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विषमता को छोड़कर समता को धारण करना ही जैन धर्म है: डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी

विषमता को छोड़कर समता को धारण करना ही जैन धर्म है: डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी

पर्युषण पर्व के उपलक्ष्य मे जैन स्थानक बठिंडा मे बोलते हुए डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने जैन धर्म के अनुयायी श्रावक के 12 व्रतो पर प्रकाश डाला एवं नवमा सामायिक का महत्व बतलाया! जीवन मे समता विषमता के भाव आते जाते रहते है! विषमता के वातावरण मे समता भाव को बनाए रखना ही धर्म का स्वरूप है! प्रात : काल से हमारी दैनिक जीवन चर्य प्रारम्भ होती है रात भर बिसों कार्यों के लिए बिसो लोगों से मिलना जुलना घर परिवार समाज व्यपार मे नाना भांति के लोगों से नाना प्रकार के कार्य व लेंन देन बना रहता है! उन तमाम गतिविधियों मे मन को समता भाव से बनाए रखना, इसके अलावा आत्म साधना हेतू सामायिक की साधना का वर्णन आगमो मे आया है! जिसके अंतर्गत मन वचन काया के तमाम कार्यों का परित्याग कर आत्म चिंतन मनन किया जाता है करते हुए परम शुद्ध अवस्था प्राप्त हो जाए तो केवल ज्ञान की प्राप्तिकर समस्त कर्मों का नाश हो जाता है!

ऐसी उत्कृष्ट साधना भगवान महावीर ने स्वयं की एवं अपने अनुयाइओ से कराई वही परम्परा वर्तमान मे भी चल रही है! जैन श्रावक को एक सामायिक करना प्रतिदिन आवश्यक है! जिसमें एक घंटे का समय अपनी धर्म आराधना साधना मे व्यतीत होता है!यदिपी यह परम्परा अभी भी गतिमान है किन्तु इसमें ऊँचे भावों की कमी आने से उतना लाभ नहीं मिल पाता, समस्त राग द्वेष को समाप्त करने के लिए सामायिक आवश्यक है! सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा अंतगढ़ सूत्र के माध्यम से उन पवित्र जीवों का वर्णन विवेचन किया गया है जिन्होंने केवल ज्ञान को प्राप्त कर लिया, जैन धर्म मे उत्कृष्ट तप का त्याग का दान का ब्रह्मचर्य का सत्य अहिंसा शाकाहार रात्रि भोजन के परित्याग का व जीवदया तथा मानव मात्र की भलाई का विशेष वर्णन विधान है! आज भी यह परम्परा गतिमान है! सभा मे महामंत्री उमेश जैन ने तपस्वीओ का स्वागत व आवश्यक सूचनाएं प्रदान की!

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