दिवाकर भवन पर जप तप आराधना के साथ विभिन्न धार्मिक गतिविधीयो के साथ पाँच माह का चातुर्मास गतिमान है। प्रतिदिन नवकार आराधक श्रावक श्राविकाओ के साथ ज्ञान जिज्ञासु महानुभव प्रवचनो की श्रंखला के माध्यम से जिनवाणी का श्रवण कर रहे है। प्रवचनो के माध्यम से प्रखर वक्ता मेवाड़ गोरव पुज्यश्री रविन्द्रमुनि जी म सा “नीरज” ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए फरमाया कि सुख दु:ख जीवन के दो पहलू हैं जीवन में सुख आया है तो दु:ख भी आएगा।
दु:ख के समय में अपने आप को नियंत्रित करते हुए धर्म से जोड़े। दु:ख से घबराए नहीं दु:ख का स्वागत करें, यदि दुख में हम संयमित रहते हुए जीवन जिएंगे तो दुख की अनुभूति नहीं होगी। दुख ही जीवन का अभिन्न अंग है यह तो कल युग चल रहा है सतयुग होते हुए भी प्रभु श्रीराम को द्वापर युग में श्री कृष्ण भगवान को एवं सभी तीर्थंकर भगवान हो को भी अतिशय सहन करना पड़ा तो फिर आप और हम तो सामान्य प्राणी मात्र है। जीवन में सुख कभी-कभी आता है लेकिन दु:ख अधिक समय तक व्यक्ति के साथ रहता है इसीलिए जो अधिक हमारे साथ रहता है वह हमारा अपना है।

विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से प्रतिदिन गुरुदेव जीवन को साधने की कला सिखा रहे हैं। उपरोक्त जानकारी देते हुए श्री संघ अध्यक्ष इंदरमल टुकडिया कार्यवाहक अध्यक्ष ओमप्रकाश श्रीमाल ने बताया की ताल निवासी प्रकाशचंद्र जी पितलीया ने 28 उपवास के प्रत्याख्यान गुरुदेव से लिये। जैन दिवाकर पूज्य गुरुदेव चौथमल जी महाराज साहब के सुदी तेरस के जाप दिनांक 31 जुलाई सोमवार को रखे गये है। सभी नवकार आराधको से जिनवाणी श्रवण कर धर्मलाभ लेने की अपील श्रीसंघ के पदाधिकारीयो ने की है। धर्मसभा का संचालन महामंत्री महावीर छाजेड़ ने किया आभार श्रीसंघ उपाध्यक्ष विनोद ओस्तवाल ने माना।