चेन्नई. अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी कुमुदलता ने भगवान महावीर के सत्याणुव्रत का उल्लेख करते हुए कहा कि इंन्सान को सत्य की राह पर चलते रहना चाहिए। किसी भी स्थिति में झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए। सत्य बोलने वाले की हमेशा जीत होती है। सत्य की राह पर चलकर ही व्यक्ति अपने आप को परमात्मा से जोड़ सकता है। सत्य ही इन्सान को विश्वास दिलाता है कि धर्म सत्य पर टिका है। उन्होंने एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि व्यक्ति को जरूरत से ज्यादा अनुराग, स्नेह आदि संबंधों के अधीन नहीं होना चाहिए। व्यक्ति को स्नेह, अनुराग और प्रेम भाव रखना चाहिए लेकिन उसके मोह जाल में नहीं फंसना चाहिए। यदि व्यक्ति इस मोह जाल में फंस जाता है तो उसे पूरी दुनिया छोटी लगने लगती है जिससे उसे जन्म-जन्मांतर तक दुखों का ही सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कुछ परम्पराएं ऐसी हैं जो अतीत से चलती आ रही हैं, वर्...
हावड़ा. माहेश्वरी सभा महिला संगठन युवा मंच हावड़ा की ओर से सामूहिक रूद्राभिषेक रविवार को बालाजी उत्सव बैंक्वेट, अवनी रिवरसाइड मॉल जगत बनर्जी घाट रोड हावड़ा में हुआ। मुख्य यजमान सीता देवी, भंवरलाल मूंधड़ा (नापासर निवासी) और आचार्य चिरंजीभाई गौड़ (नापासर वाले) के साथ 141 जोड़ों ने इसमें भाग लिया। करीब 2 हजार से ज्यादा शिवभक्तों ने महाप्रसाद ग्रहण किया। संरक्षक ओमप्रकाश मल्ल, नंदकिशोर लाखोटिया, अध्यक्ष श्यामसुंदर राठी, गायत्री जाजू, नारायण प्रसाद चांडक, संयोजक राजकुमार मोहता, नंदकिशोर मोहता, सुषमा राठी, भगवती बागड़ी, गोविंद मूंधड़ा, जगमोहन राठी, मंत्री अशोक भट्ड़, सरोज राठी और रोहित राठी सक्रिय रहे। माहेश्वरी सभाध्यक्ष पुरुषोत्तम दास मिमानी, वृहत्तर कोलकाता माहेश्वरी सभाध्यक्ष भंवरलाल राठी, मंत्री नंदकुमार लड्ढ़ा, उपाध्यक्ष बृजकुमार बलदेवा, ब्रजमोहन मूंधड़ा, संयुक्त मंत्री संजय लखोटिया, वृहत्...
चेन्नई. अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी कुमुदलता ने भगवान महावीर के सत्याणुव्रत का उल्लेख करते हुए कहा कि इंन्सान को सत्य की राह पर चलते रहना चाहिए। किसी भी स्थिति में झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए। सत्य बोलने वाले की हमेशा जीत होती है। सत्य की राह पर चलकर ही व्यक्ति अपने आप को परमात्मा से जोड़ सकता है। सत्य ही इन्सान को विश्वास दिलाता है कि धर्म सत्य पर टिका है। उन्होंने एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि व्यक्ति को जरूरत से ज्यादा अनुराग, स्नेह आदि संबंधों के अधीन नहीं होना चाहिए। व्यक्ति को स्नेह, अनुराग और प्रेम भाव रखना चाहिए लेकिन उसके मोह जाल में नहीं फंसना चाहिए। यदि व्यक्ति इस मोह जाल में फंस जाता है तो उसे पूरी दुनिया छोटी लगने लगती है जिससे उसे जन्म-जन्मांतर तक दुखों का ही सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कुछ परम्पराएं ऐसी हैं जो अतीत से चलती आ रही हैं, वर...
चेन्नई. कोण्डीतोप स्थित सुन्देशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा कि ग्रहण चन्द्रमा को ढंक लेता है। झूठ सत्य को ढंक लेता है। बादल सूर्य को ढंकने की कोशिश करता है। किन्तु फिर भी प्रकाश धरा पर पूरा आता है। कर्म आत्मा को कितने भी ढंके फिर भी चेतना के स्वभाव को नहीं ढंक पाता। बड़े माया के साथ झूठ बोलते हैं। बालक मासूम झूठ कपट रहित झूठ बोलते हैं। मैया मैं नहीं माखन खायो। इसमें छल कपट नहीं है। हर नर नारायण बन सकता है। हर बूंद सागर बन सकती है। हर बीज वृक्ष बन सकता है। हर आत्मा परमात्मा बन सकती है। तीर्थंकर ने उद्घोष किया है कि तुम परमात्मा बन सकते हो। परमात्मा बनने से तुम्हें किसने रोका है। तुम स्वयं अपने उत्तरदायी हो। यदि तुम सत की साधना में जुट जाओगे तो असत धीरे-धीरे टूटता जाएगा। बादल सूर्य और चंद्रमा को ढंक लेता है और सूर्य व चंद्रमा के दर्शन नहीं होते। दिखाई नहीं देते, लेकिन स...
उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा चेन्नई. पुरुषावाक्कम स्थित श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि के सान्निध्य में आचार्य आनन्दऋषि जन्मोत्सव के अंतर्गत प्रात: 8.30 बजे से 10 बजे तक 36 णमोत्थुणं जाप और आनन्द चालीसा का पाठ कराया गया। इस अवसर पर प्रवीणऋषि ने कहा कि नमस्कार महामंत्र और णमोत्थुणं जाप का प्रयोग जैनाचार्यों द्वारा जीवन में आने वाली समस्याओं, आपदाओं को दूर करने और जीवन को मंगलमय बनाने के लिए किया गया है। इन महामंत्रों के प्रभाव से शीघ्र ही कष्टों का हरण हो जाता है और जीव की आत्मा शुद्ध हो जाती है। नवकार और णमोत्थुणं महामंत्र में अनन्त तीर्थंकरों का पुण्य ग्रहण करने की शक्ति है। जीवन समस्याओं का दूसरा नाम है और सामान्य व्यक्ति समस्याओं को हल करते हुए और समस्याओं से घिरता जाता है। उपाध्याय प्रवर ने ‘आनन्द चरित्र’ में बताया कि आचार्य आनन्दऋ...
चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने सोमवार को कहा सेवा करना एक विशिष्ट और आंतरिक तप होता है। अपने परिवार, पड़ोसी और समाज के साथ अध्यात्म क्षेत्र में गुरुभगवंतों की सेवा करना जीवन को आनंद से भर देता है। मनुष्य में सेवा करने का भाव के साथ लक्ष्य भी होना चाहिए। उत्तम भाव रखने वाले लोग अपने दोस्त यार को भी धर्म के कार्यो से जोडऩे का प्रयास करते हैं। ऐसा करने पर अपने आप ही जीवन में खुशी के माहौल बनने लगते है। वर्तमान में लोग थोड़े से पैसे की वजह से गलत कार्य करने में लगे हुए हैं जबकि उन्हें ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। धर्म के मार्ग पर चलने वाला मनुष्य ऐसा कभी नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि मनुष्य की आत्मा में पुण्य के प्रकाश का उदय होने पर भयंकर अंधकार में भी पुण्य का मार्ग मिल जाता है। जीवन से अपने प्रत्येक बुराई को समाप्त करने का प्रयास करते रहना चाहिए। समाज के उत्थान के ल...
चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने कस्तूरी प्रकरण के तप-प्रक्रम का वर्णन करते हुए कहा कि जिस प्रकार बिना अग्नि के भोजन नहीं पकता, कोमल मिट्टी के बिना घड़ा नहीं बनता, तंतुओं के बिना कपड़ा नहीं बनता उसी प्रकार बिना तप के कर्मों का नाश नहीं होता। कुशलता रूपी कमल को विकसित करने के लिए सूर्य के समान, शील रूपी वृक्ष को बढ़ाने के लिए पानी के समान, विषय रूपी पक्षी को पकडऩे के लिए जाल समान, क्लेश रूपी बेल को जलाने के लिए अग्नि समान, स्वर्ग मार्ग की ओर जाने के लिए वाहन समान ऐसे मोक्ष दिलाने वाले तप को आकांक्षा, अपेक्षा रहित होकर करना चाहिए। इंद्रिय रूपी हाथी को सही मार्ग की ओर चलाने के लिए तप अंकुश के समान है, ऐसे मोक्ष प्रदायक तप को भोजन के प्रति निरासक्त होकर करना चाहिए। जैसे समुद्र के प्रति नदी, विनयवान के प्रति विद्या, सूर्य के प्रति किरण, वृक्ष के प्रति बेल...
चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा माया कैंची जबकि सूई जोडऩे का काम करती है। धन वाले को चोरों की भय होता है और कपटी को अपनी पोल खुलने का डर सताता है। छल, कपट, प्रपंच आदि माया के ही पर्यायवाची हैं। मायावी जीव बहुरूपिया होता है। ऊपर से सरल बनता है और अंदर से कपट करता है। ऊपर से तो मीठी छुरी जैसा और अंदर से झूठा होता है। उसकी कथनी और करनी में अंतर होता है। माया शल्य एवं केशर की गांठ की तरह होता है जो सारी साधना को नष्ट कर देती है। साध्वी ने कहा गिरगिट का रंग, कपटी का मन और नेता का दंड कभी भी पलट सकता है, अत: हमें माया कषाय से दूर रहना है। सहमंत्री खेमचंद बोहरा ने बताया कि नौ अगस्त को आचार्य जयमल का सामूहिक जप-तप अनुष्ठान किया जाएगा।
चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा ऋजु आत्मा ही एक दिन सव्रश्रेष्ठ स्थान पाती है। एक इनसान वह है जिसने घरबार त्याग कर संन्यास ले लिया, वस्त्र त्याग कर दिगम्बर बन गया, तप ऐसा कि हर माह मासखमण का पारणा करता है। ऐस त्यागी के मन में यदि माया आ जाए तो उसे अनंत बार मां के गर्भ में आकर दुख भोगना पड़ेगा। इनसान थोड़े से लाभ के लिए धोखाधड़ी कर लेता है और अपने ईमान व विश्वास को बेच देता है। जिसके कर्म अच्छे होते हैं किस्मत उसकी दासी बन जाती है। जिसकी नीयत अच्छी होती है उसके लिए तो घर में ही मथुरा-काशी एवं घर ही तीर्थस्थल बन जाता है। वक्रात्मा कभी भी संसार से तिरने वाली नहीं है। साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा मानव जन्म धर्मश्रवण, धार्मिक श्रद्धा एवं संयम में पराक्रम ये चार प्रधान अंग पाकर मुक्ति की ओर प्रवृत्त हुए सरल स्वभाव वाले व्यक्ति की शुद्धि होती है और शुद्धि प्राप्त आत्...
