Share This Post

Featured News / Featured Slider / ज्ञान वाणी

शुभ कार्यो के रोकने में भी बाधक अन्तराय कर्म: साध्वी संबोधि

शुभ कार्यो के रोकने में भी बाधक अन्तराय कर्म: साध्वी संबोधि

आत्मा में अनन्त शक्ति है। इस अनन्तशक्ति को प्रकट करने के लिए जो शक्ति चाहिए उसमें बाधा डालने वाला अन्तराय कर्म है। बहुत मेहनत के बावजूद भी अभीष्ट वस्तु का लाभ या अनुकूलता न मिल पाना, सम्पत्ति या सामग्री की प्रचुरता होने पर भी उपलब्ध सामग्री का उपयोग न कर पाना, दान देने का उत्साह जागृत न हो पाना और स्वयं को उत्साह हीन या असमर्थ महसूस करना इसी कर्म का प्रभाव है।

जैसे राजा के आदेश देने पर भी भण्डारी धन प्रदान करने में आनाकानी करता है उसी प्रकार अन्तराय कर्म दान, लाभ, भोग-उपभोग की इच्छा पूर्ति में रुकावट डालता है तथा तप, संयम, त्याग की क्षमता को कुण्ठित कर देता है।

अन्तराय कर्म के प्रभाव से प्राप्त वस्तुएं नष्ट या गायब होती हैं और हाथ में आई बाजी भी बिगड़ जाती है। भविष्य में प्राप्त होने वाले प्रत्येक प्रकार के लाभ में विघ्न पैदा करना इस कर्म का कार्य है।

शक्ति होने पर भी जो परोपकार के कार्य नहीं करता,

धर्म-कार्य में अनुत्साह या अरुचि दिखाता है, साधु-साध्वियों की सेवा नहीं करता या तन-मन की शक्ति का दुरुपयोग करता है वह अन्तराय कर्म का बँध करता है।

ईर्ष्यावश दूसरों के सुख-साधन में बाधा पहुँचाने से, धन या यश के लाभ में रुकावट डालने से, भोजन में विक्षेप डालने से और शुभ कार्य करने वालों को निरुत्साहित करने से भी यह कर्म बँधता है।

इसलिए कोई किसी को भोजन देता हो तो उसे कभी मत रोकना और न दूसरों की श्रेष्ठ सामग्री देखकर ईर्ष्या करना। धर्मक्रिया, परोपकार और मानव सेवा करने वालों की अनुमोदना करते हुए उन्हें प्रोत्साहित करना। यदि मनपसंद लाभ नहीं मिलता हो तो भी दूसरों की लाभ प्राप्ति में सहयोग देने से एवं परोपकार जैसे कार्य में विलम्ब न करते हुए तत्परता दिखाने से पूर्वबद्ध अन्तराय कर्म का क्षय हो जाता है।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar