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संलेखना यानी आत्मा के स्वरूप का मिलन होना: डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा

संलेखना यानी आत्मा के स्वरूप का मिलन होना: डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा

🏰☔ *साक्षात्कार वर्षावास* ☔🏰

*ता :09/8/2023 बुद्धवार*

 

🛕 *स्थल: श्री राजेन्द्र भवन चेन्नई*

🪷 *विश्व वंदनीय प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी महाराज साहब के प्रशिष्यरत्न राष्ट्रसंत, प.पू. युगप्रभावक आचार्य श्रीमद् विजय जयंतसेनसुरीश्वरजी म.सा.के कृपापात्र सुशिष्यरत्न श्रुतप्रभावक मुनिप्रवर श्री डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा.* के प्रवचन के अंश

 

🪔 *विषय अभिधान राजेंद्र कोष भाग 7*🪔

~ संलेखना यानी आत्मा के स्वरूप का मिलन होना और यह मिलन के लिए शरीर के रागका, कर्मका, अज्ञान का मृत्यु होना ही चाहिए।

~ जहां जिस समय अज्ञान से मुक्त हो गए उसी क्षण आत्मा का बल श्रेष्ठ रूप से प्रकट होता ही है।

~ आत्मा की कभी भी मृत्यु होती ही नहीं है और जिसका मृत्यु होता ही है वह हमारा ना था, नहीं है, और ना ही रहेगा।

~ हमारा जीवन सिर्फ जीने के लिए ही नहीं है किंतु जीतने के लिए ही है।

~ परमात्मा बनने का मार्ग सरल है चाहे देह की, पैसों की, परिवार की, मृत्यु हो लेकिन, ‘मैं’ उन सभी से भिन्न हूं अमर हूं ।

~ जब तक हमारे मन में रहे पापों, गलतियों के पर्दे (layer) का नाश नहीं हुआ तब तक अनंत बार मृत्यु हो सकती है।

~ प्रभु महावीर स्वामी ने अनंत काल के पाप, दोष, गलतियों को केवल 12 1/2 साल की सम्यक ज्ञान, दर्शन, चरित्र की साधना से मूलभूत रूप से नाश किया।

~ प.पू.प्रभु श्री श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी महाराज साहब ने देह की मृत्यु होने से पहले ही देह के अज्ञान की, कर्म की, पूर्ण रूप से मृत्यु की थी।

~ जैन दर्शन जैसा महान दर्शन मिलने के बाद हमारे जीवन में भय, क्रोध, मान, निंदा, ईर्ष्या,द्वेष, माया से मुक्ति होनी ही चाहिए।

~ जिसके पास श्रद्धा रूपी चक्षु नहीं है उसे भगवान भी नहीं बचा सकते हैं।

~ जैन दर्शन पाने के बाद हमारे अज्ञान की भी मृत्यु होनी चाहिए।

 

*”जय जिनेंद्र-जय गुरुदेव”*

🏫 *श्री राजेन्द्रसुरीश्वरजी जैन ट्रस्ट, चेन्नई*🇳🇪

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