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संसार में अनुशासन भय और लोभ से होता है

चेेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में जारी आचार्य आनंदऋषि जन्मोत्सव के अंतर्गत गुरुवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने लोगस्स जप, आनन्द चालीसा और आनन्द गाथा सुनाई। इसके साथ ही एस.एस. जैन संघ कोसापेट द्वारा तेला धारणा और लाइफ एम्पावरमेंट स्किल्स व महिलाओं को स्वयं में छिपी प्रतिभा और शक्ति को पहचानने का कार्यक्रम हुआ। इस मौके पर उपाध्याय प्रवर ने कहा संसार में अनुशासन भय और लोभ से होता है। मनुष्य के जीवन में भय और प्रलोभन आते ही रहते हैं। गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण रखने वाला मनुष्य इनके चक्कर में नहीं आता और रास्ते से कभी नहीं भटकता। आनन्दऋषि अपने गुरु के रहते या न रहते हुए भी उनके वचनों से बाहर कभी नहीं गए। मनुष्य का नजरिया सही हो तो मन भी सही दिशा में चलता है। जिस प्रकार पत्थर को मूर्तिकार अपनी सावधानी और कला से मूर्ति का स्वरूप देता है और एक छोटी-सी गलती उसकी सारी मेहनत को बिगाड़ सक...

लोभ द्रोपदी के चीर की तरह लम्बा है

चेन्नई. ताम्बरम में साध्वी धर्मलता ने कहा कि लोभ दुख एवं संतोष सुख है। लोभ द्रोपदी के चीर की तरह लम्बा है। जब दुशासन ने चीर खींचा तो समझ नहीं पाया कि साड़ी बीच नारी है कि नारी बीच साड़ी है। लाभ के साथ लोभ बढ़ता चला जाता है। इसलिए लोभ पाप का बाप बताया है। मन की चंचलता इन्द्रियों की निरंकुशता से लोभ का जन्म होता है। जैसे-जैसे पदार्थों से संपर्क बढ़ता है। वैसे वैसे मानव की इच्छा हनुमान की पूंछ की तरह बढ़ती जाती है। क्योंकि इच्छा आकाश के समान अनंत है। कहा भी है कि श्मसान, अग्नि, पेट, तृष्णा और आकाश का गड्ढा कभी भरता नहीं। कहते हैं जितनी कम होगी मांग की मात्रा उतनी सफल होंगी जीवन यात्रा। यह लोभ महापाप हैं। ताप और शाप है। लालची व्यक्ति बेच देता हैं ईमान को। भक्तामर ोत के माध्यम से कहा कि पारस लोहे को सोना तो बना देता है पर अपने समान नहीं बना सकता। परन्तु प्रभु तो आत्मा को महात्मा ही नहीं, अपने स...

भूख से बढ़कर कोई वेदना और रोग नहीं 

चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा आज धनवान और निर्धन दोनों ही अंधी दौड़ में हैं। निर्धन अपना पेट पालने के लिए तो धनवान अपनी पेटी भरने के लिए दौड़ रहा है। उनकी पेटी इतनी गहरी होती है कि कभी भरने का नाम ही नहीं लेती। जो लोग जीवनभर हीरे-मोती और माणक-मोतियों का संग्रह करने में लगे रहते हैं उनको ज्ञानियों ने मूढ़ बताया है क्योंकि इस पूरी पृथ्वी पर केवल तीन ही रत्न हैं जिनके बिना मानव व तिर्यंच का जीवन संभव नहीं है। इसलिए कभी भी अन्न का अनादर नहीं अनादर नहीं करना चाहिए। अन्न जूठा छोडऩा सबसे बड़ा पाप है। भूख से बढ़कर कोई वेदना और रोग नहीं है। साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा विषयों में आसक्ति होना बंधन और इनमें आसक्ति होना मुक्ति है। अज्ञानी आत्मा द्रव्य निद्रा से मुक्त होने पर भी सोई रहती है जबकि एक ज्ञानी और संत की आत्मा द्रव्य में सोई होने के बावजूद जाग्रत ही रहती है। अ...

