हमारे भाईन्दर में विराजीत उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना ज गुरुणी मैया आदि ठाणा 7 साता पूर्वक विराजमान है। वह रोज हमें प्रवचन के माध्यम से नित नयी वाणी सुनाते हैं वह इस प्रकार हैं। बंधुओं जैसे सोच बदले का जीवन अगर समय पर चलने की जीवन में व्यवस्था नहीं तो घड़ी क्यों देखते हो और घड़ी क्यों पहनते हो।
मुझे याद है एक व्यक्ति ट्रेन में सफ़र कर रहा था दूसरा देख कर आया उसने पूछा भाई साहब गाड़ी में कितना बजा है। उसने कहा बजकर 20 मिनट और चौका थोड़ी देर बाद उसने पूछा भाई साहब कितना बजा उसने कहा बजकर 40 मिनट वह बार-बार थोड़ी देर में ही जवाब नहीं था 50 मिनट बजकर 15 मिनट चार्ज हो गई। तभी उसका बस कर इतनी मिनट ही जारी रहा तब तो उस व्यक्ति से रहा नहीं गया उसने कहा भैया यह बजकर 40 20 25 15 मिनट क्या है? आप एक टाइम क्यों नहीं बताते उसने कहा घड़ी में घंटे की सुई नहीं है?
अब जिस घड़ी में घंटे की सुई नहीं उसमें बजकर 40 हो सकता है पर कितने बजे होगा इसकी खबर कभी नहीं लग सकती समय को करे नियोजित मुझे वह लोग पसंद है जो समय पर चलते हैं। मैं उन्हें अपने समारोह में देखना पसंद नहीं करता जो विलंब से आते हैं। व्यक्ति अपने समय को नियोजित करें तो मैं किसी से मिलने जाना है तो फोन करके समय ले लो ताकि उसका न तुम्हारा समय खराब ना हो। यहां तो ऐसा है कि जब मन आए चल दिए मिलने को और तो कुछ काम नहीं इसलिए टाइम पास चले जाते हैं। अरे आपके पास फालतू टाइम है तो दूसरे का टाइम क्यों बर्बाद कर रहे हो?
हां हो सकता उस समय से कोई अति आवश्यक कार्य करना हो, जो समय पर नहीं चलते वह क्या कहना देंगे उसके जीवन के लिए एक संदेश मुझे याद है व्यवस्था सुधारने की शुरुआत स्वयं से करें। एक भी मिनट व्यर्थ नहीं जाने दे इसलिए कभी निठल्ले ना रहे नहीं समय व्यर्थ की चिंता जोड़े एक पल अमृत की बूंद उसी तरह जिया जाना चाहिए यही हमारी जिंदगी है जय जिनेंद्र जय महावीर।
कांता सिसोदिया भायंदर*