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मिले शाश्वत मुक्ति: डॉ श्री वरुण मुनि जी

मिले शाश्वत मुक्ति: डॉ श्री वरुण मुनि जी

श्री गुजराती जैन संघ गांधीनगर में चातुर्मास विराजित दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार डॉ श्री वरुण मुनि जी म.सा. ने गुरुवार को धर्म सभा में प्रथम तीर्थंकर परमात्मा श्री ऋषभदेव प्रभु की स्तुति रुप भक्तामर स्तोत्र के माध्यम से कहा कि तीर्थंकर प्रभु स्वयं तीरते है और साधक भक्त आत्माओं को भी संसार रुपी सागर से तिराने वाले हैं।

प्रभु की भक्ति स्तुति से जीवन में मिलने वाले अदभुत लाभों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि जिनेश्वर भगवान की श्रद्धा पूर्वक भक्ति में करने से साधक आत्मा के पूर्व संचित कर्म अपने आप ही यों क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं जैसे कि मयूर की ध्वनि मात्र से ही चंदन वृक्षों के ओर लिपटे हुए सर्प अपने अपने बिलों में घुस जाते हैं। भक्ति में इतनी अपार शक्ति होती है। भक्ति एक अमर गुण है।

इसलिए यह गुण आत्मा को भी अमर बना देता है। मुनि श्री ने वाणी के जादूगर, श्रुताचार्य उत्तर भारतीय प्रर्वतक श्री अमर मुनि जी महाराज के उन पर रहे असीम उपकारों को याद करते हुए कहा कि उनकी भक्ति के प्रेम रस का आस्वादन कईयों ने किया है।

परम पूज्य गुरुदेव के महान् उपकारों के कारण ही आज हम आपके समक्ष कुछ बोलने में काबिल बन पाए है। राष्ट्र संत दादा गुरुदेव परम पूज्य श्री भण्डारी श्री पदम चन्द्र जी म सा के भी गुण स्मरण करते हुए कहा कि दोनों महापुरुषों के उन पर एवं जिनशासन पर महान् असीम उपकार है।

जिन्होंने अपनी ज्ञान, तपस्या, प्रज्ञा साधना शक्ति के बल पर अपनी विविध विधाओं से समस्त जिनशासन एवं श्रमण संघ की प्रगति और संगठन विकास में अपना अपूर्व योगदान दिया। उन्होंने सम्यक प्रणाम पर विवेचना करते हुए कहा कि जो प्रणाम प्रभु के ज्ञान, दर्शन, वीतरागता को देखकर किया जाता है वो है सम्यक प्रणाम।

जो आत्मा के परिणामों को बदल देता है वो अशुभ भावों को शुभ में बदल देता है और आगे उत्तरोत्तर वृद्धि विकास की दिशा में शुभ से शुद्धतम की ओर ले जाता है। प्रारंभ में युवा मनीषी मधुर वक्ता श्री रुपेश मुनि जी ने भजन प्रस्तुत किया। उप प्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी महाराज ने सबको मंगल पाठ प्रदान किया। संचालन राजेश मेहता ने किया।

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