सुख-दुख जीवन के दो सत्य

चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा आत्मज्ञान सीखने वालों को पग-पग पर सावधानी बरतने की जरूरत होती है। गुरुदेवों के बताए मार्गो पर चलने वालों का जीवन धन्य बन जाता है। सुख-दुख जीवन के दो सत्य होते है। दनकस लाभ संसार का कोई भी व्यक्ति नहीं उठा सकता। जीवन में आज अगर दुख है तो कल निश्चय ही सुख आएगा। दुख आने पर लोगों को थोड़ी हिम्मत रख कर अच्छे मार्ग पर ही चलते रहना चाहिए। सब अपने कर्मो पर निर्भर करता है। मनुष्य का किया हुआ कर्म ही उसका सुख-दुख होता है लेकिन अपनी अज्ञानता की वजह से लोगों को यह नहीं पता चल पाता। मनुष्य खुद की गलती को अनदेखा कर हर वक्त दूसरों को दोषी ठहराता रहता है। यही उसके जीवन के दुख का सबसे बड़ा कारण है। परिस्थिति लाख बुरी क्यों न हो मनुष्य को संयम रखना चाहिए, तभी जीवन सफल हो पाएगा। सागरमुनि ने कहा समझ आने के बाद जो आचरण को प्राप्त करते हैं वहीं ज...

क्रोध मित्रता की फसल को नष्ट कर देता है

चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में मुनि संयमरत्न विजय ने कहा तपस्या के फल को क्रोध विफल कर देता है जबकि क्रोध दया और मित्रता की फसल को नष्ट कर देता है। समताधारक प्राणी को सभी वंदन-नमन करते हैं और वह हर प्रकार की लक्ष्मी प्राप्त करने योग्य बन जाता है। समता साधक की कीर्ति चारों दिशाओं में फैल जाती है और देव व मानव उसके सेवक बनकर उसकी महिमा का वर्णन करते हैं। क्रोध हमारे भीतर रहे आत्मधन को क्षणभर में भस्म कर देता है। क्रोध की अग्नि को हम समता के जल से ही बुझा सकते हैं। क्रोध कमजोर को ही आता है, बलवान के आगे झुक जाता है। क्रोध का परिणाम बड़ा घातक होता है। एक बार क्रोध करने से हमारी एक हजार ज्ञान कोशिकाएं जलकर नष्ट हो जाती है। जो क्रोध नहीं करता वह एक समय भोजन करके भी ऊर्जावान बना रहता है, स्वयं पर नियंत्रण बना रहता है। जिंदगी में सदा मुस्कुराते रहें, फासले कम करें, ताने मारना छोड़ेें औ...

पाप को पापरूप में पहचानें : साध्वी धर्मलता

चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा पाप का फाटक बंद करें। डरना है तो किसी अन्य से नहीं पाप से डरें। लिफ्ट का दरवाजा बंद नहीं करें ताकि ऊपर न जा सकें। पाप का फाटक बंद नहीं होगा तो जीवन की ट्रेन सुख की पटरी पर कैसे दौड़ेगी, अत: प्रतिदिन अपना निरीक्षण करें। पाप को पापरूप में पहचानें एवं आत्मसाक्षी से उसे स्वीकारें। हृदय से पश्चाताप करने से ही पाप का फाटक बंद हो पाएगा। मन की गांठें खोलो और पापों को धो डालो। भूल को छिपाने वाला इन्सान भव बिगाड़ लेता है जबकि भूल स्वीकार करने वाला स्वयं को सुधार लेता है। पाप चाहे काम रूप में हो या कल्पना रूप में, उसे स्वीकारना जरूरी है। यह न सोचें मैं पाप एकांत में एवं गुप्त में कर रहा हूं, कर्म की अदालत इतनी सूक्ष्म है कि मन से बुरा सोचा या सपने में भी किसी को गिराने, मारने, लडऩे की सोचो, कर्म की अदालत उसे नरक व तिर्यंच के स्टेशन पर पहुंच...

