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सामुहिक श्रमण दया का आयोजन

सामुहिक श्रमण दया का आयोजन

श्री S.S. जैन ट्रस्ट, रायपुरम द्वारा ज्ञान युवक मण्डल के सहयोग से पुज्य जयतिलक जी म सा के सान्निध्य में ‘सामुहिक श्रमण दया का आयोजन’ जैन भवन, रायपुरम में किया गया। जो एक दिन का साधु जीवन का अनुभव तथा संयम का स्वाद चखने का अनुपम अवसर था। प्रोजेक्ट चेयरमैन ज्ञानचंद कोठारी ने बताया कि करीब 35 श्रावको ने भिक्षु दया की। सभी भाइयों ने सामायिक ड्रेस पहन कर पुरे दिन में ग्यारह ग्यारह सामायिक की। और घर घर जाकर गोचरी लाकर आहार किया।

पुरे दिन में मोबाइल का त्याग किया और रात्रि भोजन त्याग कर के प्रतिक्रमण किया। विशाल कोठारी, जितेन्द्र बोहरा, मुकेश D. कोठारी ने व्यवस्था में सहयोग दीया। इस अवसर पर पुज्य जयतिलक जी म सा ने प्रवचन में बताया कि करुणा के सागर राग द्वेष के विजेता भगवान महावीर ने भव्य जीवों पर करुणा कर जिनवाणी प्ररूपित की!

आज का विषय “कौन सा परिवार सुखी”

सुखी बनने के लिए गुणों को धारण करो! अवगुणी से परिवार दुःखी बनता है। गुणों से स्वयं भी सुखी बनाते है परिवार भी सुखी बनता है! सुखी बनने का सबसे उत्तम सूत्र है “आज्ञा पालन” । धर्म तो आज्ञा में ही है। धर्म प्रवेश होता है। अवगुण से अधर्म आता है। यदि घर में धर्म है तो इहलोक परलोक दोनों सुखी बनते है।आज्ञा से घर में सुख, शांति, व्यवस्था बनी रहती है। संचालन सूत्रवान व्यक्ति के हाथ में हो। आज की पीढ़ी आज्ञा का पालन करना नहीं चाहती। बड़ो की आज्ञा, अनुभव को धारण करना चाहिए। ट्रेन पटरी पर चले तो सुरक्षित। यदि एक डिब्बा उत्तर जाए पटरी से तो सारी ट्रेन पटरी से उत्तर जाती है। एक संपन्न सेठ था। कर्मों के विपाक से दुख का आगमन होता है। सेठ जी ने अन्यत्र जाने का विचार किया । रात्रि में जंगल में विश्राम करते है। जब शरीर में स्वस्थता है गाडी का उपयोग नहीं करना चाहिए। सेठजी भी पद यात्रा करने लगे। सवेरे उठकर लघु शंका आदि के लिए गये तो देखा लंबी घास उगी हुई थी सेठजी ने सोचा इस घास को काटकर रस्सी आदि बना कर बेचें तो मार्ग का खर्चा निकल सकता है।

सेठ जी की आज्ञा के सारा परिवार रस्सी बनाने में जुट गये। रस्सी बन कर तैयारी हो गयी। उस वृक्ष पर मिथ्यात्वी देव था। घबरा कर नीचे सेठ जी से पूछने लगा आप यह क्या कर रहे है? सेठ ने बुद्धि का उपयोग लगाकर कहा वृक्ष सहित तुझे बाँध कर आया ले जाऊँगा। देव ने घबरा कर कहा नहीं नहीं आपको धन चाहिए मैं आपको धन देता हूँ! आप मुझ पर कृपा करे। सेठजी धन लेकर आये और वापिस सारी व्यवस्था कर दी। बगल में एक सेठानी थी जो ईर्ष्यावश रहती है। अपने सेठजी से कहा अपन भी उस वृक्ष के नीचे रस्सी बनाने की योजना बनाने लगे। सारे परिवार के साथ जाते है किंतु कोई भी सेठ जी की आज्ञा का पालन नहीं करता है तो वह मिथ्यात्वी देव सेठ जी को बंदी बना लेता है। कहने का तात्पर्य है जहाँ आज्ञा पालन है वहाँ सारे सुख होते है । लक्ष्मी का वास होता है। अन्यथा घर में दुःख दारिद्र्य का वास होता है। कलेश, कषाय, पाप से बचना ही धर्म है। बहु सास की आज्ञा में तैयार होती है। आडिटर, डाक्टर, वकिल आदि क्षेत्र में आगे बढ़ती है तो अनुभवी की आज्ञा में रहना होगा! यदि आप बुजुर्ग को आज्ञा में तैयार होगें, तो आप सब क्षेत्र में संपन्न होगे। बड़ो की छत्र छाया में तैयार होना है। जीवन के हर मोड़ पर सामना करने की योग्यता रहेगी।

आज सारी चीजे रेडीमेड आने लगी। क्योंकि आज्ञा में रहना नहीं चाहता! मेहनत करना नहीं चाहते है। काम करना नही आता। आराम करने के लिए शरीर नहीं मिला। परिश्रम कर शरीर को स्वस्थ रखो। इस हाड़ माँस के यंत्र को काम दो । अन्यथा यह भी खराब हो जाएगा। उपयोग परिभोग की मर्यादा करो। यंत्रों से विराधना होती है कर्मों का बंध होता है। शरीर आरोग्य रहता है! जब शरीर में रोग आए तब ही दवाई ले ! मेहनत करो स्वस्थ रहो ! और “जितनी चादर उतना ही पैर पसारो” आय के अनुसार व्यय करो । यदि खर्चा ज्यादा है आय कम है तो व्यक्ति दुःखी हो जाता है! तो घर कैसे सुखी बने! आप अपने से नीचे देखों उपर मत देखों तब ही आप सुखी रह पाओगे ! साथ में पूरा परिवार भी दुःखी बन जाता है!

दोपहर में धार्मिक गीतों पर अंतक्षरीका  संचालन ज्ञानचंद कोठारी द्वारा किया गया । जिसमें आठ आठ जनो की छे टीमें बनाकर अलग अलग तरह के पांच राउन्ड रखे गए। जिसमें पुरुष व महिलाओं ने भी उत्साह पुर्वक भाग लिया। प्रथम व द्वितीय आने वाली पुरी टीम के सदस्यों को संघ की और से ईनाम दीया गया। यह जानकारी मंत्री नरेन्द्र मरलेचा ने दी ।

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