससे व्यक्ति की आंतरिक और बाहरी समृद्धि का विस्तार होता है। मुनि ने प्रवचन में कहा जिन्दगी में क्रांति और चेतना के रूपांतरण के श्रेष्ठतम विकल्प है – संत समागम और वीतराग वाणी का श्रवण। संत समागम से जीवन जीने की समुचित कला का ज्ञान मिलता है। आध्यात्मिक बल को प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है। संसार में शक्ति के ...
चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में रविवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि के सानिध्य में आचार्य आनन्दऋषि का 119वां जन्मोत्सव शुरू हुआ। आगामी 12 अगस्त तक चलने वाले इस महोत्सव के पहले दिन 36 लाख नवकार महामंत्र का जाप और साथ ही ध्यान साधना कार्यक्रम हुआ। इस मौके पर उपाध्याय प्रवर ने कहा नवकार महामंत्र के प्रभाव से भवी जीवों के रोग व दुखों का शमन और प्रगति व कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। नवकार के श्रवण और जप से संसार में विपदाओं से त्रस्त प्राणियों में नव ऊर्जा का संचार कर उनका जीवन मंगलमय बनता है, उन्हें मोक्ष मार्ग पर ले जाता है। इसी के साथ श्री एस.एस. जैन संघ, नॉर्थ टाउन, पेरम्बूर द्वारा णमोत्थुणं जाप हुआ जबकि सोमवार को एकासन दिवस एवं मंगलवार को चातुर्मास समिति द्वारा विïद्या साहित्य दान कार्यक्रम होगा। महोत्सव के अंतर्गत 5 से 12 अगस्त तक अनेक कार्यक्रमा आयोजित होंगे। इसके ...
चेन्नई. कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंतसागर ने कहा सज्जन वही है जो साधु प्रेमी है, शांत है, धर्म एवं चारित्र प्रेमी है। दुर्जन वही है जो साधु निंदक व धर्म विरोधी है, आचरणहीन व दूसरों से ईष्र्या-द्वेष रखता है। संसार प्रेमी व विषयभोगी है। मिट्टी शरीर से बेहतर है, वह अन्न, जल व शरण देती है। शरीर का सदुपयोग करने वाले को बुरे विचार नहीं आते, परिवार का हित सोचने व करने वाले के मन में विचार गलत कभी नहीं आते। आत्मशक्ति सबसे बड़ा पावर है जो सबको शक्तिमान बनाता है। शक्ति के सारे पुर्जे आत्मशक्ति से ही चल रहे हैं। शरीर का गलत उपयोग करके आदमी पत्थर जैसा बन जा सकता है एवं सदुपयोग कर सबको प्रकाशित कर सकता है। प्रतिदिन टीवी पर विकथाएं तो देखने को मिलती हैं लेकिन सत्पुरुषों की कथाएं बहुत मुश्किल से देखने को मिलती हैं। महापुरुषों की कथा से मन कभी नहीं भरता बल्कि पुण्य की वृद्धि ...
महावीर सदन में जैन दिवाकर विचार मंच युवा शाखा अधिवेशन कोलकाता. छुआछूत को मानना-अपनाना शर्मनाक है और यह साक्षात परमात्मा का अपमान करने के समान है। मानव की शारीरिक रचना समान है, सभी के शरीर में खून लाल है और जन्म के समय किसी के सिर पर कोई जाति नहीं लिखी होती। मानव जाति एक है लेकिन किसी कुल में जन्म लेने मात्र से किसी को हीन अथवा किसी को महान मान लेना घोर अज्ञानता का प्रतीक है। राष्ट्रसंत कमल मुनि कमलेश ने महावीर सदन में अखिल भारतीय जैन दिवाकर विचार मंच नई दिल्ली युवा शाखा के अधिवेशन को संबोधित करते हुए शनिवार को यह उद्गार व्यक्त किए। अधिवेशन के दौरान युवाओं ने जाति से ऊपर उठकर मानवता का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि मानव जन्म से नहीं कर्म से महान होता है। मुनि ने वर्ण व्यवस्था परंपरा पर कहा कि चारों ही वर्ण हमारे अंदर छिपे हुए हैं। जब शरीर की सफाई करते हैं तब शूद्र हैं, लेनदेन करते समय वणिक, ...
