रक्षाबंधन पर विशेष प्रवचन आकुर्डी स्थानक भवन में आयोजन ! रक्षाबंधन प्रेम का पर्व है। प्रेम न हो तो जीवन नीरस हो जाता है और प्रेम हो तो मरुस्थल भी मरुधान बन जाता है। उन्होंने कहा कि राम के समय मर्यादा का मार्ग था, कृष्ण के समय कर्मयोग की प्रेरणा थी, महावीर के समय अहिंसा उपयोगी थी, पर आज के समय में इंसान की हर समस्या का समाधान एकमात्र प्रेम के मार्ग से संभव है। उन्होंने कहा कि अब हर परिवार, समाज और देशों के बीच प्रेम की आवश्यकता है। प्रेम तो उस सूई की तरह है जो टूट चुके रिश्तों को सांधने का काम करती है। जिस घर में प्रेम और मौहब्बत है वहाँ लक्ष्मी तो छोड़ो महावीर और महादेव भी आने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
रक्षाबंधन पर आयोजित विशेष प्रवचन-सत्संग में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रेम से बढ़कर न तो कोई धर्म है न कोई पुण्य। प्रेम में प्रणाम भी है, प्रसाद भी है और आशीर्वाद भी। प्रेम है तो अहिंसा भी सार्थक है और प्रेम है तो परमात्मा भी निकट है। उन्होंने कहा कि प्रेम अगर जीव-जंतुओं से जुड़ जाए तो दया और करुणा बन जाता है, इंसानों से जुड़ जाए तो ममता, वात्सल्य और मौहब्बत बन जाता है और वही प्रेम परमात्मा से जुड़ जाए तो श्रद्धा और भक्ति बन जाता है।
रक्षाबंधन शपथ लेने का पर्व है-संतश्री ने कहा कि रक्षाबंधन महज धागे बांधने का नहीं, भाई द्वारा शपथ पत्र लेने का पर्व है। जैसे भगवानश्री कृष्ण ने द्रोपदी की और हुमायूँ ने कर्णावती की रक्षा की थी ठीक वैसे ही हे बहिन, आज के बाद मैं हर विपदा में तेरी रक्षा करूंगा। उन्होंने कहा कि भले ही संयोग से हमारी सगी बहिन नहीं है, पर ईश्वर की कृपा है कि उसने संत बनाकर हमें दुनिया में हजारों-हजार बहिनें प्रदान की है और जब भी कोई बहिन हमें रक्षा के लिए पुकारेगी हमारी अतीन्द्रिय शक्ति जरूर उसकी रक्षा करेगी। उन्होंने कहा कि पिता-पुत्र, भाई-भाई, सास-बहू, देवरानी-जेठानी, देवर-भाभी के रिश्तों से भी ज्यादा पवित्र रिश्ता भाई-बहिन का है। एक भाई ही ऐसा सक्ष है जो अपनी बहिन को ही नहीं, उसकी संतानों तक को संभालता है इसीलिए हर बहिन को अपने भाई से अंतिम सांस तक पूरी आस बनी रहती है।
रक्षाबंधन रिश्तों को जोडऩे का पर्व है-संतश्री ने कहा कि रक्षाबंधन जीवन में प्रेम घोलने की प्रेरणा देने वाला पर्व है। अगर हमसे कोई रिश्तेदार टूटा हुआ है, बोलचाल बंद है तो इस रिश्ते को धन्य कीजिए, खुद चलाकर उनके यहाँ फोन कीजिए कि मैं आपसे राखी बंधवाने आ रहा हूँ। जैसे नोट फट जाए तो फैं कने की बजाय जोड़ा जाता है ठीक वैसे ही रिश्तों में दरार आ जाए तो उसे जोडऩे की कोशिश कीजिए। जब हम बीस साल पुराना केलेण्डर घर में रखना पसंद नहीं करते तो बीस साल पुरानी बातों को, वैर-विरोध की गांठों को क्यों ढोते रहते हैं।
भजन में आनंद विभोर हुए श्रद्धालु – जब ..भजन सुनाया तो सभी भाई-बहनों को आनंद आ गया। भजन एवं प्रवचन दरम्यान पारिवारिक प्रसंग साध्वी जीने बतानेपर उपस्थित सबोकी ऑंखे नमी , ऑंसुओको मुक्त स्थान मिला ! सभी भावुक हुये! तुषार जी मुथा के नेत्रुत्व मे नवकार युवा मंडल एवं बहुमंडल द्वारा इस विशेष समारोहका आयोजन नियोजन किया गया! आजके समारोह का विशेष आकर्षण रहा गौ- माता/ गो सेवाके लिए भक्तगणोद्वारा छत्तीस हजारकी राशी दानरुपमे आयी जिसमें सबसे बड़ा सहभाग रहा संघ के पुर्वाध्यक्ष संतोषजी कर्नावट परिवारका! गुरुमॉं उपप्रवर्तिनी महाराष्ट्र सौरभ चंद्रकला श्रीजी म.सा. ने गौ माताके लिए दानका एहलान किया था! संघाध्यक्ष सुभाषजी ललवाणी ने उपस्थित महानुभावों को रक्षाबंधन की शुभकामनाएँ दी! सभी बहनें अपने भाई संग उपस्थित थी!