कोई भी मानव अपने जन्म के साथ ही विद्वता, वीरता अथवा कोई अन्य उल्लेखनीय योग्यता लेकर नहीं आता। वह आगे जाकर जो कुछ भी बनता है, केवल संगति से ही बनता है। विद्वत्-कुल में जन्म लेने वाला शिशु यदि कुसंगति में पड़ जाए तो चोर, डाकू, जुआरी और शराबी बन जाता है तथा हीन कुल में जन्म लेने वाला बालक सुसंगति पाकर महान्, विद्वान और साधु पुरुष बनकर संसार में जनमानस का श्रद्धापात्र बनता है।
असज्जन भी सज्जनों की संगति से इस जगत में दुःसाध्य काम कर डालते हैं। फूलों के सहारे चींटी शंकर की जटा पर बैठ कर चन्द्रमा का चुम्बन लेने पहुंच जाती है। सत्संगति से न हो सकने वाला काम भी सहज और संभव हो जाता है। यदि मानव सदा उत्तम पुरुषों की संगति में रहे तो अज्ञान, अंहकार आदि अनेक दुर्गुण तो नष्ट होते ही हैं, उसे आत्ममुक्ति के सच्चे मार्ग की पहचान भी होती है, जिसको प्राप्त कर वह अपने मानव जीवन को सार्थक कर सकता है।
सज्जन पुरुषों के समागम से लाभ यह है कि वे शत्रु-मित्र दोनों से ही समान व्यवहार करते हैं। वे सदा दूसरों का हित ही करते हैं, कभी भी किसी अन्य को, चाहे उसका कट्टर शत्रु ही क्यों न हो, हानि नही पहुंचाते, उसके अहित की भावना हृदय में ही नहीं लाते। इससे स्पष्ट है कि किन्हीं कारणों से यदि वे किसी का हित न कर पाएं तो भी उनके द्वारा अहित होने का भय भी नहीं रहता ।
सज्जनों की सत्संगति से विशेष लाभ-बौद्धिक विकास के रूप में होता है। संतों का अनुभव ज्ञान बड़ा भी होता है। अतः उनके मार्गदर्शन से बिगड़ता हुआ काम भी बन जाता है। सच्चे संत भले ही जिहा से शिक्षा न दें, पर उनके आचरण से भी मानव को मूक शिक्षा मिलती रहती है और जीवन सत्पथ पर बढ़ता है। केवल किताबी ज्ञान ही मनुष्य को ऊँचा नहीं उठा सकता, जब तक कि उसका आचरण भी ज्ञान मय न हो जाए तथा इसके लिये संत समागम अति आवश्यक है।