श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बेंगलुरू में चातुर्मासार्थ विराजित दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार प. पू. डॉ श्री वरुणमुनिजी म. सा. ने अपने मंगलमय प्रवचन में फरमाया की संत किसी जाति या धर्म का नहीं होता, वह तो सबका होता है । जिस प्रकार सूर्य हो या चंद्रमा, हवा हो या पानी, धरती हो या आकाश, वह सभी के होते हैं, किसी व्यक्ति विशेष के नहीं। इसी प्रकार यह सारा विश्व ही गुरु का परिवार है लेकिन इंसान ने गुरु को भी बांट दिया और धर्म को भी बांट दिया । संत तो पूजनीय होते हैं, उनका सत्कार होना चाहिए, उनके साथ देव जैसा व्यवहार होना चाहिए । संतों की अंतर आत्मा से जो आवाज निकलती है, वह कभी निष्फल नहीं होती । संत चमत्कार दिखाते नहीं, सहज में हो जाए, यह अलग बात है । इस दुनिया की दो रचनाएं बड़ी ही अद्भुत है – पहले श्रीमद् भागवत गीता की रचना, जो युद्ध के मैदान में हुई और दूसरी भक्तामर स्तोत्र की रचना, जो कैद की काल कोठरी में हुई । भक्तामर के रचयिता आचार्य श्री मानतुंग को चमत्कार नहीं दिखाने पर 48 कमरों के भीतर की काल कोठरी में बंद कर दिया और प्रत्येक कमरे के ताला लगा हुआ था किंतु जब मानतुंगाचार्य अपनी भक्ति में लीन हुए तो एक-एक कर 48 ही कमरों के तले टूट गए और इस प्रकार 48 गाथा वाले भक्तामर स्तोत्र की रचना हुई । किंतु कैद के ताले तोड़ने के लिए उन्होंने भक्तामर की रचना नहीं की बल्कि भक्तामर की रचना इसलिए हुई कि कोई भी श्रद्धालु जो इसका जाप करें उसके कर्मों के ताले टूट जाएं । एक गाथा का भी यदि भक्त भावपूर्वक उच्चारण करता है और जब भाव मन से जुड़ जाता है, तो भक्ति का जन्म हो जाता है । चार परम अंगों में मनुष्य जन्म, जिनवाणी और गुरु भगवंतो का सानिध्य तो हमें मिल गया किंतु फिर भी हमारी श्रद्धा अभी सुदृढ़ नहीं हुई। श्रद्धा सुदृढ़ होने का मतलब जिस प्रकार से आधा चार्ज प्लग में जाने पर फोन चार्ज नहीं होता, इसी प्रकार हमारे में श्रद्धा तो आई किंतु वह 100% नहीं आई । मौली का अर्थ श्रद्धा है । श्रद्धा, अशांति को दूर करने के लिए, दुर्भाग्य को मिटाने के लिए और प्रभु भक्ति में लीन होने के लिए अति आवश्यक है । यदि हम भक्तामर के पहले स्तोत्र का भी अत्यंत श्रद्धा पूर्वक, भक्ति-भावपूर्वक तल्लीन होकर भोर के समय में जाप करें तो हम अपने अनेक कष्टों से मुक्त हो सकते हैं । साधना का बल असाधारण है, अपूर्व है और जो भी भक्त इस पथ पर आगे बढ़ते हैं, वह निश्चय ही अपना कल्याण कर सकते हैं ।
मधुर वक्ता श्री रुपेशमुनि जी म. सा. ने एक अत्यंत मधुर भजन की प्रस्तुति दी, जिससे सभी श्रोता भक्ति के भाव में निमग्न हो गए । प्रवचन के पश्चात सभा का कुशल संचालन संघ के अध्यक्ष श्री राजेश भाई मेहता ने किया। अंत में उपप्रवर्तक परम पूज्य श्री पंकज मुनि जी म. सा. ने मंगल पाठ के साथ सभा का समापन हुआ।