पुज्य जयतिलक जी म सा ने जैन भवन, रायपुरम में संभव की साधना एवं असंभव की भावना रखने का उपदेश दिया। सामर्थ्य के अनुसार कार्य करने में तत्पर रहे! वस्त्र बदलने से स्थान बदलने से आत्म परिवर्तन नहीं होता? परिवर्तन होगा हृदय के परिवर्तन से। अपनी आत्मा को धर्म की और लाने के लिए मन को हृदय को परिवर्तन करना आवश्यक है। संभव को साधने के लिए अपने आपको बदलना आवश्यक है। भगवान तो यहाँ तक फरमाते है कि तू भी मेरे जैसे अरिहंत सिद्ध बन सकता है बस सिर्फ मेरे वचनों पर श्रध्दा कर आचरण में लाओ। स्वअनुभूति करो।
सही गलत होगी परिवर्तन अपने आप हो जायेग दूसरे के अनुभव सुनो, स्वअनुभूति करो। सही गलत का निर्वाह करो फिर आचरण लाओ। आप बस एक कदम मोक्ष मार्ग पर बढ़ाओ शेष स्वतः ही हो जायेगा। ऐसी कई आत्माएं है जो भोग विलास में लीन है, हिंसा में लीन है, कर्म बंधन में लीन किंतु जब धर्म के मर्म को समझा, स्वानुभूति कि तो स्वयं ही मोक्ष मार्ग पर अग्रसर हो गये। जो अप्रमादी होता है वही आत्म कल्याण कर सकते है! यदि दूसरों को देखने से कीसीका का फायदा होने वाला नहीं। जब देखना है तो स्वयं को देखो! भीतर का कचरा बाहर निकलता है और आत्मा कुंदन बनती है।
सामायिक तो स्वयं को देखने की अनुभूति है। दुसरो को देखने से प्रतिस्पर्धा उत्पन्न होती है ईष्र्या होती है सबसे पीछे हट जाओ। इसलिए पर को न देखे स्व को देखे अन्यथा कर्म बंध होता है। सभी आत्मा समान है सब में अनंत, ज्ञान, दर्शन का भान हो जाय तो आत्म कल्याण हो जाये। यदि आपको आगे बढ़ना है तो स्वदोष को देखो। परदोष देखने से आपका क्या फायदा ? अत: ज्ञानीजन कहते है संभव की साधना करें। दस बल प्राण हमारे को मिले है स्वयं का हित साधने के लिए। यदि दुरुपयोग कर लिया तो कर्म बंध होते समय नहीं लगती। जैसे ताला एक ही चाबी से खुलता भी है बंद भी होता है वैसे ही कर्मबंध एवं कर्मक्षय के साधन एक ही है उस उपयोग आपके हाथ में है!
यदि आपने अपने कर्तव्य का पालन कर लिया इन्द्रीय बल प्राण का सदुपयोग कर लिया। जिन वचन पर श्रदा कर पालन कर लिया तो इस पाँचवें आरे में भी मोक्ष मार्ग प्रशक्त हो सकता है! बस आप धीरे धीरे भी चले किंतु प्रमाद मत करो बस चलते रहो तो मोक्ष आपके निकट है। सामर्थ्य अनुसार जप तप में पराक्रम करो। भगवान कहते है आप 48 मिनट की सामायिक नहीं सकते तो संवर कर लो। 15 मिनट में भी है माला फेर सकते हो! बूंद बूंद से घर भरता है वैसे ही छोटी छोटी साधना से भी आपकी आत्मा मोक्ष मार्ग पर अग्रसर हो जायेगी । मोक्ष मार्गी गुरु भगवत को वाणी में रत्न ढूंढ़ता है कि इसमें कौन सी बात से मेरी आत्मा का कल्याण होगा।
धर्म के कार्य में बाधक मत बनना ! उस अंतराय को तोड़ना बहुत मुश्किल है। जो धर्म करने को लिए तत्पर है उनको सहारा दो। जैसे कृष्ण वासदेव, श्रेणिक महाराज्य ने धर्म में सहयोग दे देकर तीर्थकर गोत्र बंध कर लिया! और आत्म साधना में पराक्रम कर अपनी आत्मा का कल्याण कर सकेंगे। सभी भव्य जीव अपनी आत्मा का कल्याण करे इसी मंगल भावना के साथ इति श्री! यह जानकारी नमिता संचेती ने दी।