चातुर्मास के पावन अवसर पर श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बैंगलोर में विराजमान भारत गौरव डॉ. श्री वरुण मुनि जी महाराज ने आज के प्रवचन में कहा कि — “प्रेम ही जीवन का सच्चा अर्थ है। जहाँ प्रेम है, वहीं धर्म है; जहाँ धर्म है, वहीं शांति है; और जहाँ शांति है, वहीं मुक्ति का साक्षात्कार संभव है।”मुनि श्री ने अपने प्रेरणादायी प्रवचन में कहा कि आज मनुष्य ने भौतिक उन्नति के अनेक शिखर प्राप्त कर लिए हैं, परंतु यदि उसके हृदय में प्रेम का प्रकाश नहीं है तो उसका जीवन अधूरा और नीरस है। प्रेम वह अमृत है जो जीवन को मधुरता, शांति और पवित्रता प्रदान करता है। द्वेष, ईर्ष्या और अहंकार से भरा जीवन दुःख का कारण बनता है, जबकि प्रेम से युक्त जीवन ही सच्चे धर्म का परिचायक होता है। मुनि श्री ने आगे कहा कि धर्म का मूल तत्व प्रेम है।
जब तक मन में करुणा, मैत्री और अहिंसा के भाव नहीं जागते, तब तक साधना पूर्ण नहीं होती। सच्चा धर्म वही है, जो सब जीवों के प्रति समान दृष्टि और प्रेमभाव उत्पन्न करे।उन्होंने कहा कि प्रेम केवल संबंधों तक सीमित नहीं, बल्कि समस्त सृष्टि के प्रति होना चाहिए — मनुष्य, पशु-पक्षी, वृक्ष, जल, वायु और धरती — सबके प्रति। जब मनुष्य का हृदय सर्व जनों के प्रति प्रेममय हो जाता है, तभी वह आत्मिक शांति और परम मुक्ति की ओर अग्रसर होता है।प्रवचन के समापन पर मुनि श्री ने कहा — “प्रेम से ही जीवन का आरंभ होता है, प्रेम में ही जीवन का उत्कर्ष है और प्रेम ही जीवन का परम लक्ष्य है। जिसने प्रेम को अपना लिया, उसने ईश्वर को पा लिया।”
मधुर वक्ता रूपेश मुनि जी महाराज ने एक बहुत ही मधुर भजन प्रस्तुत किया, जिससे सभी श्रोता भक्ति की भावना में डूब गए। अंत में, उपप्रवर्तक परम पूज्य श्री पंकज मुनि जी महाराज ने सभा की समाप्ति मंगल पाठ के साथ की।
सभा में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं ने श्रद्धा, भक्ति और भावपूर्वक मुनि श्री के श्रीचरणों में वंदन कर आत्मिक शांति एवं ज्ञान का अमृत प्राप्त किया।