गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बैंगलोर में चातुर्मास के पावन अवसर पर विराजमान भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज ने अपने गहन और प्रेरणादायक प्रवचन में कहा कि —“ईश्वर को शब्दों से नहीं, मौन से पाया जा सकता है। जब मन शांत होता है, तब आत्मा ईश्वर के स्पर्श को अनुभव करती है।”गुरुदेव ने बताया कि संसार में मनुष्य अनेक ध्वनियों, विचारों और इच्छाओं से घिरा रहता है। जब तक भीतर का शोर शांत नहीं होता, तब तक सत्य की अनुभूति संभव नहीं।
उन्होंने कहा कि मौन कोई कमजोरी नहीं, बल्कि आत्मबल का प्रतीक है। मौन के माध्यम से मनुष्य स्वयं को सुनना सीखता है, और यही सुनना उसे परमात्मा तक पहुंचाता है।डॉ. वरुण मुनि जी ने आगे कहा —“जो व्यक्ति मौन की साधना करता है, उसके भीतर का अहंकार गल जाता है, भाव निर्मल हो जाते हैं, और आत्मा परमात्मा से एकाकार होने लगती है।”उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे झील का पानी शांत होता है तो उसमें आकाश स्पष्ट दिखाई देता है, वैसे ही जब मन शांत होता है तो उसमें ईश्वर का प्रतिबिंब झलकता है।
प्रवचन के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। सभी ने गहरे भाव से मौन साधना का अर्थ समझा और गुरुदेव के वचनों को आत्मसात किया। वातावरण पूर्णतः आध्यात्मिक अनुभूति से ओतप्रोत हो उठा।प्रवचन के पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ युवा मनीषी श्री रूपेश मुनि जी के मधुर भजनों से हुआ, जिनकी स्वर लहरियों ने वातावरण को भक्ति रस से भर दिया। तत्पश्चात उपप्रवर्तक श्री
पंकज मुनि जी महाराज ने मंगल पाठ का वाचन कर सभी को शुभाशीष प्रदान किया।अंत में महाराज श्री ने कहा —मौन साधना को अपनाइए, क्योंकि मौन में ही मनुष्य अपने सच्चे स्वरूप से परिचित होता है, और वही साक्षात्कार — ईश्वर का साक्षात्कार है।”