Share This Post

ज्ञान वाणी

हरी को पाने के लिये हीरे का त्याग करना ही पड़ेगा-पूज्याश्री कमलप्रज्ञा मसा

परिग्रह करोगे तो या तो खाएगा परिवार, या ले जाएगी सरकार-पूज्याश्री डॉ संयमलताजी मसा

मालव केसरी श्री सौभाग्यमल जी मसा के सुशिष्य, श्रमण संघीय प्रवर्तक श्री प्रकाशमुनिजी मसा के आज्ञानुवर्तिनी पंडित रत्न मालव भूषण श्री महेन्द्र मुनि जी मसा के देवलोक गमन पर श्री वर्धमान स्थनकवासी जैन श्रावक संघ नीमचौक द्वारा गुणानुवाद सभा का आयोजन रखा गया, जिसमें महासाध्वी

डॉ संयमलता जी मसा ने 04 लोग्गस का काउसग्ग करवाया, संघरत्न इंदरमल जैन, महेंद्र बोथरा, अजय खमेसरा एवं विनोद बाफना ने भी म.सा. के प्रति आदरांजली अर्पित की, ततपश्चात मसा ने माँगलिक फरमाइ।

महासाध्वी डॉ श्री संयमलताजी मसा ने परिग्रह के बारे में बताया की जितना हम छोडना चाहते है उतनी ही इच्छा बढ़ती जाती है। परिग्रह भी 02 प्रकार के होते है। सचित परिग्रह और, अचित परिग्रह, सचित परिग्रह में दास-दासी, नौकर-चाकर, पशु-पक्षी आदि का परिग्रह होता है और अचित परिग्रह में धन-दौलत, जमीन-भवन, सोना-चाँदी, हीरे-जवाहरात आदि का परिग्रह होता है। इच्छा का ना कोई ओर है न कोई छोर है। उपासंगदासांग सूत्र में 10 श्रावको का वर्णन आता है, जिन्होंने अपने परिग्रह का त्याग किया । जब इच्छाओ का अतिक्रमण बढ़ जाता है तब युद्ध होते है, भाई-भाई मे जमीन जायदाद के झगडे कोर्ट में चले जाते हैं।

संसार चलाने के लिये धन की आवश्यकता निश्चित रूप से है, लेकिन आवश्यकताओं को सीमित करके परिग्रह को कम करने से शांति की प्राप्ति होती है। धन अगर ज्यादा है तो उसे दान करो, सुकृत कार्य में लगाओ इससे परिग्रह की भावना घटेगी। परिग्रह करोगे तो या तो खाएगा परिवार, या ले जाएगी सरकार।

कमलप्रजा जी मसा ने सुख विपाक सुत्र के अंतर्गत सुबाहु कुमार के चारित्र पर उदबोधन दिया साथ ही मसा ने 04 जादुई शब्द पहला कुछ दूसरा कुछ कुछ तीसरा बहुत कुछ और चौथा सब कुछ के बारे में बताया की ये केवल 04 शब्द नही चार धाम की यात्रा का सार है। कुछ लोगो ने कुछ कुछ पाया है, कुछ लोगो ने

कुछ कुछ पाया है, कुछ लोगो ने बहुत कुछ पाया है, लेकिन पूरे ब्रहमांड मे ऐसा कोई व्यक्ति नही मिलेगा जिसने सब कुछ पा लिया हो । सोने में बहुत कुछ है सोना बहुमुल्य है, सोने में आकर्षण है, सोने में चमक है, लेकिन सोने मे सुगंध नही है। समुद्र में बहुत कुछ है, वनस्पति, बहुमूल्य पत्थर, अथाह जलनिधी लेकिन समुद्र का पानी खारा है, हीमालय मे सीढ़िया नही है,

आकाश मे खम्बे नही होते है, चांद पर भी दाग है सूर्य पर भी ग्रहण लगता है । भरत चक्रवृती के पास 09 निधी, 14 रत्न, 06 खण्ड का राज्य, 96000 रानियाँ, 32000 राजा उनके आदेश के पालन में रहते थे इतना कुछ होते हुए भी वे अपने भाई बाहुबली से युद्ध में हार गए, उन्हें भी सबकुछ नही मिला, बाहुबली ने भरत चक्रवर्ती को मारने के लिये जो हाथ उठाया उसी समय उनका हृदय पविर्तन हुआ और ऊपर उठे हुए हाथ से ही पनचमुष्टि लोच करके संयम ग्रहण कर लिया । और जीता हुआ राज्य फिर भरत को लौटा दिया।

जीतकर लौटाने की परंपरा तभी से भारत देश में है, राम ने लंका जीतकर विभीषण को लौटा दी, कृष्ण ने द्वारिका जीतकर उग्रसेन को लौटा दी, लाल बहादुर शास्त्री ने पाकिस्तान पर जीत हासिल कर वापस लौटा दिया, इंदिरा गाँधी ने युध्द जीतकर बांग्लादेश बनवा कर लौटा दिया। चक्रवर्ती भरत की पटरानी सुभद्रा के पास भी बहुत कुछ था लेकिन वो बांझ थी, चक्रवर्ती की रानी हमेशा बांझ रहती है एवं नरक में जाती है, चक्रवर्ती भी अगर संयम धारण न करे तो नरक में जाता है।

अगर हमारे तीर्थंकरों के पास सबकुछ होता तो वे क्यों अपना सबकुछ छोड़कर संयम के मार्ग पर अग्रसर हुए, उन्होंने अपना बहुत कुछ छोड़ा और मोक्ष के रूप में सबकुछ पा लिया।

कुछ छोड़ोगे तो कुछ-कुछ मिलेगा, कुछ-कुछ छोड़ोगे तो बहुत कुछ मिलेगा, बहुत कुछ छोड़ोगे तो सबकुछ मिलेगा । हरी को पाने के लिये हीरे का त्याग करना ही पड़ेगा।

चाहने से कुछ मिलता है, कुछ नही चाहने से बहुत कुछ मिलता है, निष्काम कर्म करो, फल की अपेक्षा मत रखो । अपने भीतर जाओ सब कुछ मिलेगा। भीतर शब्द दो शब्द से मिलकर बना है भी-तर, जो भी अपने भीतर गया वो तर गया। परमात्मा सन्देश देते है कि हम भी अपने भीतर गए हम तर गए हमें सबकुछ मिल गया, तुम भी अपने भीतर जाओ तुम भी तर जाओगे।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar