समझ का प्रयोग, सामग्री का उपयोग और समय को सार्थक करने की दी प्रेरणा
Sagevaani.Com @चेन्नई; श्री मुनिसुव्रत जिनकुशल जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में श्री सुधर्मा वाटिका, गौतम किरण परिसर, वेपेरी में शासनोत्कर्ष वर्षावास में उत्तराध्यन सूत्र के सातवें अध्ययन के विवेचन में धर्मपरिषद् को सम्बोधित करते हुए गच्छाधिपति आचार्य भगवंत जिनमणिप्रभसूरीश्वर म. ने कहा कि बाजार में जाने पर हर मजबूत और टिकाऊ वस्तुएं खरीदते हैं। चिन्तन करें हमारे इस शरीर कोई भरोसा नहीं है, कभी भी, कही पर भी आयुष्य पूर्ण हो सकता है, बिमारी आये या न आयें, सम्पन्न हो सकता है। हम कषाय, अहंकार, क्रोध, मान, माया, लोभ के समय भी यही विचार रहता है कि मैं टिकूंगा, सौ साल तक जिऊँगा, परन्तु कभी भी हम संसार से विदा हो सकते है।
◆ टाइम इज नॉट मनी, टाइम इज लाइफ
गुरुवर ने आगे फरमाया कि यह सातवाँ अध्याय हमें प्रेरणा देता है कि हम भाग्यशाली है। सबसे ज्यादा हम भाग्यशाली है कि मेरे पास समय है, कितना है, यह मालूम नहीं, परन्तु मेरे पास समय है। समय के आधार पर ही जीता आया हूँ। प्रश्न है कि मैं उस समय का उपयोग कैसे कर रहा हूँ? हमारे पास पैसा भी है और समय भी है, हम किसका, कैसे उपयोग करते हैं? जो वस्तु एक बार चली जाने के बाद, खो जाने के बाद पुनः खरीदी नहीं जा सकती, पाई नहीं जा सकती, वहीं मूल्यवान है। पैसों को हम सम्भाल कर रखते है, उसी तरह हमें अपने मूल्यवान समय को भी इधर उधर की बातों में नहीं, विषय, विकारों में व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। टाइम इज नॉट मनी, टाइम इज लाइफ। एक तराजू में समय को, दूसरे में रुपये, पैसों को। मूल्यांकन समय का होगा, पलड़ा समय का भारी रहेगा। पैसों के बदले समय को नहीं पाया जा सकता, लेकिन समय के उपयोग से पैसों को पाया जा सकता है। हम फ्रि समय- जैसे टैक्सी में जा रहे हैं, दो कार्यों के बीच के समय का उपयोग धार्मिक कार्यों में करें। हमारी सद्गति और दूर्गति का मूल कारण है- फ्रि टाइम।
◆ पानी- मछली की तरह हो परमात्मा के साथ सम्बंध
आचार्य प्रवर ने कहा कि फ्रि समय में जब हमारा ध्यान परमात्मा भक्ति, स्वाध्याय, धार्मिक करणी में लगता है तो समझना चाहिए कि हमारी अगली सद्गति होनी वाली है। क्या आपको मिला वह महत्वपूर्ण नहीं है, क्या आप कर रहे है उसकी भी महत्ता नहीं है, हमारा रस किसमें है, हमको क्या अच्छा लगा, वह महत्वपूर्ण है, हमारे अन्तर के रुचि भाव महत्वपूर्ण है। परमात्मा, धर्म के मिलने से ज्यादा है, हमें वे पसन्द आये। पानी में मछली और नाव दोनों रहती है, हमारा सम्बंध परमात्मा के साथ पानी और मछली की तरह रहना चाहिए। हमारे हृदय में आँखों में, हर पल में, परमात्मा में रहना चाहिए। समय कभी बड़ नहीं सकता, पाँच सौ साल के साधुचर्या से भी पाँच महिने/ पाँच दिन या कुछेक समय का साधुपन महत्वपूर्ण रहता है। योग निन्द्रावस्था में छह घंटे की निन्द भी महत्वपूर्ण है।
◆ आवश्यक कर्म बंधन के कार्यों में भी रखे सावधानी
आचार्य प्रवर ने कहा कि समय के बाद दूसरा तत्व है समझ। जो हमारे आत्म स्वरूप का बोध कराये, वह समझ है। तत्व ज्ञान की भाषा में जिसे कर्म बंधन, कर्म मुक्ति का और मोक्ष के कारणों और उपायों का पता है, वह समझ है। चिन्तन करें हमारे मैं समझ कितनी है और समझ के लिए समय कितना लगा रहे है? हम रोज प्रवचन श्रवण कर रहे हैं, डायरी में नोट भी करते है, पुरा याद रहे, यह जरूरी नहीं। कुछ न कुछ, कभी न कभी, कोई
शब्द, हमारे हृदय में टकराया, जीवन में उतरा, आचरण में आया- वह महत्वपूर्ण है। समझ यानि ज्ञान, बोध, सम्यग् बोध। समझ कर आवश्यक कर्म बंधन के कार्यों को भी कम कर, अनावश्यक कर्म बंधन के कार्यों से बचना चाहिए। यात्रा के समय अपने निजी वाहन की अपेक्षा पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करने से कर्म बंधन कम होता है। जैन श्रावक का घर यतना का घर।
◆ माता-पिता से मिले सत् संस्कारों का रहे सदा स्मरण
तीसरे तत्व सामग्री की विवेचना करते हुए गुरुश्री ने कहा कि जो ग्यारह गणधरों को, आचार्य हरिभद्र सूरीश्वर को, कुमारपाल राजा जो जन्म से नहीं मिला, ऐसा वितराग परमात्मा का शासन हमें जन्म से मिला। इस प्राप्त सामग्री का गौरव होना चाहिए। गौतम स्वामी अपने पचास हजार शिष्यों की बनिस्पत भगवान महावीर स्वामी के शिष्य होने पर गौरव की अनुभूति करते। पैसा है, सत्ता है, सामग्री है, उसका अहंकार नहीं करके परमात्मा के चरणों में समर्पित हो कर साधना करने में गौरवान्वित महसुस करना चाहिए। हृदय में सदैव स्मरण रहना चाहिए कि मुझे माता पिता से सत् संस्कार मिले, उसके कारण धर्म में आगे बढ़ने का मार्ग मिला। पुण्य से धर्म भी मिलता है और धन भी मिलता है। हमें धर्म मिलने पर आनन्दित, प्रमुदित होना चाहिए- मान, सम्मान, सम्पत्ति से नहीं। प्रति क्षण यह भाव रखे- समझ का प्रयोग करे, सामग्री का उपयोग करें और समय को सार्थक करें।
समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती