नार्थ टाउन में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में कहा कि आत्म बंधुओ :- श्री उतराध्ययन भगवान की ‘अन्तिम देशना है जिसमे भगवान ने अपने जीवन का सार, विशेष कथानक के माध्यम से, गद्य-पद्य के माध्यम से सुवाक्यों में फरमाया। ये सुवाक्य मोक्षगामी जीवों के लिये मार्ग प्रशस्त करते है। इस आगम का अध्ययन जितनी बार किया जाये उतनी बार नई बातें सीखने को मिलती है जिसका विवेचन हर कोई नहीं कर सकता, ज्ञान और आचरण दोनों का समायोजन होना आवश्यक है। इनके योग से ही जीव तिरता है इसलिए दर्शक श्री दश्वैकालिक सूत्र में कहा गया- “पढम्ं माणो तओ दया” हर जाति में दया का महत्व है ! ज्ञान के साथ जब दया का आचरण होता है तो वह दया उत्कृष्ट दया बन जाती है संयम लेना बड़ी बात नही हर कोई ले भी सकता है पर संयम आराधना बिना ज्ञान के संभावना नही।
इसलिए जब मूल बात को पकड उसे समझेंगे और मूल सुरक्षित होने पर ही संयम की आरधना की जा सकती है। अन्यथा लक्ष्य विहीन हो कर संसार में परिभ्रमण करता रहेगा। भगवान ने बताया जिन मुनियों को ज्ञान नहीं है। साधु को अपनी चर्या का ज्ञान होना चाहिए तभी वह मोक्ष पथ की ओर अग्रसर होगा और मोक्ष को पाने के लिए मोह को क्षय करना प्रथम लक्ष्य होना चाहिए। वह कभी किसी वस्तु पर राग-द्वेष नही करेगा अपनी इन्द्रियों को वश में रखेगा। अनुकूल-प्रतिकूल दोनों परिस्थतियों में वह मुनि समभाव में रहेगा। ज्ञानीजन कहते है पद की अभिलाषा नहीं करनी चाहिए क्योंकि पद पाने पर भार को उठाना पड़ता है भार उठाने के लिए साम्थर्य भी होना चाहिए। पदासीन के बहुत कर्म बंधे होते है।
ज्ञानीजन कहते है संयम अंगीकार पद की कामना नहीं करनी चाहिए। यदि वह कामना में आसक्त है तो वह मात्र द्रव्य भिक्षु कहलाता है। धर्म से रहित साधक दुर्गति में जाता है। देश का भी महत्व है। देश को देखकर अन्य जीव चिन्तन, कर तिर सकते हैं। वेश करने वाले को भाव से रमण करना धारण करना चाहिए। तभी वेश धारण करने वाला तिर सकता है। ज्ञानचंद कोठारी ने संचालन करते हुए सूचना दी कि 14 तारीख मंगलवार सुबह नववर्ष के उपलक्ष्य में नार्थ टाउन में गुरुदेव द्वारा महामंगलिक होगा।