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सत्संग में जाकर जीवन खुशियों से भर जाएगा : डा. श्री वरुण मुनि

सत्संग में जाकर जीवन खुशियों से भर जाएगा : डा. श्री वरुण मुनि

श्री गुजराती जैन संघ गांधीनगर में चातुर्मास हेतु विराजमान दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रचारक डा. श्री वरुण मुनि जी महाराज ने रविवार को धार्मिक सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि यदि किसी वृक्ष की जड़ काट दी जाए, तो वृक्ष में कोई शक्ति नहीं रहती और जड़ के बिना वृक्ष का कोई अस्तित्व नहीं होता। ठीक उसी प्रकार यदि मनुष्य के जीवन में भगवान के नाम के दीपक का उजाला नहीं है, तो मनुष्य का जीवन घोर अंधकारमय है। उन्होंने कहा कि इस घोर कलियुग में हमारी बुद्धि और अहंकार ने पर्दा डाल रखा है, जो मनुष्य को राम नाम की चर्चा में नहीं जाने देता। उन्होंने बताया कि यदि हम सत्संग में जाकर वचनों पर अमल करें, तो सभी प्रकार की चिंताएँ और दुख दूर हो जाएंगे और जीवन खुशियों से भर जाएगा।

मनुष्य जीवन में शांति के सागर पर समस्याओं की लहरें हैं, बहारों के चमन में पतझड़ है, ज्ञान के खजाने पर ताले लगे हैं, सौभाग्य के द्वार पर ताला बंद है और कंचन जैसी काया पर रोगों का हमला है। अर्थात आज हर व्यक्ति दुखी है, जिसका कारण काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार है। उन्होंने कहा कि सत्संग में जाकर ही हम इन पाँच चोरों से मुक्ति पा सकते हैं और आनंदमय जीवन जी सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि ज्ञान को आत्मा की तीसरी नेत्र कहा जाता है। जिसके द्वारा कोई जान सकता है, वही सच्चा ज्ञान है। संसार के भौतिक पदार्थों और आध्यात्मिक तत्वों की प्रकृति को समझने के लिए ज्ञान जैसी कोई दूसरी आँख नहीं है। भगवान महावीर ने भी कहा है कि पहले ज्ञान प्राप्त करो और फिर दयालुता से व्यवहार करो। उन्होंने आगे कहा कि ज्ञान आत्मा का दर्पण है। ज्ञान मन के सभी विकारों को नष्ट करता है और इसे शुद्ध, पवित्र और साफ बनाता है। सबसे पहले ज्ञान आवश्यक है।

ज्ञान के बिना यह नहीं पता चलेगा कि यह अमृत है या विष। यदि आपके पास सही ज्ञान है, उस वस्तु की समझ है, तो आप अमृत और विष में अंतर पहचान सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में भी कहा है कि इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र कुछ भी नहीं है। ज्ञान ही ज्ञानवान को महान बनाता है। ज्ञान मानव जीवन का सार है। आत्मा का सच्चा ज्ञान ही हमारे जन्म और मृत्यु के दुख को दूर कर सकता है। इसलिए, साधकों को स्वयं ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। केवल तभी इस अनमोल मानव जीवन की प्राप्ति सार्थक हो सकती है। कार्यक्रम की शुरुआत में युवा मनीषी और मधुर वक्ता श्री रूपेश मुनि जी ने भजन प्रस्तुत किए। उप प्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी महाराज ने सभी को मंगल पाठ करवाया।

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