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भक्त से भगवान बनने की यात्रा है- भक्तामर स्तोत्र: डाॅ. वरुण मुनि

भक्त से भगवान बनने की यात्रा है- भक्तामर स्तोत्र: डाॅ. वरुण मुनि

श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बेंगलुरू में चातुर्मासार्थ विराजित उप प्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी महाराज साहब ने मंगलाचरण के साथ प्रवचन सभा का शुभारंभ किया । मधुर गायक श्री रुपेश मुनि जी महाराज साहब ने अत्यंत मधुर भजन के साथ सभी श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। तत्पश्चात दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार प. पू. डॉ. श्री वरुणमुनिजी म. सा. ने अपने मंगलमय प्रवचन में फरमाया कि हमें यह चिंतन करना है कि हम समस्या का हिस्सा बनते हैं या समाधान का ? यदि हम किसी समस्या का समाधान करने में समर्थ नहीं तो कम से कम समस्या का हिस्सा तो बिल्कुल नहीं बनें । हमें शकुनी या मंथरा की भांति समस्या पैदा करने वाले नहीं, बल्कि राम, कृष्ण, महावीर और बुद्ध की भांति समाधान देने वाले बनना है । इस ब्रह्मांड में हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, हम पांव से चलते हैं, हमारा एक पांव शुक्र का प्रतिनिधित्व करता है तो दूसरा पांव शनि का प्रतिनिधित्व करता है । शुक्र धन का कारक है और शनि सफलता का । चलना मात्र एक क्रिया नहीं बल्कि उसके पीछे कुछ ना कुछ प्रयोजन होना आवश्यक है । चलना भी तीन प्रकार से हो सकता है प्रथम केवल पैरों से चलना निश प्रयोजन रूप से चलना भटकना कहलाता है। दूसरा पैरों के साथ बुद्धि से जाना। यह आवश्यक नहीं की जिसमें मजा आए उससे फायदा ही हो । कभी-कभी थोड़ी सी सजा, थोड़ी सी कठिनाई जीवन भर के लिए आनंद का कारण बन सकती है ।.हमारे जीवन का प्रवास भी उद्देश्य पूर्ण होना चाहिए । तीसरी प्रकार का चलन आध्यात्मिक यात्रा कहलाता है । जिसमें पांव बुद्धि, विवेक और श्रद्धा के साथ आत्मा का भी विकास होता है । हमारी इस भक्तामर की आध्यात्मिक यात्रा का प्रयोजन जीव से शिव, आत्मा से परमात्मा, भक्त से भगवान, पुरुष से पुरुषोत्तम बनने की यात्रा करना है । कमठ ने लगातार 10 भवों तक निष्प्रयोजन किसी न किसी रूप में भगवान पार्श्वनाथ को कष्ट पहुंचाया, दु:ख पहुंचाया, और अंत में स्वयं दुखी होकर प्रभु के चरणों का दास बन गया । तात्पर्य यह है कि क्रोध करने वाला कमठ बनता है और क्षमा करने वाला प्रभु पारसनाथ । हम अपने जीवन के जौहरी स्वयं बने, क्या पता फिर यह मौका हमें मिले या ना मिले । 84 लाख भवों की इस दुर्गम यात्रा में केवल 2000 बार ही हमें मनुष्य भव पाने का स्वर्णिम अवसर मिलता है, जिसमें हम आत्म साधना करके मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं । अगर ऐसा स्वर्णिम अवसर भी हम चूक जाते हैं तो पुनः नरक निगोद के भव भ्रमण में फंस जाते हैं । निगोद की आयुष तो नर्क से भी लंबी होती है । यदि मनुष्य भव पाकर भी हम चिकने घड़े की भांति बने रहे, तो हमारी दुर्गति निश्चित है । अतः अत्यंत पुण्य से प्राप्त इस मनुष्य जन्म को हम श्रद्धापूर्वक प्रभु की भक्ति में लगाकर तथा सही अर्थों में धर्मलाभ उठाकर अपने जीवन को कल्याण के मार्ग की ओर प्रशस्त कर सकते हैं ।

आज की प्रवचन सभा में पंजाब प्रदेश, बैंगलोर के उपनगरों एवं गांधीनगर के आसपास के क्षेत्रों के अनेक श्रद्धालु भक्तजन उपस्थित थे ।

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