श्री गुजराती जैन संघ गांधीनगर में चातुर्मास विराजित दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार डॉ श्री वरुण मुनि जी म .सा. ने पर्व पर्यूषण के दुसरे दिन गुरुवार को धर्म सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि संसार में माता पिता की सेवा ईश्वर की सेवा के समान है। श्रीकृष्ण ने अपने माता पिता की आदर्श सेवा भक्ति, उनकी हर आज्ञा का विनम्रता से पालन करके जगत के समक्ष एक अनुपम, दिव्य आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है।
उन्होंने कहा कि माता पिता अपने जीवन का सर्वस्व बलिदान करते हुए अपनी संतान का पालन पोषण करते हुए अपने बच्चों को संसार की हर खुशी प्रदान करने के लिए दिन रात अथक परिश्रम मेहनत करते हैं। वही बच्चे बड़े होकर जब अपने वृद्ध मां बाप की सेवा नहीं करते हैं और कुछ नौजवान जब अपने माता पिता को घर से बाहर निकाल देते हैं और उन्हें वृद्धावस्था में लाचार असहाय हालत में वृद्धाश्रम में छोड़ कर आ जाते हैं तो चिंतन करें ऐसी दयनीय स्थिति में उन बूढ़े मां बाप पर क्या गुजरती होगी। मुनि श्री ने आज के युवाओं को आव्हान करते हुए कहा कि आप सभी आज यह संकल्प लें कि कभी भी अपने माता पिता को किसी भी हालत में उन्हें वृद्धाश्रमों में नहीं भेजेंगे। अपने मां बाप की बुढ़ापे की लाठी बनेंगे और जीवन भर अपने माता पिता की सेवा, आदर भक्ति, करते हुए अपने मां बाप को हमेशा खुश रखेंगे और उन्हें किसी भी प्रकार की कमी, अकेलापन महसूस नहीं होने देंगे। यह आप सबका प्रमुख कर्तव्य है। याद रखें जो अपने माता पिता को सताते हैं, उनकी आज्ञा नहीं मान कर उनका हर समय अपमान, तिरस्कृत करते हैं
ऐसे औलाद आगे चलकर अपने जीवन में कभी भी सुख, शान्ति के साथ नहीं रह सकती है। उन्होंने कहा कि जो अपने माता पिता के सामने झुकते हैं रोज अपने माता पिता, बड़ों को प्रणाम करते हैं फिर उन्हें दुनिया के सामने नहीं झुकना पड़ता है।उन्होंने कहा कि मां बाप का आशीर्वाद बच्चों के लिए, संतान के लिए एक सुरक्षा कवच होता है। प्रारंभ में युवा मनीषी मधुर वक्ता श्री रुपेश मुनि ने अंतगड सूत्र का सरल सरस वाचन एवं विवेचन किया। उप प्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी महाराज ने सबको मंगल पाठ प्रदान किया। इस अवसर पर समाज के अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। कर्नाटक जैन कान्फ्रेंस प्रांतीय शाखा के भी अनेक पदाधिकारी गण उपस्थित थे। संचालन राजेश मेहता ने किया।