हर परिस्थिति में सत्य की राह पर चलें चेन्नई. अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी कुमुदलता ने शनिवार को प्रवचन में अणुव्रतों का उल्लेख करते हुए कहा कि इन्सान को किसी भी परिस्थिति में सत्य का साथ नहीं छोडऩा चाहिए। सत्य की राह पर चलकर आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। उन्होंने भगवान श्री रामचंद्र का जीवन प्रसंग सुनाते हुए कहा कि श्रीराम ने सत्य और मर्यादा का दामन नहीं छोड़ा इसलिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए और पूजनीय बन गए। हमें भगवान राम के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में सत्य की राह चुननी चाहिए और असत्य को जीवन से बाहर कर देना चाहिए। उन्होंने कहा रविवार को उपाध्याय केवल मुनि की जयंती मनाई जाएगी। इसलिए सभी भक्तगण अपने बच्चों को लेकर अवश्य आएं ताकि उनको भी उपाध्याय केवल मुनि के व्यक्तित्व के बारे में जानकारी हासिल हो सके। साध्वीवृन्द की निश्रा में गुणानुवाद सभा ...
चेन्नई. ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने प्रवचन में तप का अर्थ बताते हुए कहा जिस कार्य से कर्मों को तपाया जाए वही तप है, इच्छाओं पर नियंत्रण करना तप है। उन्होंने कहा तप एक लिफ्ट के समान है जो एक मंजिल से दूसरी मंजिल की ओर ले जाती है और अंत में जीवात्मा मोक्ष की सिद्धि पर आरूढ होकर भव भ्रमण से मुक्ति प्राप्त करता है। साध्वी ने कहा तप एक रामबाण औषधि है जिससे बड़े-बड़े रोग भी मिट सकते हैं। कर्म रूपी मैल से आत्मा को शुद्ध करने की ताकत तपस्या में ही है। तप से कभी निदान नहीं करना चाहिए।
चेन्नई. कोंडितोप में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने प्रवचन में कहा, राग-द्वेष का सबसे बड़ा कारण मन होता है। मन पर अंकुश लगाना और इसे संयम से बांधना जरूरी है। अगर हमने मन को अपने वश में कर लिया तो इस भव सागर से तरना संभव है। आचार्य ने कहा जब ओस की बूंद कमल पत्र पर ठहरती है तो वह मोती के समान चमकती है। परमात्मा उस कमल पत्र के समान है और भक्त ओस की बूंद। भक्त को परमात्मा की शरण मिलते ही दिव्यता प्राप्त हो जाती है। उन्होंने कहा हमारा शरीर भी ओस की बूंद की तरह कमजोर और क्षणिक टिकने वाला है फिर भी इंसान नश्वर दुनिया के पीछे पागल है। शरीर का उपयोग कैसे किया जाए यह हम पर निर्भर है। यदि इसका सदुपयोग किया जाए तो सोना बन सकता है और दुरुपयोग किए जाने पर मिट्टी से भी बदतर। इस लिए हमें शरीर का सदुपयोग करना चाहिए। आचार्य ने कहा नकारात्मक विचार जीवन के उत्साह को कम कर देते हैं और सकारात्मक ...
चेन्नई. एम.के.बी. नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने शनिवार को कहा कि धर्म में पुरुषार्थ करना बहुत कठिन है क्योंकि संसार में कई ऐसे भी इंसान होते हैं जिन्हें धर्म की जानकारी नहीं होती है और कुछ ऐसे भी जिनको धर्म की जानकारी तो है लेकिन वे अपने तन या मन की दुर्बलता के कारण धर्म में पुरुषार्थ नहीं कर सकते। बहुत ही विरली आत्माएं होती हैं जो धर्म को जानती भी है और पुरुषार्थ भी करती है। ऐसी आत्माएं ही कर्मों के मैल को जलाकर स्वयं के भीतर ज्ञान की अखंड ज्योति जला सकती हैं। साध्वी ने कहा वैयावच्च यानी सेवा करना व्रतों और तपों में सबसे बड़ा तप है। सेवा धर्म एक ऐसा आभूषण है जिसको अंगीकार करने वाले को परम समभावी और विनयवान बनना आवश्यक है। साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा त्याग के बिना सच्ची शांति नहीं मिल सकती, क्योंकि जब तक आत्मा पर कर्मों का मल लगा होता है तब तक आत्मा को शांति और अनन्त सुख की प...
