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लोच दिमाग के लिए रक्त संचार करता है: साध्वी धर्मलता

एस.एस.जैन संघ में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि लोच शब्द उलटा करने पर चलो बनता है। चलना ही मोक्ष है और लोच की प्रक्रिया आत्मा को कर्म से मुक्ति दिलाकर मोक्ष की ओर ले जाती है। लोच से मोह की पराजय होती है और ज्ञानतंतु सक्षम बनते हैं। देह की सुदंरता मुंह से होती है और मुंह की सुदंरता बालों से होती है। बालों का त्याग करना ही लुंचन है। व्यावहारिक एवं आरोग्य की दृष्टि से भी लोच का महत्व है। लोच दिमाग के लिए रक्त संचार करता है। देह का दमन, विषयों का वमन और कषायों का शमन कर्म निर्जरा के लिए शार्ट कट है। लोच महातप है। तीर्थंकर प्रभु ने भी पंचमुष्ठि लोच किया था। उनका अनुसरण करते हुए आज भी जैन संत आज भी राग का त्याग कर के लोच करते है। साध्वी सुप्रतिभाश्री ने धन की तीन गति दान,भोग और नाश बताई है और कहा कि जंग खाकर नष्ट होने के अपेक्षा जीर्ण होकर नष्ट होना अच्छा है।

मनुष्य जीवन मोक्ष प्राप्ति का प्रथम सोपान: साध्वी धर्मप्रभा

एमकेबी नगर स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा इस संसार में मनुष्य एक सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। उनकी श्रेष्ठता और महत्ता का कारण उनकी अपार क्षमताएं है। मनुष्य जन्म मंदिर की सीढ़ी की भंाति है जो दोनो दिशाओं में गमन करता है। मनुष्य राम बन सकता है और रावण भी। कृष्ण भी बन सकता है और कंस भी। महावीर भी बन सकता है और गोशालक भी। कुछ भी बनने के लिए मनुष्य की इच्छा और जीवन जीने की प्रक्रिया कैसी है इस पर निर्भर करता है। मनुष्य का यह सौभाग्य है कि वो परमात्मा के पद को प्राप्त करने की सााधना कर सकता है। मनुष्य का जीवन मोक्ष प्राप्ति का प्रथम सोपान है। यह हीरों और रत्नों से अधिक मूल्यवान है। बुद्धिमान पुण्यात्मा इसे सार्थक कर लाभ उठा लेता है और कोई भोग विलास पाप कार्यो में लगा दे इसका कौड़ी का मूल्य नहीं है। साध्वी स्नेह प्रभा जी ने कहा कि दया ही धर्म की जननी है। दया रुपी नदी के किनारे सभी धर्मों क...

नमन से होता जीवन का नवसृजन: संयमरत्न विजय

साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय व भुवनरत्न विजय के सान्निध्य में सोमवार को रैली निकाली गई। रैली मुनि संयमरत्न विजय के वर्धमान तप की 37वीं ओली  एवं नवकार आराधना, मासखमण सिद्धितप, भक्तामर तप आदि विभिन्न तपस्याओं की अनुमोदनार्थ निकाली गई जो राजेंद्र भवन आकर धर्मसभा में परिवर्तित हुई। इस मौके पर मुनि संयमरत्न विजय ने कहा नवकार में आया हुआ ‘क’ कहता है कि कषाय चार होते हैं जो इन चार कषायों में से एक कषाय को जान लेता है, वह समस्त कषायों को जानकर कषायमुक्त होने का प्रयास करता है। जो एक मंत्र की साधना कर लेता है, उसे सिद्धि शीघ्रता से मिल जाती है। जो एक को जान लेता है, वह सब को जान लेता है और जो सबको जानने में लगा रहता है, वह भटक जाता है। जीवन जीने की एक धारा हो तो लक्ष्य की प्राप्ति सरलता से हो जाती है। नवकार प्रत्येक प्राणी को अहं से अर्हं की ओर ले जाने में बहुत सहाय...

