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सत्संग: दुखों की औषधि और आत्मा की शांति का मार्ग: भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज

सत्संग: दुखों की औषधि और आत्मा की शांति का मार्ग: भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज

चातुर्मास के पावन अवसर पर श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बैंगलोर में विराजमान भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज ने अपने प्रेरणादायक प्रवचन में कहा कि —“मनुष्य के जीवन के सारे दुखों का अंत केवल सत्संग और सत्य मार्ग की साधना से ही संभव है।”गुरुदेव ने कहा कि जब मनुष्य सच्चे संतों की वाणी सुनता है, तब उसका अंतर्मन शुद्ध होता है, विचारों में स्पष्टता आती है और जीवन की दिशा बदल जाती है। संसार के भोग-विलास, मोह-माया, और अस्थायी सुख मन को क्षणिक तृप्ति देते हैं, परंतु सत्संग आत्मा को स्थायी शांति प्रदान करता है।

महाराज श्री ने आगे कहा —“सत्संग केवल शब्द नहीं, यह आत्मा का स्नान है। जब हम संतों के वचन सुनते हैं, तो भीतर के अंधकार मिटने लगते हैं और दुख अपने आप दूर हो जाते हैं।”उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि जैसे सूर्य का प्रकाश अंधकार को मिटा देता है, वैसे ही संत वचन जीवन के तम को हर लेते हैं। सत्संग सुनने वाला व्यक्ति अपने भीतर के दोषों, क्रोध, लोभ, अहंकार को पहचानने लगता है और धीरे-धीरे उसका अंतर्मन निर्मल हो जाता है।

प्रवचन के पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ युवा मनीषी श्री रूपेश मुनि जी के मधुर भजनों से हुआ, जिनकी स्वर लहरियों ने वातावरण को भक्ति रस से भर दिया। तत्पश्चात उपप्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी महाराज ने मंगल पाठ का वाचन कर सभी को शुभाशीष प्रदान किया।प्रवचन के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। सभी ने अत्यंत श्रद्धा एवं भाव से गुरुदेव के वचनों को सुना।

अंत में डॉ. वरुण मुनि जी ने सभी से आह्वान किया कि —“जीवन में रोज़ कुछ पल सत्संग के लिए निकालिए। सत्संग आत्मा की औषधि है — जो इसे सुनता है, उसके जीवन से दुख, भय और भ्रम सब मिट जाते हैं।”

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