*त्रिदिवसीय दक्षिणांचल कन्या कार्यशाला का हुआ समापन* *आचार्य प्रवर ने प्रेरणा देते हुए कहा किसी के कार्यों में बाधा पहुंचाने से होता अंतराय कर्म का बंधन* *साध्वी प्रमुखाश्री ने जीवन को जैनत्व के संस्कारों से संस्कारित करने की दी प्रेरणा* माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के तत्वावधान में चेन्नई तेरापंथ महिला मंडल की आयोजना में आयोजित त्रिदिवसीय दक्षिणांचल कन्या कार्यशाला पहचान में सहभागी कन्याओं को पावन प्रेरणा देते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि *छोटी उम्र होती है, लम्बा भविष्य सामने होता है, तो आदमी को धार्मिक, आध्यात्मिक दिशा में विकास करना चाहिए। जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ से जुड़ी हुई कन्याएँ हैं, बाईया हैं, शनिवार की सामायिक का प्रयास चले, तत्व ज्ञान जितना हो सके सिखने का प्रयास चले| जीवन में ईमानदारी हो| ईमानदारी एक सम्पति है...
*निरहंकारिता, विनय पूर्ण जीवन जीने की दी प्रबल प्रेरणा *दक्षिणांचल कन्या कार्यशाला का द्वितीय दिवस माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सुत्र के दूसरे अध्याय का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि गोत्र कर्म के दो प्रकार है – उच्च गोत्र और नीच गोत्र| जैन धर्म के कर्मवाद के वर्गित आठ कर्मों में सातवां कर्म है गोत्र कर्म| उच्च गोत्र कर्म का बंधन किन कारणों से होता है ? वैसे तो कर्म बंधन का कर्ता और भोगता जीव स्वयं ही है, जैसा कर्म बांधता हैं, वैसा ही फल भोगना हैं| ऐसा नहीं है कि किया तो बुरा कर्म और फल मिलेगा अच्छा, जैसा किया उसी के अनुसार फल मिलेगा| कर्म सत्य होता है| अहंकार करने से नीच गोत्र का बंधन होता है| *मद के आठ प्रकार-जाति, कुल, ज्ञान, रूप, ऐश्वर्य, लाभ, धन, तपस्या इनका मद यानी अहंकार करने से नीच गोत्र का बंधन होता है| आचार्य श्री महाश्रमण ने आ...
कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि सुबाहु कुमार ने भगवान महावीर के पधारने का जैसे ही सुना वह परिवार सहित भगवान के दर्शन एवं प्रवचन सुनने के लिये तत्काल तैयार हो गये। क्या हमारे में इतनी तत्परता है की सुनते ही हम धर्म सभा में पहुंच जाये धर्म सभा में प्रवेश के पांच अभिगम कहलाते हैं। * दूर से जैसे ही भगवान का समोशरण दिखाई दे तो तुरंत सवारी – हाथी, रथ, घोड़ा, ऊंट – आदि आज के जमाने में स्कूटर गाड़ी वगैरा संतो को देखते ही छोड़ देना चाहिये और वंदन करना चाहिये। *समोशरण में सचित वस्तु फूल फल सब्जी वगैरा अचित वस्तु गहने आभूषण लकड़ी वगैरा सभी बाहर ही रखकर के प्रवेश करना चाहिये। *एक साटिका वस्त्र अखंड बिना सिला कटा फटा वाला वस्त्र नहीं जिसे उतराशन कहते हैं मुंह पर लग...
*त्रिदिवसीय दक्षिणांचल कन्या कार्यशाला का हुआ शुभारंभ *कन्याओं को अपने जीवन में ईमानदारी, नैतिकता, पारदर्शिता जैसे गुणों का विकास करने की दी पावन प्रेरणा माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सुत्र के दूसरे अध्याय का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि नाम कर्म के दो प्रकार शुभ नाम कर्म और अशुभ नाम कर्म हैं! शुभ नाम कर्म के उदय होने पर स्वस्थ ,सुन्दर शरीर प्राप्त होता है| यश, कीर्ति, सम्पदा आदि अनूकूल परिस्थितिया उपलब्ध हो जाती हैं| अशुभ नाम कर्म के उदय होने पर अपयश, शरीर अभद्र, वाणी अभद्र आदि प्रतिकूल परिस्थितियां उपलब्ध हो सकती हैं! आचार्य श्री ने आगे कहा कि जैन आगमों में कर्म के आठ प्रकार बताए गए हैं – इनमें से चार ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीह, अंतराय एकांतत: अशुभ कर्म होते हैं, पापात्मक माने गए हैं, इन्हें घातिकर...
*ठाणं सुत्र का विवेचन करते हुए आचार्य श्री ने कहा “मनुष्य ही मोक्ष पद का अधिकारी”* *अहिंसा यात्रा वाहिनी एवं युवा वाहिनी बस का लोकार्पण* माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए जैनाचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि आज 15 अगस्त का दिन है| भारत के लिए एक गौरव का दिन होता है| यह स्वतंत्रता की प्राप्ति का प्रसंग है|गुरुदेव तुलसी ने हमें एक महनीय संदेश दिया था असली आजादी अपनाओ! यह आजादी मिलना भी देश के लिए बड़ी उपलब्धि हैं| पर हम असली आजादी की ओर अग्रसर बनें और असली आजादी मिले| आचार्य श्री ने कहा कि इस आजादी का भी महत्व है देश के लिए| भारत गुणात्मकता की दृष्टि से आगे बढ़े और नैतिक मूल्यों का प्रतिष्ठापन हो| भले राजनीति के क्षेत्र में काम करने वाले लोग हो, भले समाज में रहने वाले, काम करने वाले लोग हो, किसी भी क्षेत्र म...
चैन्नई के साहुकार पेठ स्थित श्री राजेन्द्र भवन में आचार्य श्री जयन्तसेनसूरिजी के सुशिष्य मुनि संयमरत्न विजयजी,श्री भुवनरत्न विजयजी के सान्निध्य में श्री नेमिनाथ परमात्मा के जन्म कल्याणक के अवसर पर “संयम उपकरण वंदनावली” का कार्यक्रम आयोजित हुआ। आयंबिल,एकासणा,बियासणा, रात्रि भोजन-जमीकंद त्याग,मौन सामायिक आदि धार्मिक चढ़ावे बोलकर श्रद्धालुओं ने संयम उपकरणों को प्राप्त किया।जिसके माध्यम से हमारा भव भ्रमण कम हो वे उपकरण कहलाते हैं। लोक से दूर रहकर श्लोक में आनंदित रहना ही संयम जीवन है। संसार जेल है, तो संयम महल है।मान मिले या अपमान मुनि का मन सबमें समान रहता है। जो स्वाद के लिए आहार ले वह स्वादु और जो साधना के लिए आहार ले वो साधु होता है। संयम और नियम दोनों जीवन का नियमन करते हैं। संसार का मार्ग सूना तो संयम का मार्ग सोना है। मुनि श्री ने उपकरणों का महत्व बताते हुए कहा कि ‘रजोह...
कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा किसुखविपाक सूत्र में सुबाहुकुमार को युवराज बना दिया गया।सुबाहु कुमार बहुत ही विवेकशील कोमल हृदय व शक्ति संपन्न बुद्धिशाली थे कार्य करने में कुशल थे उन्होंने राज व्यवस्था इस प्रकार की जिससे जनता सुखी रहे क्योंकि जनता सुखी तो राजा भी सुखी रह सकता है अगर जनता दुखी हो तो वहां का राजा कैसे सुखी रह सकता है।जनता के साथ हिल मिलकर उनके सुख-दुख में साथ रहने वाला राजा ही प्रजा वत्सल हो सकता है जिस देश के राजा लोग स्वार्थ में अंधे हो वहां की प्रजा में अमन चैन कहां से होगा।भगवान महावीर की वाणी शास्त्र रूप में हमारे सामने हैं उसे हम पढ़े चिंतन मनन करें तो ही शास्त्र हमारे सामने दर्पण के समान है। जैसे दर्पण में प्रतिबिंब दिखता है वैसे ही शास्त्र आगम ...
महासती ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि प्रत्येक मानव स्वतंत्रता पसंद करता है। बंधन नहीं, मानव तो क्या पशु भी स्वतंत्रता पसंद करते है परंतु सच्ची स्वतंत्रता तो मुक्त अवस्था में है बंधन क्या है ? जिसमें बांधा जाए जाए वह बंधन है। यह जीव भी शरीर और कर्म के बंधन में बंधा हुआ है जिसे बंधन खटकता है वहीं बंधन को तोड़ने का प्रयत्न प्रतख्यांन आदि से करता है। बंधन किसी को पसंद नहीं है फिर भी कहां-कहां बंधन जरूरी है जैसे खेत में बाढ़ का, घोडे में लगाम का, सिंह को पिंजरे का, हाथी को शकल का, विद्यार्थी को शिक्षक का, उक्त उद्गार स्वतंत्रता दिवस पर मा.सा.ने व्यक्त किये। जीव रागद्वेष के बंधन में पडा हुआ है। वह लोहे की जंजीरों को तोड़ सकता है परंतु राग के बंधन में बंधा हुआ है इसी कारण उसकी मुक्त अवस्था नहीं हुई। इंसान की स्तिथि उसी भ्रमर की भांति हो रही है जो लकड़ी को तो खुरेड देता है किंतु फूलों के र...
मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जी रमेश ने परमाराध्य आचार्य श्री महाश्रमण के दर्शन सेवा के लिए उपस्थित हुए| श्री जी रमेश एक सरल श्रावक की तरह कुर्सी पर नहीं अपितु नीचे बैठ कर सेवा करते हुए आचार्य श्री की अंहिसा यात्रा के त्रिआयामी सूत्रों की सराहना करते हुए कहा कि अगर भारत का हर नागरिक इनका अनुसरण करे तो देश सहुमुखी विकास कर सकता हैं| आपने पुज्य प्रवर से मंगल पाथेय प्राप्त कर भावना व्यक्त की कि मैं समाज में नैतिकता का विकास हो, इस और प्रयत्न करूंगा| न्यायाधीश महोदय ने आयोजित अर्हत् वन्दना में सहभागीता निभाई और अनुशासनमय साधु समाज की सराहना की| आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति की तरफ से परामर्शक श्री पन्नालाल टाटीया ने साहित्य प्रदान किया| इस दर्शन सेवा में श्री भरत टाटीया का सहयोग रहा|
कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि आज भारत की आजादी का दिन है आज दिन के भारत अंग्रेजों के बंधन से मुक्त हुआ हमारा भारत मुगल सम्राटों व अंग्रेजों की गुलामी में बंधा था करीब 4 सौ 5 सौ वर्षों परन्तु हमारी आत्मा तो कर्मों की बेडीयों से अनंत अनादि काल से बंधी है उसे आजाद करने का कभी सोचा या नहीं भारत को आजाद कराने के लिए बच्चे जवान बूढे स्त्री और पुरुष सभी ने भरपूर सहयोग दिया तब जाकर भारत आजाद हुआ* वीरेन्द्र मुनि भगत सिंह उधमसिंह नेताजी सुभाष चंद्र बोस मोतीलाल नेहरू लाल बहादुर शास्त्री सरदार वल्लभभाई पटेल महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरु चंद्रशेखर आजाद लाला ख्याली राम आदि सभी ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया कईयों ने भारत की आन बान शान के लिये अपने जीवन को कुर्बान किया स्वतंत्रता सेनानियों से इत...
महासती साध्वी धर्मलता जी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जिस प्रकार अंडे से मुर्गी और मुर्गी संडे की उत्पत्ति होती है ठीक उसी प्रकार मोह से मोह और तृष्णा से तृष्णा की है। मोहनिया कर्म राजा है शेष कर्म प्रजा, राजा को बस में करो प्रजा स्वतः बस में आ जायेगा मोह कर्म ही सबसे पहले आत्मा से अलग होता है। परंतु जब तक इंसान मोह से जुड़ा हुआ है। तब तक चौदह वर्ष का ज्ञान भी क्यों न कर ले यह मोह उसे पुनः नीचे गिरा देगा। मर्यादा पुरुषोत्तम राम का लक्षमन के प्रति इतना मोह था कि लक्षमन की मृत्यु के पश्चात् भी छः महीने तक कंधे पर उठाकर घूमते रहे। महासती जी ने कहा कि इंसान को चेतना से भी जड़ पदार्थो के प्रति मोह बढ़ता जा रहा है परंतु याद रखना बिछु और साँप का जहर तो उम्र रूपी वृक्ष को भले ही हिला दे किंतु मोह का जहर जन्मों जन्मों तक रुला देता है।मोह महान दुःख रूप जब मोह की बात निकलती है तब मानव खुश हो ज...
*तेरापंथ विश्व भारती” परियोजना का लोकार्पण* *संघीय स्मारक समिति का महासभा में विलीनीकरण* माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में परम पावन शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने मंगल उद्बोधन में ठाणं सूत्र के दूसरे स्थान में वेदनीय कर्म के दो प्रकार – सात् वेदनीय, असात् वेदनीय कर्म पर विवेचन करते हुए कहा कि पच्चीस बोल में दसवां बोल है – कर्म आठ, उसमें तीसरे कर्म का नाम है वेदनीय कर्म| वेदनीय कर्म का बंधन क्यों होता है? आचार्य श्री ने कहा कि चार शब्द है प्राण, भूत, जीव और सत्व| संसार की समस्त जीव राशि को इन चार भागों में विभक्त किया गया है – दो, तीन, चार इंद्रियां वाले जीव प्राण, वनस्पति के जीव भूत, पंचेंद्रिय वाले जीव, और शेष पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजसकाय एवं वायुकाय के जीव सत्व कहलाते है, इनके प्रति अनुकंपा नहीं तो असात् वेदनीय कर्म और अनुकंपा तो सात् वेद...