कोयम्बत्तूर. आचार्य महाश्रमण ने कहा कि विद्यार्थियों को भौतिक ज्ञान के साथ-साथ आध्यात्मिक ज्ञान का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। शुक्रवार को आचार्य ने गीतांजलि मैट्रिकुलेशन हायर सेकेण्ड्री स्कूल में प्रवचन के दौरान ये बात कही। रविवार से आचार्य के सान्निध्य में तीन दिवसीय १५५ वां मर्यादा महोत्सव कोडेसिया में आयोजित होगा। महोत्सव तक आचार्य का प्रवास इसी विद्यालय में रहेगा। पहली बार दक्षिण भारत में मर्यादा महोत्सव का आयोजन होगा।
आचार्य ने कहा कि आदमी को सुख की आकांक्षा रखनी चाहिए। एक भौतिक यानी इन्द्रियजन्य सुख होता है और दूसरा अभौतिक यानी आध्यात्मिक सुख होता है। आध्यात्मिक सुखों की कामना, प्रशस्त कामना होती है।
आदमी के जीवन में कामनाएं चलती हैं। किसी को नुकसान पहुंचाने या कष्ट देने की कामना अधम स्तर की और निंदनीय होती है। अपने लिए भौतिक सुख की कामना करना मध्यम स्तर की कामना होती है। अपना अथवा किसी का कल्याण या मोक्ष पाने की कामना उत्तम भावना है।
आचार्य ने कहा कि आदमी को आध्यात्मिक के लिए विनय का प्रयोग, श्रुत का अभ्यास, तपस्या और संयम आचार का पालन करना चाहिए। श्रुत की आराधना से भी सुख मिलता है। शास्त्रकार ने श्रुत के आराधन के चार लाभ बताए हैं। पहला लाभ, अध्ययन से ज्ञान मिलता है। दुनिया में ज्ञान पवित्र चीज है।
पढऩे से ज्ञान की प्राप्ति होती है और अज्ञान दूर होता है। ग्रंथों में स्वाध्याय को सबसे बड़ा तप बताया गया है। दूसरा, श्रुत की आराधना करने से चित्त भी एकाग्र हो सकता है। तीसरा, आदमी ज्ञान प्राप्त कर आदमी सन्मार्ग को पर चलता है। चौथा, ज्ञानी आदमी अपने ज्ञान के माध्यम से किसी अज्ञानी का अज्ञान दूर कर उसे भी सन्मार्ग पर लाता है अथवा लाने का प्रयास करता है।
आचार्य ने कहा कि विद्यार्थियों में विनय का भाव पुष्ट हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। आचार्य ने मर्यादा महोत्सव के संदर्भ में मंगल आशीष प्रदान करने के बाद उपस्थित विद्यार्थियों को विशेष प्रेरणा प्रदान की।
इससे पहले करीब 10 किमी विहार कर स्कूल पहुंचने पर विद्यालय के प्रमुख अलगिरी स्वामी, शिक्षकों व विद्यार्थियों ने आचार्य का भावभीना अभिनंदन किया। हेमा भंसाली ने भी विचार व्यक्त किए।