जो हमारा है वह कभी खोएगा नहीं और जो नहीं है वह रुकेगा नहीं: गौतममुनि

साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा परमात्मा ने मनुष्य को जीवन का स्वरूप समझाया है। ज्ञानी महापुरुष कहते हैं कि जो हमारा है वह कभी खोएगा नहीं और जो नहीं है वह रुकेगा नहीं। इस बात का मनुष्य को अगर अंतरात्मा से ज्ञान हो जाए तो तकलीफ नहीं होगी। इसके लिए गहन चिंतन कर आत्मा की निर्जरा करनी चाहिए क्योंकि सब कुछ मरेगा लेकिन आत्मा कभी नहीं मरेगी बल्कि शरीर बदल लेगी। हमारा शरीर अनित्य है और बाहरी सजावट से सुशोभित है लेकिन मनुष्य को यह ज्ञान होना बहुत ही जरूरी है कि शरीर में कुछ भी डालो रुकेगा नहीं, क्योंकि बाहर की वस्तुएं खुद की नहीं हो सकती।  उन्होंने कहा कि मनुष्य को बाहरी चिंता करने के बजाय आत्मा की चिंता करनी चाहिए। जिस कार्य के करने से आत्मा को पोषण मिले वहीं धर्म क्रिया करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य जो भी करे उसे लगन और भावना से करे क्योंकि भावना और लगन से किया हुआ ...

धर्म मार्ग पर चलने से पहले मन में से शंकाएं निकाल दे: प्रवीणऋषि

पुरुषवाक्कम स्थित एमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा धर्म के राजमार्ग पर वही पुरुष चलते हैं, जिन्होंने जिस उल्लास और उमंग से कदम उठाया है उसे मंजिल मिलने तक रुकने नहीं देते। धर्म मार्ग पर चलने से पहले मन में जो शंकाएं आती है, उन्हें मन से निकाल देना। इस जीव का चिर-परिचित है-आस्रव का द्वार, कषाय का रास्ता। आचारांग कहता है कि इस धर्म मार्ग में आज्ञा को दिल से स्वीकार करो, तर्क और बुद्धि से नहीं। आज्ञा पर चिंतन और तर्क नहीं किया जाता है, जिसने आज्ञा पर तर्क कर लिया उसने आज्ञा की शक्ति खो दी। जब अन्तर में शक्ति का जागरण होता है तो ही शुभ काम करने का मन में आता है, इसे उसी समय तत्काल कर लें। यदि आगे के लिए टाल देंगे तो बाद में नहीं कर पाएंगे। यदि अपने से बड़े-जन जो आज्ञा देते हैं तो वे आज्ञापालन की ताकत और शक्ति भी देते हैं, उस पर यदि प्रश्नचिन्ह लगाओगे तो आने वाली शक्ति का मार्...

जो दूसरों को दुख देता है वह अपने लिए दुख निर्मित करता है: आचार्य पुष्पदंत सागर

कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा जो दूसरों को दुख देता है वह अपने लिए दुख निर्मित करता है। दूसरे को सुख देना स्वयं को ही सुख देना तथा दूसरे को सजा देना खुद को ही सजा देना है। तुम्हारे बंधन और मुक्ति में तुम्हारे अतिरिक्त कोई और नहीं है। तुम जो भी करोगे अपने ही लिए करोगे यही धर्म का सार है। कभी ऐसा न हो पंथों का निषेध करने में परमात्मा का ही निषेध हो जाए। साधु निंदा अपनी ही निंदा है एवं साधु की प्रशंसा स्वयं की प्रशंसा है। साधु और पंथ की निंदा करने में स्वयं का परमातम ही छूट जाए। उससे बचना है जो मंदिर में छिपा है। उसे बचाना है जो मूर्ति में छिपा है। उसे छिपाना है जो स्वयं में छिपा है। जीव की हिंसा स्वयं की हिंसा एवं जीव पर दया खुद की दया के समान है। इसीलिए संत प्रेमी आत्महितैषी पुरुष कभी किसी जाति-पंथ-संत की निंदा नहीं करता। जब भगवान का विचार होता है त...

जिन्होंने अपने जीवन को देश जाती या धर्म के लिये कुर्बान किया जन्म जयंती मनाते है: वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि जन्म जयंती व पुण्य स्मरण दिन किसका मनाते है, प्रतिदिन हजारों नये जन्म लेते है व मृत्यु को प्राप्त होते है, क्या, उनका मनाते है नहीं, जन्मजयंतीयाँ, या स्मृति दिवस उनका ही मनाते है, जिन्होंने अपने जीवन को देश जाती या धर्म के लिये कुर्बान किया हो। आज हम 3 महापुरुषों की जन्म जयंती मना रहे है और एक महापुरुष की पुण्यतिथि। ( 1 ) श्रमण सूर्य , श्रमण याने साधु ( मुनि ) सूर्य याने ( सूरज ) मुनियों में सूर्य के समान थे मरुधरा के महान संत पूज्य श्री मरुधर केशरी – मरुधर ( मारवाड़) में उनकी आवाज शेर की गर्जना की तरह थी। पूरे देश में आवाज गूंजती थी, पाली में शेषमलजी केशर बाई सोलंकी के घर जन्म लिया था माता का वियोग बचपन में हो गया था। भादरा जू...

आत्मरक्षा का करें प्रयास : आचार्य श्री महाश्रमण

माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में आचार्य श्री महाश्रमण ने रक्षाबंधन के पर्व पर कहा कि आज श्रावण की पूर्णिमा हैं| आज के दिन बहने भाइयों के राखी बांधती हैं, पर हम भी हमारी आत्मा को बहन बनाएं और इसकी रक्षा का ध्यान रखें| पापाचार से बचने का प्रयास करें| नई पीढ़ी के लिए विशेष प्रेरणा देते हुए आचार्य प्रवर ने कहा कि वे होटल में रहे या हॉस्टल में, जहां मांसाहार बनता हो, वहां खाना न खाएं| धूम्रपान, मद्यपान से भी दूर रहे| आचार्य श्री आगे कहा कि ठाणं सुत्र में दो तीर्थंकरों का नाम आया है, जिनका नील वर्ण था| हर तीर्थंकर के गृहस्थ जीवन में भी अहिंसा की चेतना जागृत रहती हैं| आचार्य श्री ने बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि की घटना का वर्णन करते हुए कहा कि जब वे शादी के लिए जा रहे थे, तो रास्तें में पशुओं की करुण पुकार सुनकर उन्होंने अपना रथ वापस मोड़ कर शादी की जगह संयम मार्ग को स्वीकार क...

युगों को जीने का तरीका सिखाने वाले कहलाते हैं युग पुरुष

गुरु दिवाकर कमला वर्षावास समिति, चेन्नई के तत्वावधान में अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि, उपप्रवर्तक विनयमुनि ‘वागीश’ और यहां चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी कुमुदलता व अन्य साध्वीवृन्द के सान्निध्य में सैकड़ों गुरुभक्तों की उपस्थिति में मरुधर केसरी मिश्रीमल एवं राष्ट्र संत रूपमुनि की जन्म जयंती मनाई गई। दोनों महापुरुषों को साधुवृन्द व साध्वीवृन्द के अलावा कई गुरु भक्तों ने अपनी भावांजलि अर्पित की। उपाध्याय प्रवीणऋषि ने दोनों संतों का जीवन परिचय देते हुए कहा कि जो युगों को जीने का तरीका सिखाते हैं वे युग पुरुष कहलाते हैं और मरुधर केसरी मिश्रीमल व शेरे राजस्थान रूपमुनि भी युग पुरुष थे। उन्होंने कहा जिस प्रकार सूर्य खुद को तपकर संसार को रोशनी देकर प्रकाशित करता है उसी प्रकार मरुधर केसरी ने भी अपने तप और साधना के बल पर मानव कल्याण का प्रकाश फैलाया। इसीलिए वे श्रमणसूर्य क...