जैन विद्या कार्यशाला हुई प्रारम्भ चेन्नई. ठाणं सूत्र में दूसरे स्थान में धर्म के दो प्रकार बताए गए हैं -श्रुत धर्म, चारित्र धर्म| वैसे धर्म के अनेक वर्गीकरण किए जा सकते हैं, उनमें एक वर्गीकरण हैं ज्ञान धर्म और आचार धर्म! आचार का पालन तब सही हो सकता है, जब वह ज्ञानपूर्वक होता है| ज्ञान विहीन चारित्र का पालन, चारित्र विहीन ज्ञान दोनों अधुरे होते हैं| उपरोक्त विचार माधावरम् स्थित महाश्रमण समवसरण में श्रावक समाज को संबोधित करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण जी ने कहे| आचार्य श्री ने आगे कहा कि कुछ लोग जानते हैं लेकिन आचरण करने में समर्थ नहीं होते, कुछ लोग आचरण करने में समर्थ होते पर कैसे क्या करना चाहिए यह ज्ञान नहीं होता है| ज्ञानपूर्वक आचार का पालन करनेवाले विरले ही होते हैं| गुरु के श्री मुख से निकलने वाली वाणी को सुनकर ज्ञान हो जाना श्रुत धर्म के अंतर्गत आता है| आचार्य श्री ने आगे कहा कि प्राची...
मानवता की राह फूलो नहीं बल्कि काटो भरी होती है। फूल तो स्वभाव से कोमल होता है पर शूल को कोमल बनाना आपकी विशेषता को दर्शाता है। यही गुण गुरुदेव सौभाग्यमालजी में भरे पड़े थे। ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने अपने प्रवचन में कहा की हमे खुद को ऐसा बना चाहिए जिससे की शूल भी फूल में बदल जाए। जन्म तिथि और पुण्य तिथि महापुरषो की मनाई जाती है। महापुरुष धरती पर महावीर का सन्देश सुनाने हेतु अवतरित होते है। साध्वी ने श्री सौभाग्यमालजी की 34वी पुण्य तिथि पर कहा की उनका जन्म 1953 में हुआ था। जब वो दो वर्ष के तभी उनके ऊपर से माता पिता का साया उठ गया। इसके बावजूद उन्होंने धर्म का मार्ग अपनाया। वे अपने प्रवचन में गीता, बाइबिल, कुरआन आदि ग्रन्थ का उल्लेख करते थे। उनका कहना था की मनुष्य को धर्म विशेष को नहीं बल्कि उसकी अच्छाइयों को स्वीकार करना चाहिए। श्रमण संघ की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान है।
उपासकों को निरवध, लोकोत्तर कार्य करने की दी पावन प्रेरणा किड्सजोन (KIDZONE) का हुआ उद्घाटन ज्ञान दो प्रकार का होता है – प्रत्यक्ष ज्ञान और परोक्ष ज्ञान| ज्ञान एक ऐसा तत्व है, जो प्रकाश करने वाला होता है, प्रकाशवान हैं| किसी भी प्रकार का ज्ञान क्षयोपशम या क्षायिक भाव से होता है| शस्त्र का ज्ञान भी ज्ञान होता है, जैसे शस्त्र को कैसे चलाना| ज्ञान आत्मा की उज्जवलता से प्राप्त होता हैं, पर उसका उपयोग कैसे हो? उसके साथ मोह जुडने से व्यक्ति सावध (पापकारी) कार्य कर लेता हैं| ज्ञान की जानकारी निरवध हैं, उपरोक्त विचार माधावरम् स्थित महाश्रमण समवसरण में श्रद्धालुओं के समक्ष ठाणं सुत्र के दूसरे अध्याय का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहे| प्रत्यक्ष ज्ञान सीधा आत्मा से जुड़ा हुआ होता है, इन्द्रिय निरपेक्ष होता है| पच्चीस बोल के नवमें बोल में पांच ज्ञान बताये गये हैं| इनमें से मति ज्ञान ...