सबके साथ मैत्रीभाव रखना ही संवत्सरी पर्व का संदेश – सवंत्सरी पर्व बिते वर्ष मे हुई भुलवतो क्षमा करनेका एवं क्षमा माँगने का पर्व है! साध्वी स्नेहा़श्री जी म.सा. उप प्रवर्तिनी महाराष्ट्र सौरभ पूज्या गुरूवर्या श्री चंद्रकला श्री जी म सा वाणी के जादूगर शाशन सूर्या पूज्य स्नेहा श्री जी म सा मधूर गायिका पूज्या श्रुतप्रज्ञा श्री जी म सा के पावन सानिध्य में जैन समाज ने एक साथ मनाया संवत्सरी महापर्व!
प्रवचन सूर्या पूज्या स्नेहा श्री जी म सा ने कहा संवत्सरी पर्व बीते वर्ष में हुई भूलों के लिए क्षमा करने का एवं क्षमा माँगने का पर्व है। क्षमा का अर्थ है, जो बीत गया उसे जाने दो, उसे पकड़कर मत बैठो। खुद के दिल को ठेस लगी, फिर भी क्षमा कर दिया तो समझो आपने संवत्सरी पर्व के सही अर्थ को जी लिया। छप्पन इंच का सीना उसका नहीं होता, जो रोज दण्ड-बैठक लगाता है, बल्कि उसका होता है, जो दूसरों की गलतियों को माफ करने का बड़प्पन दिखाता है। दूसरों को हम जितना जल्दी क्षमा करेंगे, ऊपरवाला हमारी भूलों को भी उतनी ही जल्द क्षमा कर देंगे।
पर्युषण पर्व के अंतिम दिन संवत्सरी महापर्व का रहस्य विषय पर संतश्री ने संबोधित करते हुए कहा कि वर्ष बीत जाने पर हम कैलेण्डर उतार देते हैं, फिर हम वर्ष बीत जाने पर किसी की कही बात को अपने दिल से क्यों नहीं उतार फेंकते। हम खुद की तो हजार गलतियाँ माफ कर देते हैं, फिर किसी दूसरे की दो चार गलतियों के कारण जीवनभर के लिए नफरत क्यों पालें। जैसे ब्लेक बोर्ड को टीचर हर रोज साफ कर देता है, वैसे ही हमें भी हर रात को सोने से पहले अपने भीतर के बोर्ड को साफ कर देना चाहिए।
संतप्रवर ने कहा कि तिरूपति, पालीताणा और वैष्णो देवी की हजारों सीढ़ियाँ चढ़कर तीर्थयात्रा बाद में कीजिए, पहले जिसके साथ बोलचाल बन्द है, उसके घर की पाँच सीढ़ियाँ चढ़कर उससे क्षमा माँग लीजिए, उसे गले लगा लीजिए, आपको घर बैठे ही तीर्थयात्रा करने का सही फल प्राप्त हो जाएगा। जन्मपत्री में शनि और रिश्तों में दुश्मनी कभी भी काम की नहीं होती। माना कि जिसे अभी आप बेकार समझते हैं, मुसीबत की आग लग जाने पर वहीं उसे बुझाने के काम आ जाए। इसलिए किसी के साथ भी वैर-विरोध मत रखिए। सबके साथ मंगलमैत्री का भाव रखना ही पर्युषण और संवत्सरी पर्व का मूलभूत संदेश है। संघाध्यक्ष सुभाष जी ललवाणी ने चातुर्मास की भुमिका विशद कर गुरुणीसा प्रति अपनी क्रुतज्ञता जतायी , श्री संघ के मांध्यमसे उनकी क्षमायाचना की!
पर्युषण पर्व में 18 धर्मअनुरीगीयेने अठाई तप कर श्री संघ की शान बढ़ाई! तप आराधकोका का सन्मान तप के बोली से, संघद्वारा रजत मुद्रा भेंट देकर और लोटस उद्योग समुहके संतोषजी एवं पुनम जी कर्नावट द्वारा किया गया ! दान दाताओंका सम्मान भी स्म्रुति चिन्ह एवं माल्यार्पण द्वारा विश्वस्त मंडल के करकमलेद्वारा किया गया ! सावंत्सरीक प्रतिक्रमण मे 1000 धर्मअनुरागीयो ने सामुहिक रुप से सहभाग लिया! अभिमंत्रित कलश के लाभार्थी बने आश्वी के श्री झुंबरलालजी बोरा परिवार! संघाध्यक्ष सुभाषजी ललवाणी ने महासतीयों के सन्मान में एक सुंदर भजन पेश किया ! अंतगड सुत्र वाचन , प्रवचन , आलोयणा और पॉंच मांगलीक के पश्चात समारोह संप्पन्न हुआ!