जैसी मति, वैसी गति” का अर्थ है कि मनुष्य की मृत्यु के समय जैसी मानसिक स्थिति या विचार होते हैं, उसी के अनुसार उसे अगला जन्म मिलता है. इसका मतलब है कि हमारे कर्म और विचार हमारे भविष्य को आकार देते हैं, खासकर मृत्यु के समय. – साध्वी स्नेहाश्री जी म. सा. का उद बोधन। आकुर्डी निगडी प्राधिकरण श्री संघ के प्रांगण में आज साध्वी स्नेहाश्री जी म. सा. ने अपने प्रवचन में समयका महत्व समझाते हुये कहा कि जैसी मति वैसी गती!
अंतिम समय का महत्व:
यह सुभाषित इस बात पर जोर देता है कि मनुष्य के जीवन का अंतिम क्षण बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि उस समय के विचार और भावनाएं ही यह निर्धारित करती हैं कि उसे अगला जन्म कैसा मिलेगा.
कर्मों का प्रभाव:
हमारे कर्म और विचार हमारे मन को प्रभावित करते हैं, और मृत्यु के समय हमारा मन जैसा होता है, उसी के अनुसार हमें अगला जन्म मिलता है.
आध्यात्मिक दृष्टिकोण:
भारतीय दर्शन और धर्मग्रंथों में भी यह माना गया है कि मृत्यु के समय मनुष्य की मानसिकता उसके अगले जन्म को निर्धारित करती है.
यह सुभाषित हमें यह भी सिखाता है कि हमें अपने जीवन को सकारात्मक और उद्देश्यपूर्ण तरीके से जीना चाहिए, ताकि मृत्यु के समय हम अच्छे विचारों और भावनाओं के साथ हों.
“जैसी मति, वैसी गति” हमें सिखाता है कि हमें अपने कर्मों और विचारों के प्रति सचेत रहना चाहिए, ताकि हम अपने जीवन को बेहतर बना सकें और मृत्यु के बाद अच्छी गति प्राप्त कर सके
अगर कोई व्यक्ति जीवन भर बुरे कर्म करता है और मृत्यु के समय भी बुरे विचार रखता है, तो उसे अगले जन्म में बुरी योनि मिल सकती है.
अगर कोई व्यक्ति जीवन भर अच्छे कर्म करता है और मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करता है, तो उसे अगले जन्म में अच्छी योनि मिल सकती है या मोक्ष प्राप्त हो सकता है.
“जैसी मति, वैसी गति” एक महत्वपूर्ण सुभाषित है जो हमें सिखाता है कि हमें अपने कर्मों और विचारों के प्रति सचेत रहना चाहिए, ताकि हम अपने जीवन को बेहतर बना सकें और मृत्यु के बाद अच्छी गति प्राप्त कर सकें.! धर्मसभा का संचलन शारदाजी चोरडीया ने किया! संघाध्यंक्ष सुभाषजी ललवाणी ने उपस्थित मान्यवरोंका स्वागत किया!