मानव ने आध्यात्मिक पहलुओं को भुलाया:

चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा भारतीय संस्कृति दान, तप, वैराग्य एवं अहिंसा की संपदा से संपन्न रही है। विषम परिस्थितियों में भी इनकी विशिष्टता में कोई परिवर्तन नहीं आया। यह गौरवशाली संस्कृति विश्व को मार्गदर्शन देती रही है। इतना जरूर है कि मूल स्वरूप में बदलाव नहीं आया लेकिन इस महान संस्कृति के आध्यात्मिक पहलू को भुलाकर मानव ने भौतिक साधनों की लिप्सा को ही अपना ध्येय मान लिया है। जड़ता की महत्ता को स्वीकार कर लिया है। विज्ञान और पाश्चात्यकरण ने सभी अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया है लेकिन इन्हीं परिस्थितयों के बीच रहते हुए भी अनेक आत्माओं ने इन संसार की विषमताओं को त्यागकर संयम पथ को अपना ध्येय बनाकर सर्वोच्च स्थान पाप्त कर लिया है। साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा जब कभी कर्म निर्जरा होते-होते मानव गति प्रतिबंधित कर्मों का क्षय या क्षयोपशम होकर आत्मा कुछ विशुद्धि ...

निर्मल भाव से होता है आत्म-कल्याण : मुनि संयमरत्न विजय

चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने कस्तूरी-प्रकरण के भाव-प्रक्रम का वर्णन करते हुए कहा बिना भाव के किया गया कोई भी अनुष्ठान शुभ फल नहीं देता। हमारे भाव नि:शल्य-निर्दोष होने चाहिए। निर्दोष या निर्मल भावों से ही आत्म-कल्याण होता है। सद्भावना से सद्गति व दुर्भावना से दुर्गति होती है। बिना भाव से दिया गया दान व्यक्ति के लिए दुखदाई होता है, बिना भाव के किया गया शील का पालन कष्टदायी होता है। बिना भाव से किया गया तप मात्र शरीर को सुखाने जैसा ही होता है अत: जो भी क्रिया हम करें भाव के साथ करें। जिसके भीतर सद्भावना नहीं होती वह सोचता है कि दान देने से धन की हानि होगी, शीलपालन से भोग की सामग्री नष्ट हो जाएगी, तप करने से क्लेश होगा, पढऩे से कंठ सूखने लगेंगे, नमस्कार करने से मानहानि होगी, व्रत धारण करने से दु:ख होगा, लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति सद्भावना के साथ सभी सत्...

आंतरिक सुख के लिए होती है जीववाणी: गौतममुनि

चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा जीववाणी मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि आंतरिक सुख देने के लिए होती है। कोई भी कार्य वाहवाही कमाने के लिए नहीं बल्कि आत्मा की निर्जरा के लिए की जानी चाहिए। भाग्यशाली लोग मन से परमात्मा की वाणी को जीवन में उतारने की कोशिश करते हंै। जीवन की छोटी-छोटी सफलता ही लोगों को आगे बढ़ाती है। इसलिए मनुष्य को उसके हर छोटे कार्य को भाव के साथ ही करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि धर्म और आराधना के कार्य को दिल से ही करना चाहिए। बिना मन के किए गए कार्य का कोई मतलब नहीं होता है। दिल से किया हुआ कार्य ही मनुष्य को मंजील तक पहुंचाता है। वर्तमान में लोग धर्म के कार्य तो करते हैं पर उनमे भाव नहीं होता। भाव से धर्म करने वाला मनुष्य अपने जीवन को पावन बना लेता है। अगर मनुष्य प्रवचन भी दिल से सुन कर बताए मार्गों पर चले तो उसके जीवन की दिशा ही बदल जाएगी। सागरमुन...

कैरियर ने मानव का कैरेक्टर छीन लिया: v

चेन्नई. कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा हमें मानव शरीर तो मिला है लेकिन मानव दृष्टि, भौतिक ज्ञान व समझ नहीं मिली इसलिए भटक गए। मान-सम्मान एवं भौतिक सामग्री में रम गए। हमारे पास बड़ी शक्ति है लेकिन उसका उपयोग नहीं जानते। धर्म की चार दीवारों में बांध दिया है। अपने-अपने संप्रदायों की जंजीरों में जकड़ दिया है। हमारी दृष्टि सिकुड़ गई है। अरिहंत एवं आत्मा का संशेषन नहीं होता। हम बाहर भटक रहे हैं। कैरियर ने कैरेक्टर छीन लिया है। चारित्र चला गया और चित्र एवं तस्वीर रह गई। सच्चा भक्त परमात्मा को देखने के बाद कहता है आपको देख लेने के बाद मन अन्यत्र आकर्षित नहीं होता। जब तक आपका परिचय नहीं हुआ था तब तक पागलों की भांति इधर-उधर भटक रहा था। जीव का निर्णय नहीं किया था। जबसे आपको देखा है, आपका परिचय हुआ है आप तक पहुंचा हूं यही मेरी साधना है और सागर का मधुर जल पीने क...

मुश्किल से होता है संत समागम : संत कृपाराम

चेन्नई. साहुकारपेट में विराजित संत कृपाराम ने कहा संतों का समागम बहुत मुश्किल से मिलता है। संतों का आशीर्वाद हमेशा शांति प्रदान करता है। संत दर्शन हमेशा भाग्य से ही प्राप्त होते हैं। गुरुदेव ने संत राजाराम के साथ माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में विराजित आचार्य महाश्रमण के दर्शन कर आशीर्वाद लेकर उनसे मुलाकात की। संत राजाराम ने कहा चेन्नई के श्रद्धालु भाग्यशाली हैं जिनको आचार्य महाश्रमण का सानिध्य एवं प्रवचन प्राप्त हो रहा है। ऐसा मौका बार बार नहीं मिलता। आचार्य जो सत्संग रूपी हीरे दे रहे हैं वे हमेशा हमारी जिंदगी में चमक रखेंगे, उनको संभाल के रखें एवं जीवन में उतारने का प्रयास करें। संत राजाराम और संत कृपाराम का तेरापंथ जैन समाज द्वारा अभिनंदन किया गया। इस मौके पर तेरापंथ सभाध्यक्ष धर्मीचंद लूंकड़, प्यारेलाल पीतलिया, गुरुकृपा सेवा समिति के मोहनलाल खत्री, अशोक रावल, विजय ...

साधक राग भाव से बने मुक्त : आचार्य श्री महाश्रमण

*संत ताप, पाप हरने वाले : गुरूराज राजाराम*     *संत कृपाराम ने कहा कि “संतो के चरणों में तो हमेशा ही बालक बनकर ही रहना चाहिए”*      माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में आचार्य श्री महाश्रमणजी के दर्शन कर *गुरू कृपा आश्रम, जोधपुर के गुरूराज राजारामजी महाराज*  ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि आचार्य प्रवर के सानिध्य में एक कुंभ सा मेला लगा हुआ है| यहा आप सब आकर ज्ञान की गंगा में गोता लगाते हैं| बिना परमात्मा की कृपा, बिना प्रभु की अनुकम्पा के यह कार्य संभव नहीं है| जो भी इस आयोजन में रात दिन प्रयास किया, उन लोगों को महाराज श्री ने, आप सब की भाव – श्रद्धा को देख कर समय दिया, चातुर्मास प्रदान किया और गंगा के अन्दर जाने से सभी ताप और पाप दूर हो जाते हैं, वैसे *चेन्नई की धरती पर इस महाकुंभ में महाराज श्री के शब्दों को सुन करके आपके भी ताप और पाप सब दूर ह...

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