समाज सेवा में सदैव अग्रणी रहते थे गुरुदेव: साध्वी धर्मलता

ताम्बरम जैन स्थानक में साध्वी धर्मलता एवं अन्य साध्वीवृंद के सान्निध्य में मरुधर केशरी मिश्रीमल की जन्म जयंती मनाई गई। इस मौके पर साध्वी ने कहा मरुधर केशरी मिश्रीमल ने बीस साल की अवस्था में ही संयम अंगीकार करने के बाद जैन और अन्य धर्मों का तलस्पर्शी अध्ययन किया। नौ भाषाओं का ज्ञान करके जीवन मेें नौ ही पदों पर आसीन हुए। उन्होंने 180 रचनाएं की। वे स्वभाव से कडक़ लेकिन हृदय से पूरे दया से ओतप्रोत थे। उन्होंने हम सभी गुरु की दौलत हैं, गुरु की नसीहत ही हमारी असली वसीयत है। साध्वी वरिष्ठ प्रवर्तक रूपमुनि के जीवन पर भी प्रकाश डालते हुए कहा गुुरुदेव जीवदया प्रेमी, देश व समाज सेवा में अग्रणी थे। उन्होंने हजारों परिवारों को व्यसनमुक्त कराया। इस मौके पर सजोड़े जाप, सामायिक का तेला व सामूहिक एकासन का आयोजन हुआ। रक्षाबंधन के बारे में साध्वी ने कहा यह भारतीय संस्कृति का लौकिक पर्व है जिसके पीछे प्रत्येक ...

रक्षाबंधन प्रेम का प्रतीक : विनयमुनि

साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक विनयमुनि ने रक्षाबंधन के अवसर पर कहा रक्षाबंधन प्रेम का प्रतीक है, जिसका अपना अलग ही महत्व है। इस पर्व से भाई बहनों में एक उत्साह सी होती है। इस दिन खुद में बदलाव लाने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा करने से इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाएगा। छगनलाल की 130वीं जन्म जयंती पर मुनि ने कहा सदगुरुओं ने अपने ज्ञान से ही लोगों की अज्ञानता को दूर किया है। इस प्रकार से हम पर उन महापुरुषों का बहुत ही बड़ा उपकार है और उनके इस उपकार को कभी नहीं भूलना चाहिए। उनके द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण कर ज्ञान के महत्व को समझ कर अज्ञानता से दूर होना चाहिए। सागरमुनि ने कहा जगत के सभी जीवों की रक्षा के लिए रक्षाबंधन को बहन अपनी रक्षा के लिए भाई के कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है। इस सूत्र को हाथों तक नहीं बल्कि आत्मा में लाकर चारित्र करना चाहिए। मनुष्य के जीवन में पर्व उन्हें ऊचा ...

भाई-बहन का रिश्ता जिन्दा हो गया तो संसार के सारे दुष्कर्मी सदाचारी हो जाएंगे: प्रवीणऋषि

पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने रक्षाबंधन पर कहा यदि जीवन में भाई-बहन का रिश्ता जिन्दा हो गया तो संसार के सारे दुष्कर्मी सदाचारी हो जाएंगे। यही हमारी परंपराएं हैं, हमारी भारतीय संस्कृति और धर्म कहता है। आज समाज को चाहिए कि बेटे और बेटियों दोनों को बोलचाल में किसी को नाम से बुलाने के बजाय रिश्तों का संबोधन करने की सीख दें, उन्हें रिश्तों की अहमियत और सदाचार का पाठ पढ़ाएं और मनुष्य को बिगाडऩे वाली संस्कृति को तिलांजलि दें। हमारी संस्कृति में रिश्तों से समाज का हर व्यक्ति बंधा हुआ है। रिश्ते हमें बांधते भी हैं और मुक्त भी कराते हैं। रक्षा और निस्वार्थता का रिश्ता मुक्त कराता है और स्वार्थ का रिश्ता बंधनों में बांधता है। सच्चे अर्थों में रक्षाबंधन सुरक्षा और रक्षा का रिश्ता है। किससे रक्षा होनी चाहिए। पाप-दु:ख से, फल-विष, कारण और परिणाम से बचना चाहिए। हम दुनिय...

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