श्रद्धा और तत्व को समझ कर सम्यक्त्व स्वीकार करने की दी पावन प्रेरणा महातपस्वी के सान्निध्य में बह रही तप की अविरल गंगा माधावरम स्थित महाश्रमण समवसरण में धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री महाश्रमणजी ने ठाणं सुत्र के दूसरे अध्याय का विवेचन करते हुए कहा कि दर्शन के दो प्रकार बताए गए हैं, सम्यक् दर्शन और मिथ्या दर्शन। वैसे दर्शन शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, एक अर्थ है देखना, जैसे मैने गुरू या चारित्र आत्माओं के दर्शन किये। दूसरा अर्थ है प्रदर्शन यानि दिखावा, तीसरा अर्थ है सिद्धांत जैसे जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन, भारतीय दर्शन इत्यादि दर्शन का चौथा अर्थ है। आँख (लोचन) जिसके द्वारा देखा जाए, दर्शन का पाँचवा अर्थ है सामान्यग्राही बोध (सामान्य ज्ञान) जैसे पच्चीस बोल के नवमें बोल में चार दर्शन बताये गये हैं। दर्शन का छठा अर्थ होता है तत्वरूचि यानि श्रद्धा, आस्था, आकर्षण। आचार्य श्री ने आगे बताया क...
चेन्नई. मनुष्य का प्रत्येक कार्य अगर आत्मा से हो तो वह दूसरों को भी आनंद प्रदान करता है। साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने शनिवार को कहा कि जीवन में जिस चीज के करने से आत्मा को शांति और आनंद मिले वही करना चाहिए। दुख देने वाले चीजोंं से दूरी बना कर रखनी चाहिए। लेकिन गलत भाव से दूसरों में भी राग द्वेष की भावना उत्पन्न होती है। जीवन मेंं कोई भी कार्य करने से पहले मन में सरलता होनी चाहिए। अपने द्वारा कहा हुआ एक भी गलत शब्द दूसरों के मन में राग द्वेष की भावना उत्पन्न कर सकता है। इसलिए मनुष्य को किसी के सामने कुछ भी बोलने से पहले बहुत बार सोचने की जरूरत होती है। किसी को चुभने वाले शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमेशा मीठे शब्द का ही प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि एक कड़वा शब्द जीवन भर के रिश्ते को पल भर में खत्म कर सकता है। शब्दों में बहुत ताकत होती है और उस ताकत...
चेन्नई. जगत की समस्त शक्तियां उसके पैरों में व समस्त ऋद्धि-सिद्धियां उसके हाथों में आ जाती है, जो संयम का पालन करता है। साहुकारपेट के राजेन्द्र भवन में मुनि संयमरत्न विजय व भुवनरत्न विजय ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि शील, ब्रह्मचर्य, सदाचार के पालन से ही मनुष्य को देवलोक की संपदाएं व यश कीर्ति प्राप्त होती है। जगत पर विजय प्राप्त करने वाला शील-संयम रूपी मंत्र को जो हृदय में धारण कर लेता है फिर उसे हाथी, सिंह, सर्प, समुद्र, रोग, चोर, बंधन, युद्ध व अग्नि का भय नहीं रहता। जो प्राणी शील रूपी आभूषण को स्व-अंगों पर धारण करता है, उसका यशगान देवांगनाएं अपने मुख से गाते नहीं थकती और उसकी चरणरज को देवता मुकुट की माला की तरह नहीं त्यागते तथा उसके नाम को योगी पुरुष सिद्ध के ध्यान की तरह हृदय में धारण करते हैं। सद्विचार से सदाचार स्थिर रहता है, कुविचार के परिणामस्वरूप मानव अनाचार की ओर बढ़ जाता...
—राष्ट्रसंत कमल मुनि की बेबाक टिप्पणी कोलकाता. भ्रूण हत्या गोहत्या से भी अनंत गुना ज्यादा पाप है। वात्सल्य ममता रूपी मां की कोख में पल रही निर्दोष संतान की हत्या कर अपनी कोख को कत्लखाने के रूप में परिवर्तित करके अबोध बाल मानस को बर्बरतापूर्वक मौत के घाट उतारने वाले दरिंदे मानवता पर कलंक रिश्तों का शर्मसार करने वाली दुरात्मा है। उनके काले कारनामों से शैतान भी शर्मिंदगी महसूस कर रहा होगा। राष्ट्रसंत कमल मुनि कमलेश ने शुक्रवार को अखिल भारतीय जैन दिवाकर विचार मंच महिला शाखा के समारोह को महावीर भवन में संबोधित करते हुए यह बेबाक टिप्पणी की। मुनि ने कहा कि भ्रूण हत्या मातृत्व हत्या के समान है। इसके दोषी धार्मिक तो क्या इंसान कहलाने का भी उन्हें अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि उस पवित्र आत्मा को मौत के घाट उतारना साक्षात लक्ष्मी सरस्वती दुर्गा मां को कत्ल करने के समान है और यह क्रूरता की परा...