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हमारा जीवन भीतर बाहर अमृत तुल्य बने: डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी

हमारा जीवन भीतर बाहर अमृत तुल्य बने: डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी

जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने तीर्थंकर परम पिता परमात्मा श्री आदिनाथ भगवान के जीवन धर्म की व्याख्या करते हुए कहा कि आपका जीवन विशव के समस्त महान गुणों से परिपूर्ण है इसी के साथ आपके शुभ पुद्दगल बाहरी जगत के सम्पूर्ण शुभ पदार्थों से परिपूर्ण है! अशोक वृक्ष के साथ साथ सिंघासन व इन्द्रो के द्वारा किए जाने वाले चंवर एवं तीन धात्र तीनो लोक को सुख शान्ति आनन्द मंगल के प्रदाता है! वास्तविकता मे जो स्तुति प्रार्थना हृदय पूर्वक की जाती है उसकी ऊर्जा आभा सर्वत्र व्याप्त हो जाती है! ईश्वर के ईश्वरीय गुणों के कारण समस्त चराचर जीवों को आनंदित करते है!

व्यवहारिक जगत मे जो घर परिवार व्यापार व्यवसाय मिलने जुलने के दैनिक कार्य मनोपूर्वक किए जाते है तो उसका सामने वाले के दिल पर गहरा असर नजर आता है। इसके विपरीत जो दिखावा मात्र कार्य होते है उसमें वह सरसता नहीं आती अत : कहा जाता है पेट तो भर गया पर मन नहीं भरता क्यों कि भोजन पानी के साथ भाव भी चाहिए। मानतुंग आचार्य देव पूर्ण मनोयोग के साथ स्तुति करते जा रहे है इसी से हम भी प्रेरणा लें हमारा प्रत्येक कार्य मात्र दिखावा न होकर भीतर मनोपूर्वक होना चाहिए!

आज दिखावे का बोलबाला होने से कथनी करनी मे भारी अंतर आ रहा है! जो बाहर दिखता है वो भीतर होता नहीं जो भीतर होता वो बाहर दिखता नहीं है! जैन आचार्यो ने चार प्रकार के घटो का उदारहण देते हुए कहा प्रथम घट वह है जो उपर ढकन आवर्ण तो अमृत का किन्तु भीतर जहर पड़ा है! दूसरा घट वह है जो भीतर अमृत है बाहर ढकन जहर का, तीसरा घट भीतर बाहर अमृत व चौथा भीतर बाहर जहर से भरा रहता है! हमारा जीवन भीतर बाहर अमृत तुल्य होना चाहिए! सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा विधि विधान से भक्तामर जी का पठन पाठन व नवरात्री का महत्व बतलाया गया! प्रधान महेश जैन द्वारा स्वागत व सूचनाएं दी गई।

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