श्री गुजराती जैन संघ गांधीनगर में चातुर्मास विराजित दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार डॉ श्री वरुण मुनि जी म सा ने सोमवार को धर्म सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि संयम ही शाश्वत सुख का द्वार है। संयम की साधना ही जीव के सिद्धि का आधार है। संसार भटकाने वाला है और संयम की साधना जीव को इस संसार से तारने वाली है।
इसलिए आगम शास्त्रों में वर्णन मिलता है और गुरु महाराज भी अपने प्रवचनों में यही धर्म शिक्षा प्रदान करते हैं कि उन महान संयमी आत्माओं ने तीर्थंकर परमात्मा की शरण में जाकर एक ही बार उनकी वाणी सुनकर संसार के समस्त भौतिक सुख वैभव,विलास के पदार्थों का त्याग कर दिया और आत्मा को शाश्वत सुख प्रदान करने वाले संयम को स्वीकार करते हुए धर्म की शरण ग्रहण कर अपनी संयम साधना से अपने आत्मा का कल्याण करते हुए परम पद मुक्ति मोक्ष को प्राप्त किया। जो भक्ति करता है वो अमर बन जाता है।
उन्होंने कहा कि स्वार्थ और परमार्थ की धारा से ऊपर उठकर जो अपनी आत्मा को विकास पथ पर आगे बढ़ाते हुए निर्विकार भाव को अपने में आत्मसात कर लेता है वह साधक अपनी आत्मा के समान वो सबकी आत्मा को समझते हुए अपनी आत्मा का साक्षात्कार करते हुए स्व दर्शन साधना के उच्चतम आदर्श शिखर को प्राप्त कर लेता है और यही हमारी धर्म आराधना का लक्ष्य होना चाहिए। संसार की मोह माया जीव को अंत में रुलाने वाली है।
लेकिन संयम आत्मा की साधना जीव को शाश्वत सुख प्रदान करने वाला है। युवा मनीषी मधुर वक्ता श्री रुपेश मुनि जी ने भावपूर्ण रचना प्रस्तुत की। उप प्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी म सा ने सबको मंगल पाठ प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन राजेश भाई मेहता ने किया।