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होगा जीवन फाइन तो मिलेगी सतगति की लाइन: जयतिलक मुनिजी म सा

होगा जीवन फाइन तो मिलेगी सतगति की लाइन: जयतिलक मुनिजी म सा

नार्थ टाउन में पुज्य गुरुदेव जयतिलक मुनिजी म सा ने बताया कि वर्तमान में हर जन अपने आपको सुन्दर बनाना चाहता है। अपने शरीर, परिवार घर को सजाने के लिए लाखों करोड़ो खर्च करता है। घर मे तरह तरह के कृत्रिम साधन एकत्र करता है। उसी में उनका पौना दिन निकल जाता है ज्ञानी जन कहते हैं कृत्रिम से की गयी सजावट तो कृत्रिम ही होती।

यदि सौन्दर्य अच्छा है पर आन्तरिक गुण नहीं है तो उस सुन्दरता का कोई मोल नही। जैसे कृत्रिम फूल प्राकृतिक फूलों की बराबरी नही कर सकती क्योंकि मधुर सुगंध से प्राकृतिक पुष्प पूरे घर को सुगंधित बना देता है। पर नकली फूल ऐसा नही कर सकता। बहुमूल्य वस्त्र आभूषणों का मूल्य नही है मूल्य तो गुणों का है। रूप सज्जा तो जीव ने कई जन्मों में किया। पांचवे आरे से भी ज्यादा सौन्दर्य- साज सज्जा पहले आरे में थी। उनके सौंदर्य को देखने देवता भी आते थे पर आपके सौन्दर्य को पड़ोसी भी देखने नही आता। कृत्रिम सौन्दर्य थोडे काल तक ही टिकता है। भगवान कहते है ऐसे सौन्दर्य की कामना नही करना ऐसे सौन्दर्य से आपका मन भी शान्त नही होता न ही परिवार में कलह मिटता है उल्टा पाप कर्म ही होता है।

पैर से लेकर सिर तक आप कितने ही क्रीम, साबुन लगा लो पर आपका रूप नही संवर सकता। पर यदि आप में आन्तर सुन्दरता है तो कुरुप भी सुन्दर लग सकता है भीतरी सुन्दरता आपका और दूसरो का दोनों को भला करती है। भीतरी सुन्दरता के साथ कुरुप भी वन्दनीय बन जाते है देवलोक के देवता भी उनके आगे नतमस्तक हो जाते है। दुर्गणी एक व्यक्ति ही पूरे परिवार को तहस नहस करने में सक्षम है। सुन्दरता अपनी अंदर से होनी चाहिए जैसे बाहर से मकान चाहे सुन्दर कितनी भी अच्छी चीजो के सजाओ परंतु फायदा नही है। धन कमाने की मशीन नही बनना है वह पर्याप्त नही होगा |

इच्छाएँ अनंत है। महंगे से महंगे चीजो के इस्तेमाल से फायदा नही है, गुण होने चाहिए। भरत चक्रवर्ती का जीवन फाइन था, भीतर‌ व बाहर दोनों से फाइन था। गुणो से परिपूर्ण था इसलिए चक्रवती होने पर भी केवल ज्ञान की प्राप्ती हो गई। जीवन सुन्दर बनाने

के लिए संत समागम करो। पुत्र, धन, स्त्री तो सबके पास है। भिखारी के पास भी है, कोई खर्चा नही है तो धन एकत्रित करता नही हूँ तो धन एकत्रित जमा है। पूरा परिवार ही भीख माँग कर धन जमा करते है। इसलिए कहते है सम्पन्न तो सभी है संसार में दुलर्भ दो ही है 1) संतसमागम 2) जीनवाणी श्रवण। क्योकि संत सब जगह नही है। पुणवानी होती है तब ये मिलते है। सबका जीवन सुन्दर उनके सानिध्य में ही मिलता है। आज तक सभी मुनियों ने ज्ञान बांटा है व बढाया है। क्योंकि ज्ञान घटता नही है बाँटने से बढ़ता है। धन घटता है। ज्ञानीजन के संग से व्यक्ति गुणवान बनता है। ऐसे गुणवान व्यक्ति के पास जाने से कोई डर नहीं है।

होगा जीवन फाइन तो मिलेगी सतगति की लाइन। बहुत कम, जीव सतगति मे जाते है। कोई भी नारकी का जीव संत समागम नही कर सकता क्योंकि उस क्षेत्र मे कुछ भी नही कर सकते। ज्ञान देने वाला वहाँ कोई नही है। सिर्फ परमाधामी देव ही है सजा देने के लिए नारकी मे कोई जीव ना अंदर से न बाहर से सुन्दर होते है। रूप का मद करने वाले का रूप चला जाता है। आत्मा ही सुंदर है। आत्मा कुरूप नही है हमेशा सुरूप ही रहती है। देवलोक के देवता के पास रूप है सौन्दर्य है पर अपना उध्दार नही सकते । सुन सकते पर कुछ कर नही सकते।

सिर्फ तियंच जीव असंख्यात काल तक रहता है वनस्पतिकाय आदि मे वो किसी का भला नही कर सकता केवल सहन करता है काटन छेदन भेदन, धुप, पानी से । उनकी वेदना बहुत कष्टदायक है। हम वेदना देते है उन जीवों को हर काम करते हुए चाहे रसोई घर मे या खाते वक्त। हमे चटकारे लेकर खाना नही चाहिए।

मनुष्य को रूप के लिए कृत्रिम चीजें नहीं लगानी चाहिए हमें नेचुरल सुन्दरता पर ध्यान देना चाहिए। बेइन्द्रीय आदि मे भी कोई सुख नहीं है। बाहर रेशो मे इन किडो, लटो की खाते है। धर्म ध्यान करते हैं क्योंकि बस न रंग रूप को संभालते है। आज तितलियों की तरह मनुष्य रंग बिरंगे बाल आदि करते है पर भोगेंगे सुख नहीं।

कहते है अरबो में से 1, 2, जीव को जातिस्मरण ज्ञान होता है सभी को नहीं। तिर्यंच भी धर्म ध्यान नही कर सकता। सद्गति नही है। एक भव मे चाहे देव गति मे चला जाये पर फिर से तिर्यंच मे उत्पन्न हो जायेगा। पहले आरे में भोग विलास हे, कामी है सदगति नही है। कुछ कही कर सकता, धर्म श्रवण मे रुचि नही लगती। सम्भावित जीव ही धर्मश्रवण आदि कर सकता है । पर सांसारिक क्रिया कलापों मे वह भी स्थिर नही रह पाता है धर्म मे समय उसी मे निकल जाता है। गुणवान व्यक्ति को जानवर, तिर्यंच भी पसंद करते है। बाल सुन्दरता तो क्षण भंगुर है उम्र के साथ चली जायेगी इसलिए हमे अंदर की सुन्दरता पर ध्यान दो उसकी ओर एक कदम बढाओ जिस मनुष्य को यह बोध हो गया, | वह संपूर्ण जीवन को त्याग कर वैराग ले लेते है। जो ज्ञानी बनना चाहता है उसे कोई नही रोक सकता।

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