आत्मा भावों के झूले पर ऊंचा नीचा झूलता हुआ ही कभी ऊपर उठता है तो कभी नीचे गिरता है। भाव ही राम है और भाव ही रावण है। भाव ही कृष्ण है. भाव ही कंस है। भाव ही महावीर है, भाव ही गौतम है, भाव ही गौशालक है। भाव ही देव है, भाव ही राक्षस है और भाव ही पशु है। भाव ही मानव का शत्रु है और भाव ही मित्र है।
भगवान महावीर ने कहा था कि शुभ भावों वाली आत्मा स्वयं कामधेनु है। अशुभ भावों वाली आत्मा स्वयं ही नरक की वैतरणी है। आत्मा ही नन्दनवन है और आत्मा ही कांटों से भरा सामली वृक्ष है।
अतः सावधान रहिए। अपने भावों पर पैनी दृष्टि रखिए, कहीं वे गन्दे तो नहीं हो रहे हैं। प्रथमतः भावों को गन्दा होने से सदैव बचाना चाहिए। कभी आकस्मिक भूल से गन्दे हो भी जाएं तो तत्काल उन्हें विवेक ज्ञानगंगा में धोकर शुद्ध बना लेना चाहिए। यदि इसमें तनिक भी देर कर दी जाएगी तो वह फिर ऐसा कीचड़ है जो जमने के बाद जल्दी नहीं धुल पायेगा।
भाव का महत्त्व संसार में बहुत अधिक माना जाता है। परमार्थिक दृष्टि से दान, शील और तप, यह भाव है।
बिना भावना के किसी ने दान दिया, शील पाला और तप भी किया, तो भी वह उससे कोई लाभ प्राप्त नहीं कर सकता, क्योंकि भावना के बिना ये सब कार्य केवल दिखावा बनकर रह जाते हैं।
भावनाएं इतनी प्रबल होती हैं कि जिस आधे क्षण में भावनाओं की निकृष्टता के कारण सातवीं नरक का बंध पड़ सकता है, उसी आधे क्षण में कर्मों का सर्वनाश करके मोक्ष की प्राप्ति भी की जा सकती है।
भाव की शक्ति बड़ी जबर्दस्त होती है। भाव ही राम, यानी राम सत्य है। भाव ही रावण/रावण के भाव दुष्ट प्रवृत्ति के थे। किसी के प्रति भी उसके मन में शुद्ध भाव नहीं थे। गौशालक एक बुराई का प्रतीक बना। महावीर ने समस्त मानव जाति को धर्म का मार्ग प्रदर्शित किया। इसीलिए हम उनकी आराधना करते हैं।