पर्युषण पर्व के द्वितीय पुष्पमे साध्वी स्नेहाश्री जी ने स्तवन के माध्यमसे अपनी बात रखी! स्वर्ग सरीखा लगे सु्नेहरा, मंदीरसा सुंदर हो, ऐसा अपना घर हो! हॅंसी खुंशी हो, जहॉं सभी सुखकर हो, कर्मयोग के किस्मत से मिली जमी हो! प्रेम, त्याग और मर्यादा, जिसकी नींव बड़ी हो! विश्वास के दिवारे से बना परिवार हो! रहे रोशनी ज्ञानकी उसमें, आगम भावके दरवाज़े हो!
चंद्रमा जैसी रोशनी, माता-पिता ईश्वर हो! प्रेम प्यार , मिठास का रस कैसा घोले, ईश्वर के हिफ़ाज़त का त्योहार हो! दिवरानी- जिठानी में बहन बहन का प्यार हो, होली की सौग़ात हो हर शाम माता पिता के चरणो की मालिश कर दिवाली हो!
एक दुसरो के प्रति सदैव स्नेह भाव बना रहे और उसी मे जीवन की भव्यता और दिव्यता है! अंतगड सुत्र का वाचन साध्वी श्रुतप्रज्ञा श्रीजी कर रहे है! गुरुमॉं समवसरण की यात्रा करा रहे है! 18 बहनो ने दयाव्रत धारण किया है! गांधी परिवार द्वारा सामुहिक जाप हुआ! संघाध्यक्ष सुभाषजी ललवाणी ने धर्मसभा में उपस्थित महानुभवों का स्वागत किया!