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श्रद्धा परम दुर्लभ है: डॉ श्री वरुण मुनि जी

श्रद्धा परम दुर्लभ है: डॉ श्री वरुण मुनि जी

श्री गुजराती जैन संघ गांधीनगर में चातुर्मास विराजित दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार डॉ श्री वरुण मुनि जी म .सा. ने धर्म सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि श्रद्धा परम दुर्लभ है। धर्म पर जिस साधक की श्रद्धा मजबूत हो जाती है वह अपने जीवन का कल्याण करते हुए मोक्ष मार्ग की ओर अपने कदम आगे बढ़ा लेता है।

मुनि श्री ने प्रवचन सभा में बहुत ही मार्मिक वैराग्यपूर्ण प्रेरक श्री तेतली पुत्र के कथानक पर सारगर्भित प्रकाश डालते हुए कहा कि धर्म की सम्यक आराधना ही जीव को शाश्वत सुख प्रदान करने वाली है। संसार के सब सुख क्षणिक और काल्पनिक स्वप्नवत है। आंख खुलते ही सब खत्म हो जाता है। सद्गुरु हमें जगाने आते हैं और मोक्ष का मार्ग बतलाने आते हैं। जो जागत है वो पावत है और जो सोवत है वो खोवत है।

अर्थात् जो संसार की मोह निद्रा से जाग जाता है वो अपने जीवन का उत्थान कर लेता है और जो संसार के क्षणिक नाशवान क्षणभंगुर भौतिक सुख विलास की चीजों में आसक्त बन कर मोह निद्रा में सोया हुआ है उसका अमूल्य मानव जीवन व्यर्थ, बेकार चला जाता है। उन्होंने आगे कहा कि दुख , विपत्ति के समय इन्सान को या तो भगवान याद आते हैं या फिर अपनी मां और गुरु याद आते हैं। जो दुःख में घबराता नहीं है और सुख में इतराता नहीं है वही आत्मज्ञानी बन कर अपनी आत्मा का कल्याण कर सकता है। संसार में एक मात्र संयम की आराधना ही जीव को सच्चा आत्मिक शांति, सुख प्रदान करने वाली है।

अतः सच्चा सुख पाने के लिए चारित्र धर्म की ओर साधक सम्यक आराधना, पुरुषार्थ करें। यही आनन्द और सुख का राजमार्ग है। प्रारंभ में युवा मनीषी मधुर वक्ता श्री रुपेश मुनि जी ने अपने विचार व्यक्त किए। उप प्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी महाराज ने सबको आशीर्वाद मंगल पाठ प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन राजेश भाई मेहता ने किया।

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