हमे दुसरोंका सन्मान कराना सिखाती है!- साध्वी स्नेहाश्री जी का उद्बोधन आकुर्डी- निगडी- प्राधिकरण श्री संघ के प्रांगण मे चातुर्मासार्थ विराजीत उपप्रवर्तिनी पु.चंद्रकलाश्रीजी म. सा. आदिठाणा 3 का चातुर्मास चल रहा है! प्रवचन की श्रुखला मे साध्वी स्नेहाश्री जी म.सा. ने कहा झुकना
सिखिये प्रकृति से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। पेड़ों की झुकी हुई डालियाँ हमें विनम्रता का पाठ पढ़ाती हैं। जब फल लगते हैं, तो डालियाँ झुक जाती हैं, मानो वे कह रही हों कि “हममें ज्ञान और अनुभव है, इसलिए हम विनम्र हैं।” यह विनम्रता हमें दूसरों का सम्मान करना सिखाती है।
झुकने का महत्व
विनम्रता:
झुकना, विनम्रता का प्रतीक है। जब हम झुकते हैं, तो हम अपने अहंकार को कम करते हैं और दूसरों के प्रति सम्मान दिखाते हैं।
सफलता:
झुकना, सफलता की कुंजी है। जो झुकना जानता है, वह जीवन में आगे बढ़ता है।
सद्भाव:
झुकने से, हम दूसरों के साथ सद्भाव में रह सकते हैं।
रिश्ते:
झुकने से, हमारे रिश्ते मजबूत होते हैं।
झुकने का मतलब यह नहीं है कि हम कमजोर हैं। इसका मतलब है कि हम समझदार हैं और दूसरों का सम्मान करते हैं।
निष्कर्ष
हमें प्रकृति से सीखकर, झुकना सीखना चाहिए। यह हमें एक बेहतर इंसान बनाएगा और हमारे जीवन को खुशहाल बनाएगा।
यह व्याख्यान, “झुकना सीखिए” पर केंद्रित है। यह बताता है कि कैसे प्रकृति, विशेष रूप से पेड़ों की झुकी हुई डालियाँ, हमें विनम्रता और सम्मान का पाठ सिखाती हैं। यह भी बताता है कि झुकने का क्या महत्व है और यह हमें कैसे सफलता और सद्भाव की ओर ले जाता है। अंत में, यह निष्कर्ष निकालता है कि झुकना, एक गुण है जो हमें एक बेहतर इंसान बनाता